Thursday 10 March 2016

नमाज तरावीह का बयान




✨Topic
नमाज तरावीह का बयान
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✅ नमाज तरावीह और तहज्जुद (रात की नमाज) असल में एक ही चीज के दो नाम है। रात की नमाज गैर-रमजान में सोकर उठने के बाद पढ़ी जाए तो तहज्ज़ुद कहलाती है और अगर रमजान में सोने से पहले ईशा के साथ पढ़ ली जाए तो इसको तरावीह कहते है। रमजान शरीफ में रोजे की वजह से चुकी कमजोरी और परेशानी सी हो जाती है और इफ्तार व खाने के बाद सोने और जब फिर आधी रात गए जाग कर तहज्ज़ुद के लिए लम्बा क़याम करना बहुत मुश्किल है इसलिए रसूलुल्लाह (ﷺ) ने रात की नमाज (तहज्ज़ुद) को रमजान शरीफ में ईशा के साथ पढ़ कर लोगो के लिए आसानी पैदा कर दी। ताकि वे तरावीह के बाद पूरी तरह आराम की नींद सो सके और फिर सुबह सादिक से कुछ पहले उठ कर सहरी खा कर रोजे के लिए तैयार हो जायें।
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♻रसूले खुदा (ﷺ) ने तीन रात तरावीह पढ़ाई
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عَنْ أَبِي ذَرٍّ، قَالَ صُمْنَا مَعَ رَسُولِ اللَّهِ ـ صلى الله عليه وسلم ـ رَمَضَانَ فَلَمْ يَقُمْ بِنَا شَيْئًا مِنْهُ حَتَّى بَقِيَ سَبْعُ لَيَالٍ فَقَامَ بِنَا لَيْلَةَ السَّابِعَةِ حَتَّى مَضَى نَحْوٌ مِنْ ثُلُثِ اللَّيْلِ ثُمَّ كَانَتِ اللَّيْلَةُ السَّادِسَةُ الَّتِي تَلِيهَا فَلَمْ يَقُمْهَا حَتَّى كَانَتِ الْخَامِسَةُ الَّتِي تَلِيهَا ثُمَّ قَامَ بِنَا حَتَّى مَضَى نَحْوٌ مِنْ شَطْرِ اللَّيْلِ فَقُلْتُ يَا رَسُولَ اللَّهِ لَوْ نَفَّلْتَنَا بَقِيَّةَ لَيْلَتِنَا هَذِهِ ‏.‏ فَقَالَ ‏ "‏ إِنَّهُ مَنْ قَامَ مَعَ الإِمَامِ حَتَّى يَنْصَرِفَ فَإِنَّهُ يَعْدِلُ قِيَامَ لَيْلَةٍ ‏"‏ ‏.‏ ثُمَّ كَانَتِ الرَّابِعَةُ الَّتِي تَلِيهَا فَلَمْ يَقُمْهَا حَتَّى كَانَتِ الثَّالِثَةُ الَّتِي تَلِيهَا ‏.‏ قَالَ فَجَمَعَ نِسَاءَهُ وَأَهْلَهُ وَاجْتَمَعَ النَّاسُ ‏.‏ قَالَ فَقَامَ بِنَا حَتَّى خَشِينَا أَنْ يَفُوتَنَا الْفَلاَحُ ‏.‏ قِيلَ وَمَا الْفَلاَحُ قَالَ السُّحُورُ ‏.‏ قَالَ ثُمَّ لَمْ يَقُمْ بِنَا شَيْئًا مِنْ بَقِيَّةِ الشَّهْرِ ‏.‏
