Saturday 27 February 2016

सुन्नते रसूल {ﷺ} और उसका मक़ाम

✅Topic 
सुन्नते रसूल {ﷺ} और उसका मक़ाम
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📮इस पोस्ट में आप पढ़ सकेंगे
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☑सुन्नत की तअरीफ
☑सुन्नत की किस्मे
☑सुन्नत क़ुरआने करीम की रौशनी में
☑सुन्नत की फजीलत
☑सुन्नत की अहमियत
☑सुन्नत का एहतेराम
☑सुन्नत की मौजुदगी में राय की हैसियत
☑कुरआन समझने के लिए सुन्नत की जरुरत
☑सुन्नत पर अमल करना वाजिब है
☑सुन्नत सहाबा इकराम (रजि.) की नजर में
☑सुन्नत अइम्मा की नजर में
☑हदीस
☑हदीस और सुन्नत
☑खुलासा
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✅Topic
Sunnat e Rasul {ﷺ} or uska mukaam
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📮Is post me aapne padha
☑Sunnat ki Tarif
☑Sunnat ki kisme
☑Sunnat Quraan e karim ki roshni me
☑Sunnat ki fazilat
☑Sunnat ki ahmiyat
☑Sunnat ka ehteraam
☑Sunnat ki maujudgi me raay ki hesiyat
☑Quraan samjhne ke liye sunnat ki jarurat
☑Sunnat par amal karna waajib h
☑Sunnat sahaaba ikraam (raji.) ki najar me
☑Sunnat aimma ki najar me
☑Hadis
☑Hadith or Sunnat
Khulasa
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Thursday 25 February 2016