۞"हजरत अबु जर्र (रजि.) फ़र्माते है के हम ने रसूलुल्लाह ﷺ के साथ रमजान भर रोजे रखे आप ﷺ हमारे साथ एक भी तरावीह में खड़े न हुवे, यहाँ तक की रमजान की सात रात बाकी रह गयी, सातवी शब को आपने हमारे साथ क़याम फ़र्माया यहाँ तक की रात का तिहाई गुजर गया , इस के बाद छट्ठी रात क़याम नही फ़र्माया फिर इसके बाद पाँचवी शब आधी रात तक क़याम फ़र्माया। तो मेने अर्ज किया : अल्लाह के रसूल ﷺ ! बाकि रात भी अगर आप हमारे साथ नफ्ल (नमाज) पढ़ाते (तो क्या खूब होता)। आप (ﷺ) फरमाए: जिस ने फारिग होने तक इमाम के साथ क़याम किया तो इस का ये क़याम रात भर के क़याम के बराबर (अजर व सवाब मिलेगा) फिर इसके बाद चौथी क़याम न फ़र्माया फिर इसके बाद वाली यानी शब को आप (ﷺ) ने अपनी पत्नियो और घर वालो को जमा फ़र्माया और लोग भी जमा हो गए। अबु जर्र (रजि.) फ़र्माते है के फिर नबी (ﷺ) ने हमारे साथ क़याम फर्माया यहाँ तक की हमें फलाह फौत हो जाने का अंदेशा होने लगा। अर्ज किया :फलाह क्या चीज है? सहरी का खाना। फ़र्माते है फिर फिर आप (ﷺ) ने बाकी महीना एक रात भी क़याम न फ़र्माया।"
✨Reference :  Sunan Ibn Majah 1327
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حَدَّثَنَا إِسْحَاقُ، أَخْبَرَنَا عَفَّانُ، حَدَّثَنَا وُهَيْبٌ، حَدَّثَنَا مُوسَى بْنُ عُقْبَةَ، سَمِعْتُ أَبَا النَّضْرِ، يُحَدِّثُ عَنْ بُسْرِ بْنِ سَعِيدٍ، عَنْ زَيْدِ بْنِ ثَابِتٍ، أَنَّ النَّبِيَّ صلى الله عليه وسلم اتَّخَذَ حُجْرَةً فِي الْمَسْجِدِ مِنْ حَصِيرٍ، فَصَلَّى رَسُولُ اللَّهِ صلى الله عليه وسلم فِيهَا لَيَالِيَ، حَتَّى اجْتَمَعَ إِلَيْهِ نَاسٌ، ثُمَّ فَقَدُوا صَوْتَهُ لَيْلَةً فَظَنُّوا أَنَّهُ قَدْ نَامَ، فَجَعَلَ بَعْضُهُمْ يَتَنَحْنَحُ لِيَخْرُجَ إِلَيْهِمْ فَقَالَ ‏ "‏ مَا زَالَ بِكُمُ الَّذِي رَأَيْتُ مِنْ صَنِيعِكُمْ، حَتَّى خَشِيتُ أَنْ يُكْتَبَ عَلَيْكُمْ، وَلَوْ كُتِبَ عَلَيْكُمْ مَا قُمْتُمْ بِهِ فَصَلُّوا أَيُّهَا النَّاسُ فِي بُيُوتِكُمْ، فَإِنَّ أَفْضَلَ صَلاَةِ الْمَرْءِ فِي بَيْتِهِ، إِلاَّ الصَّلاَةَ الْمَكْتُوبَةَ ‏
۞"हजरत ज़ैद बिन साबित (रजि.) ने के नबी ﷺ ने मस्जिदे नबवी में चटाई से घेर कर  एक हुजरा बना लिया और रमजान की रातो में इस की अंदर नमाज पढ़ने लगे फिर और लोग भी जमा हो गए तो एक रात  अँहजरत ﷺ  की आवाज नहीं आई,लोगो ने समझा के अँहजरत (ﷺ) सो गए है। इस लिए इन में से बाज खंगारने लगे ताके आप बाहर तशरीफ़ लाएं , फिर अँहजरत ﷺ ने फ़र्माया के में तुम लोगो के काम से वाकिफ है हुँ,तक के मुझे डर हुआ के कही तुम पर यह नमाज तरावीह फर्ज न कर दी जाए और अगर फर्ज कर दी जाये तो तुम इसे कायम नहीं रख सकोगे, पस ए लोगो ! अपने घरो में ये नमाज पढ़ो क्योंके फर्ज नमाज के सिवा इंसान की सबसे अफजल नमाज इस के घर में है"
✨Reference : Sahih al-Bukhari 7290