तशह्हुद में शहादत की ऊँगली को हरकत देना {रफअ सब्बाबा}

✨Topic 
तशह्हुद में शहादत की ऊँगली को हरकत देना {रफअ सब्बाबा}
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♻नमाज में ऊँगली का उठाना रसूलुल्लाह (ﷺ) की बड़ी बरकत और महानता वाली सुन्नत है। यह अल्लाह के एक होने का अमली इकरार है।
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حَدَّثَنَا قُتَيْبَةُ، حَدَّثَنَا لَيْثٌ، عَنِ ابْنِ عَجْلاَنَ، ح قَالَ وَحَدَّثَنَا أَبُو بَكْرِ بْنُ أَبِي شَيْبَةَ، - وَاللَّفْظُ لَهُ - قَالَ حَدَّثَنَا أَبُو خَالِدٍ الأَحْمَرُ، عَنِ ابْنِ عَجْلاَنَ، عَنْ عَامِرِ بْنِ عَبْدِ اللَّهِ بْنِ الزُّبَيْرِ، عَنْ أَبِيهِ، قَالَ كَانَ رَسُولُ اللَّهِ صلى الله عليه وسلم إِذَا قَعَدَ يَدْعُو وَضَعَ يَدَهُ الْيُمْنَى عَلَى فَخِذِهِ الْيُمْنَى وَيَدَهُ الْيُسْرَى عَلَى فَخِذِهِ الْيُسْرَى وَأَشَارَ بِإِصْبَعِهِ السَّبَّابَةِ وَوَضَعَ إِبْهَامَهُ عَلَى إِصْبَعِهِ الْوُسْطَى وَيُلْقِمُ كَفَّهُ الْيُسْرَى رُكْبَتَهُ ‏.‏
۞"हजरत अब्दुल्लाह बिन जुबैर रजि.रिवायत करते हुए कहते है की जब रसूलुल्लाह (ﷺ) बैठते (नमाज में) तशह्हुद पढ़ने को तो अपना दायां हाथ अपनी दाई रान पर रखते और बायां हाथ अपनी बायीं रान पर रखते,और अपनी शहादत की ऊँगली के साथ इशारा करते और अपना अंगूठा अपनी बीच की ऊँगली के बीच में रखते"
✨Reference : Sahih Muslim 579 B
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وَحَدَّثَنِي مُحَمَّدُ بْنُ رَافِعٍ، وَعَبْدُ بْنُ حُمَيْدٍ، قَالَ عَبْدٌ أَخْبَرَنَا وَقَالَ ابْنُ رَافِعٍ، حَدَّثَنَا عَبْدُ الرَّزَّاقِ، أَخْبَرَنَا مَعْمَرٌ، عَنْ عُبَيْدِ اللَّهِ بْنِ عُمَرَ، عَنْ نَافِعٍ، عَنِ ابْنِ عُمَرَ، أَنَّ النَّبِيَّ صلى الله عليه وسلم كَانَ إِذَا جَلَسَ فِي الصَّلاَةِ وَضَعَ يَدَيْهِ عَلَى رُكْبَتَيْهِ وَرَفَعَ إِصْبَعَهُ الْيُمْنَى الَّتِي تَلِي الإِبْهَامَ فَدَعَا بِهَا وَيَدَهُ الْيُسْرَى عَلَى رُكْبَتِهِ الْيُسْرَى بَاسِطُهَا عَلَيْهَا
۞"हजरत इब्ने उमर रजि. रिवायत करते हुए कहते है की रसूलुल्लाह (ﷺ) जब बैठते थे तशह्हुद में तो वें रखते थे, अपने बाएं घुटने पर बाया हाथ और  दाहिने घुटने पर दाहिना हाथ और उठाते थे अपनी दाहिनी ऊँगली जो अंगूठे के नजदीक है दुआ मांगते साथ उसके"‏.‏
✨Reference : Sahih Muslim 580 
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أَخْبَرَنَا قُتَيْبَةُ، قَالَ حَدَّثَنَا سُفْيَانُ، عَنْ عَاصِمِ بْنِ كُلَيْبٍ، عَنْ أَبِيهِ، عَنْ وَائِلِ بْنِ حُجْرٍ، قَالَ رَأَيْتُ رَسُولَ اللَّهِ) صلى الله عليه وسلم يَرْفَعُ يَدَيْهِ إِذَا افْتَتَحَ الصَّلاَةَ وَإِذَا رَكَعَ وَإِذَا رَفَعَ رَأْسَهُ مِنَ الرُّكُوعِ وَإِذَا جَلَسَ أَضْجَعَ الْيُسْرَى وَنَصَبَ الْيُمْنَى وَوَضَعَ يَدَهُ الْيُسْرَى عَلَى فَخِذِهِ الْيُسْرَى وَيَدَهُ الْيُمْنَى عَلَى فَخِذِهِ الْيُمْنَى وَعَقَدَ ثِنْتَيْنِ الْوُسْطَى وَالإِبْهَامَ وَأَشَارَ ‏.‏
۞"हजरत वाइल बिन हुज्र रिवायत करते हुए कहते है 'मेने देखा रसूलुल्लाह (ﷺ) हाथ उठाकर नमाज शुरू करते ,और फिर रूकू करते,फिर रूकू से सिर उठाते,फिर बैठते तो अपना बायां पाँव जमीन की तरफ रखते और दाहिने पैर को खड़ा (सीधा) रखते,और अपना दायां हाथ अपनी दाई रान (जांघ) पर रखते और बायां हाथ अपनी बायीं रान पर रखते,और अपनी बीच की ऊँगली (कलमें की ऊँगली) और अंगूठे को मिलाकर दायरा बनाते और इशारा करते"
✨Reference : Sunan an-Nasa'i 1264
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حَدَّثَنَا عَلِيُّ بْنُ مُحَمَّدٍ، حَدَّثَنَا عَبْدُ اللَّهِ بْنُ إِدْرِيسَ، عَنْ عَاصِمِ بْنِ كُلَيْبٍ، عَنْ أَبِيهِ، عَنْ وَائِلِ بْنِ حُجْرٍ، قَالَ رَأَيْتُ النَّبِيَّ ـ صلى الله عليه وسلم ـ قَدْ حَلَّقَ الإِبْهَامَ وَالْوُسْطَى وَرَفَعَ الَّتِي تَلِيهِمَا يَدْعُو بِهَا فِي التَّشَهُّدِ ‏.‏
۞"हजरत वाइल बिन हुज्र रिवायत करते है की 'मेने देखा की रसूलुल्लाह (ﷺ) अपनी बीच की ऊँगली (कलमें की ऊँगली) और अंगूठे को मिलाकर दायरा बनाते और इसके बाद उठाते (इशारा करते) इसे (शहादत/तर्जनी ऊँगली को), दुआ करते इसके साथ में दौराने तशह्हुद में"
✨Grade : Sahih
✨Reference : Sunan Ibn Majah 912
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قَالَ وَكَيْفَ كَانَ يَصْنَعُ قَالَ فَوَضَعَ يَدَهُ الْيُمْنَى عَلَى فَخِذِهِ الْيُمْنَى وَأَشَارَ بِأُصْبُعِهِ الَّتِي تَلِي الإِبْهَامَ فِي الْقِبْلَةِ وَرَمَى بِبَصَرِهِ إِلَيْهَا أَوْ نَحْوِهَا ثُمَّ قَالَ هَكَذَا رَأَيْتُ رَسُولَ اللَّهِ صلى الله عليه وسلم يَصْنَعُ ‏.‏
۞"हजरत अब्दुल्लाह बिन उमर रजि.से रिवायत है : .................दाहिने घुटने पर दाहिना हाथ रखते और उठाते थे अपनी दाहिनी ऊँगली जो अंगूठे के नजदीक है 
अंगूठे के पास वाली ऊँगली (तर्जनी) को क़िबला रुख करके इशारा करते और अपनी निगाह उसी पर रखते,
इसके बाद उन्होंने फ़र्माया 'मेंने रसूलुल्लाह (ﷺ) को ऐसा ही करते देखा'।"
✨Reference : Sunan an-Nasa'i 1161
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♻अल्लामा नासिरुद्दीन अल्बानी रह. फ़र्माते 
है ,-'इस हदीस में दलील है की सुन्नत तरीका ये है की ऊँगली का इशारा और हरकत सलाम तक जारी रहे क्योंकि दुआ सलाम से जुडी है।'
मजीद तफ्सील (विस्तृत विवरण) के लिए अल्लामा नासिरुद्दीन अल्बानी रह. की किताब ✨'तमामुल मनिहा' की तरफ रुजुअ किया जा सकता है।
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✅ हदीस की इबारते बता रही है की आप (ﷺ) नमाज में दौराने तशह्हुद में बैठकर दोनों हाथ दोनों घुटनो पर रखते और उस वक़्त दाए (सीधे) हाथ की तर्जनी (शहादत) ऊँगली से इशारा (हरकत) करते हुए दुआ करते रहते।
इस दौरान अपनी ऊँगली किब्ला रुख रखते और अपनी निगाह उसी पर रखते।