✅ भाइयो! आपको मालुम हो गया की रसूले खुदा (ﷺ) ने सिर्फ तीन रात तरावीह पढ़ाई और फिर इस ख्याल से की कही यह जमाअत के साथ नमाज अदा करने पर फर्ज न हो जाए और फिर उम्मत इसके छोड़ने पर बहुत गुनाहगार होगी,रसूलुल्लाह (ﷺ) ने इसे जमाअत से पढ़ाना छोड़ दिया और लोगो को घरों में पढ़ने का हुक्म दिया।

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♻रमजान और तहज्जुद
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✅ रसूलुल्लाह (ﷺ)  ने लोगो को तरावीह की नमाज वितर के साथ पढ़ायी और इसके बाद आपने तहज्जुद बिल्कुल नहीं पढ़ी और न ही वितर पढ़े है। मालूम हुआ की आप रात का क़याम (तहज्ज़ुद) रमजान में क़यामें रमजान (तरावीह) से बदल गया। यानी रसूलुल्लाह  (ﷺ) जो तहज्जुद और वित्र गैर रमजान में नींद से उठ कर पढ़ते थे, रमजान में वही तहज्ज़ुद और वित्र व तरावीह के नाम से पहले ईशा के बाद पढ़ लेते थे।
हदीस,फिक़्ह और इनकी शरह में यह बात कही साबित नहीं की रसूलुल्लाह (ﷺ) ने तरावीह और वित्र पढ़ा कर फिर इसी रात में दुबारा वित्र पढ़े हो। और एक रात में दोबारा वित्र पढ़े हो। और एक रात में दो बार वितर पढ़ना मना है। खुद रसूलुल्लाह  (ﷺ) फ़र्माते है -
    لاَ وِتْرَانِ فِي لَيْلَةٍ 
"एक रात में दो वित्र नाजायज है"✨Ref. : Jami` at-Tirmidhi 470
क्योंकि दो बार पढ़ने से वित्र शफअ बन कर बातिल हो जाती है तो साबित हुआ की हुजूर (ﷺ) रात में वित्र एक ही बार पढ़ते थे। जब आप ने तरावीह और वित्र पढ़ा दिए तो यक़ीन  है की हुजूर  (ﷺ) ने न वित्र ही इस रात में दो बार पढ़े और न ही तहज्जुद।
तो तहज्जुद वित्र के साथ रमजान में नमाज तरावीह बन गयी। याद रहे की तरावीह का असल नाम 'कयामे रमजान' है।

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♻नमाज तरावीह ग्यारह रक्अत है
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✅ इमाम बुखारी रह. ने तहज्जुद के बयान में बाब :-"नबी (ﷺ) का रमजान और रमजान के अलावा रात का क़याम।" बाँधा है और हदीस पेश की है :-
حَدَّثَنَا عَبْدُ اللَّهِ بْنُ يُوسُفَ، قَالَ أَخْبَرَنَا مَالِكٌ، عَنْ سَعِيدِ بْنِ أَبِي سَعِيدٍ الْمَقْبُرِيِّ، عَنْ أَبِي سَلَمَةَ بْنِ عَبْدِ الرَّحْمَنِ، أَنَّهُ أَخْبَرَهُ أَنَّهُ، سَأَلَ عَائِشَةَ ـ رضى الله عنها ـ كَيْفَ كَانَتْ صَلاَةُ رَسُولِ اللَّهِ صلى الله عليه وسلم فِي رَمَضَانَ فَقَالَتْ مَا كَانَ رَسُولُ اللَّهِ صلى الله عليه وسلم يَزِيدُ فِي رَمَضَانَ وَلاَ فِي غَيْرِهِ عَلَى إِحْدَى عَشْرَةَ رَكْعَةً، يُصَلِّي أَرْبَعًا فَلاَ تَسَلْ عَنْ حُسْنِهِنَّ وَطُولِهِنَّ، ثُمَّ يُصَلِّي أَرْبَعًا فَلاَ تَسَلْ عَنْ حُسْنِهِنَّ وَطُولِهِنَّ، ثُمَّ يُصَلِّي ثَلاَثًا، قَالَتْ عَائِشَةُ فَقُلْتُ يَا رَسُولَ اللَّهِ أَتَنَامُ قَبْلَ أَنْ تُوتِرَ‏.‏ فَقَالَ ‏ "‏ يَا عَائِشَةُ، إِنَّ عَيْنَىَّ تَنَامَانِ وَلاَ يَنَامُ قَلْبِي‏
۞"हजरत आइशा रजि. से ही रिवायत है उनसे है,उनसे पूछा गया की रमजान में रसूलुल्लाह ﷺ की तहज्जुद की नमाज केसी होती थी तो उन्होंने फ़र्माया की रसूलुल्लाह ﷺ रमजान और रमजान के अलावा ग्यारह रकअत से ज्यादा नहीं पढ़ते थे,पहली चार ऱकअते ऐसी लंबी पढ़ते की उनकी खूबी के बारे में न पूछो और फिर आप चार रकअतें ऐसी लंबी पढ़ते की उनकी खूबी और लंबाई की हालत मत पूछो। फिर तीन रकअत वित्र पढ़ते थे। आइशा रजि. फरमाती है की मेने पूछा ऐ अल्लाह के रसूल ﷺ, क्या आप वित्र पढ़ने से पहले सोते रहते है? तो आपने फ़र्माया,मेरी आँखे तो सो जाती है मगर मेरा दिल नहीं सोता।"
✨Reference : Sahih al-Bukhari 1147

✅ तहज्जुद के बयान में आप हजरत आइशा  रजि. की रिवायत पढ़ चुके सिद्दीका कुबरा रजि. फरमाती है:-
यानी रमजान और गैर रमजान में रसूले खुदा (ﷺ) (रात की नमाज और आम तोर पर) ग्यारह रकअत से ज्यादा नहीं करते थे। इस हदीस की सेहत का सूरज हमेशा आसमान पर रहा है। यह हदीस एकदम  सही है तो इस हदीस की रु से मालुम हुआ की रसूलुल्लाह (ﷺ) की रात की नमाज और गैर रमजान में ग्यारह रकअत (जिनमे तीन वित्र भी है) रही है। तो साबित हुआ की आप गैर-रमजान में तहज्जुद ग्यारह रकअत पढ़ते थे और हुजूर ने वही ग्यारह रकअत तहज्जुद तरावीह के नाम से रमजान में पढ़ायी।

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♻रसूले खुदा (ﷺ) ने तरावीह ग्यारह रकअत पढ़ायी
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۞"हजरत जाबिर बिन अब्दुल्लाह रजि. रिवायत करते हुए कहते है की रसूलुल्लाह ﷺ ने हमें रमजान में आठ रकअत (तरावीह) और फिर वित्र पढ़ाया........."
✨Reference : Sahih Ibn Khujema 1070

✅ इस हदीस की सनद को शेख अल्बानी रह. ने तखरिज सहीह इब्ने खुजैमा रह. ने हसन करार दिया है, इस के रावी ईसा बिन जारिया पर कुछ मुहदसिंन ने जिरह की है जो भ्रामक है ,और इस की मुकाबले में अबु जर्र रह. और इब्ने हब्बान रह. ने इस को मान्यता (توثیق) दी है,लिहाजा इस भ्रामक (مبہم) जरह पर मुकदमा किया जाएगा।