✅ बेहतर तरीका ऊँगली उठाने का यह हुआ की तशह्हुद में बैठते ही अंगूठे के बीच की ऊँगली के बीच में रखकर  बाकी उंगलिया बंद करके कलिमे की ऊँगली (तर्जनी) को खड़ी करके धीरे धीरे इशारा करते हुए दुआ करे और सलाम तक ऊँगली से हरकत जारी  रखे। कुछ रिवायत में ऊँगली को थोडा झुका कर रखने का भी जिक्र है।

✅ ऊँगली को हिलाने का फलसफा यह है की जब ऊँगली को खड़ा किया तो उसने तौहीद की गवाही दी की अल्लाह एक है।फिर जब ऊँगली को बार बार हिलाना शुरु किया तो उसने बार बार एक,एक,एक होने का एलान किया। एक रिवायत में आता है की 'शहादत की ऊँगली उठाना (तशह्हुद में) बहुत सख्त है शैतान पर लोहे (के भाले मारने से)'

✅ सिर्फ एक मर्तबा ऊँगली उठाकर रख देना अथवा सिर्फ "‏ أَشْهَدُ أَنْ لاَ إِلَهَ إِلاَّ اللَّهُ"
पर उठाना,इसके बारे में सहीह अहादीस से कोई दलील नहीं मिलती 
,जिस रिवायत में है की नबी करीम (ﷺ) तशह्हुद में ऊँगली को हरकत नहीं देते थे वो हदीस भी जईफ है।

✅ रसूलुल्लाह (ﷺ) की सुन्नत रफअ सब्बाबा को आपने अच्छी तरह समझ लिया होगा की हुजूर (ﷺ) तशह्हुद में शहादत की ऊँगली उठायी है अतः इस सुन्नत पर अमल करे।
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Sunday 21 February 2016