✅ इस गैर मकरूह हदीस से साबित हुआ की रसूलुल्लाह (ﷺ) ने जो तीन रात नमाज पढ़ाई थी वह ग्यारह रकअत ही थी जिनमे तीन वित्र भी शामिल थे। और आप हजरत आयशा रजि. वाली हदीस की एक आदमी ने आपसे पूछा की रसूलुल्लाह ﷺ रमजान में कितनी नमाज (तरावीह) तो हजरत आयशा रजि. ने जवाब दिया की हुजूर रमजान में और गैर रमजान में ग्यारह रकअत से ज्यादा नहीं पढ़ते थे,बिलकुल सही साबित हुई।
यह तो आप पढ़ चुके है की रसूलुल्लाह (ﷺ) ने तीन रात तरावीह पढ़ा कर फिर लोगो से फ़र्माया की तुम लोग अपने घर में पढ़ा करो। घरो में अलग अलग पढ़ने के बारे में हजरत अबु हुरैरह रजि. फ़र्माते है की रसूलुल्लाह ﷺ की वफ़ात के बाद भी यही तरीका जारी रहा। हजरत अबु बकर सिद्दीक रजि. के जमाने में और हजरत उमर रजि. के शुरू के दौर में भी इसी पर अमल होता रहा। फिर हजरत उमर रजि. ने तरावीह की नमाज जमाअत से पढ़ने का तरीका तय किया
 (✨Reference: Muatta Imam Malik 245)

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♻हजरत उमर रजि. ने ग्यारह रकअत तरावीह का हुक्म दिया
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وَحَدَّثَنِي عَنْ مَالِكٍ، عَنْ مُحَمَّدِ بْنِ يُوسُفَ، عَنِ السَّائِبِ بْنِ يَزِيدَ، أَنَّهُ قَالَ أَمَرَ عُمَرُ بْنُ الْخَطَّابِ أُبَىَّ بْنَ كَعْبٍ وَتَمِيمًا الدَّارِيَّ أَنْ يَقُومَا، لِلنَّاسِ بِإِحْدَى عَشْرَةَ رَكْعَةً قَالَ وَقَدْ كَانَ الْقَارِئُ يَقْرَأُ بِالْمِئِينَ حَتَّى كُنَّا نَعْتَمِدُ عَلَى الْعِصِيِّ مِنْ طُولِ الْقِيَامِ وَمَا كُنَّا نَنْصَرِفُ إِلاَّ فِي فُرُوعِ الْفَجْرِ ‏.‏
"साइब बिन यजीद से रिवायत है हजरत उमर ने अबी इब्ने काब रजि. और तमीम दारी को हुक्म दिया की लोगों को ग्यारह रकअत तरावीह पढ़ाएं..."
Reference : Muwatta Imam Maalik 247

✅ इस हदीस की सनद सही है किसी ने इस पर बहस नहीं की। साबित हुआ की हजरत उमर रजि. ने मदीने के लोगो को नमाज तरावीह ग्यारह रकअत (जिनमे तीन वित्र) है पढ़ाने का हुक्म दिया और खुद भी ग्यारह ही पढ़ते थे। रसूलुल्लाह (ﷺ) के जमाने से लोग तरावीह घरो में पढ़ते आए थे। फिर जब अमीरुलमोमिनी न रजि. ने तरावीह जमाअत के साथ पढ़ने का तरीका जारी फ़र्माया। उन्होंने ग्यारह  ही का हुक्म दिया तो तरावीह का आठ रकअत का अदद ही रसूलुल्लाह (ﷺ)  की सुन्नत से साबित है और जो आदमी तरावीह आठ रकअत से पढता है उसेकी ज्यादा  रकअते मुस्तहब और नफ्ल होगी। सुन्नत सिर्फ आठ रकअत ही है खूब समझ लो"

☑सन्दर्भ
۞सलातुर्रसूल ﷺ۞
♻लेखक: हजरत मौलाना मुहम्मद सादिक सियालकोटी रह.
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--------------|    ‏ وَاللَّهُ أَعْلَمُ    ।
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✅ हनफी भाइयो,
किताब आपकी दलील हमारी
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۞नबी ﷺ से 11 रकअत  ही
साबित
۞20 रकअत वाली रिवायत निहायत जईफ
۞तहज्जुद और तरावीह एक

✨ Reference : Ain Al-Hidaya
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