सज्दे में जन्नत


♻मोमिन को सज्दे में देखकर शैतान रोता है            
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۞"حَدَّثَنَا أَبُو بَكْرِ بْنُ أَبِي شَيْبَةَ، حَدَّثَنَا أَبُو مُعَاوِيَةَ، عَنِ الأَعْمَشِ، عَنْ أَبِي صَالِحٍ، عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ، قَالَ قَالَ رَسُولُ اللَّهِ ـ صلى الله عليه وسلم ـ ‏ "‏ إِذَا قَرَأَ ابْنُ آدَمَ السَّجْدَةَ فَسَجَدَ اعْتَزَلَ الشَّيْطَانُ يَبْكِي يَقُولُ يَا وَيْلَهُ أُمِرَ ابْنُ آدَمَ بِالسُّجُودِ فَسَجَدَ فَلَهُ الْجَنَّةُ وَأُمِرْتُ بِالسُّجُودِ فَأَبَيْتُ فَلِيَ النَّارُ ‏"‏ ‏.‏
۞"हजरत अबु हुरैरह रजि. से  रिवायत है की रसूलुल्लाह  (ﷺ) फ़र्माते है,'जब आदम का बेटा (मोमिन) सज्दे की आयत पढता है फिर,सज्दा करता है तो शैतान रौता हुआ एक तरफ होकर कहता है- हाय मुसीबत मुझे, आदम का बेटा को सज्दे का हुक्म किया गया, उसने सज्दा किया तो उसके लिए जन्नत है और मुझे सज्दे का हुक्म दिया गया,मैने हुक्म नहीं माना तो मेरे लिए आग है'।"
✨Reference : Sahih Muslim 81
✨Reference : Sunan Ibn Majah,Book 5, Hadith 1105

✅मुलाहिजा- शैतान अल्लाह के सज्दे के
हुक्म से नाफरमान होकर जहन्नमी हुआ।हमें भी पांचो नमाजो में सज्दे का हुक्म है।इस सज्दे के हुक्म की पाबंदी से हम उस वक़्त पूरा उतरेंगे जब हम बाकायदा पांचो नमाजे वक़्त पर अदा करेंगे और अगर हमने कोई नमाज छोड़ी तो सज्दे के नाफरमान होंगे
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♻जन्नत में अल्लाह के रसूल (ﷺ) का साथ
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۞"حَدَّثَنَا الْحَكَمُ بْنُ مُوسَى أَبُو صَالِحٍ، حَدَّثَنَا هِقْلُ بْنُ زِيَادٍ، قَالَ سَمِعْتُ الأَوْزَاعِيَّ، قَالَ حَدَّثَنِي يَحْيَى بْنُ أَبِي كَثِيرٍ، حَدَّثَنِي أَبُو سَلَمَةَ، حَدَّثَنِي رَبِيعَةُ بْنُ كَعْبٍ الأَسْلَمِيُّ، قَالَ كُنْتُ أَبِيتُ مَعَ رَسُولِ اللَّهِ صلى الله عليه وسلم فَأَتَيْتُهُ بِوَضُوئِهِ وَحَاجَتِهِ فَقَالَ لِي ‏"‏ سَلْ ‏"‏ ‏.‏ فَقُلْتُ أَسْأَلُكَ مُرَافَقَتَكَ فِي الْجَنَّةِ ‏.‏ قَالَ ‏"‏ أَوَغَيْرَ ذَلِكَ ‏"‏ ‏.‏ قُلْتُ هُوَ ذَاكَ ‏.‏ قَالَ ‏"‏ فَأَعِنِّي عَلَى نَفْسِكَ بِكَثْرَةِ السُّجُودِ ‏"‏ ‏.‏
۞"हजरत रबीआ बिन काअब रजि. रिवायत करते हुए कहते है की मै एक रात रसूलुल्लाह (ﷺ) के साथ था, और मै हुजूर (ﷺ)  के लिए वुजू का पानी और आपकी (अन्य) जरुरत लाता था। हुजूर (ﷺ) ने फ़र्माया : चाह (की खुदा के सामने तेरे लिए अर्ज करू) मैने कहा 'मै आपका साथ चाहता हु जन्नत में ।' हुजूर  (ﷺ)  ने कहा 'और कुछ इसके सिवा? मैने कहा,बस वही । फिर हुजूर  (ﷺ)  ने फ़र्माया '
'तो मदद करो मेरी अपनी जात के लिए सज्दो की ज्यादती से'।"
✨Reference : Sahih Muslim 489

✅जिस तरह हकीम मरीज को कहे कि अच्छा होने के लिए मै तेरे लिए कोशिश करता हु और तू मेरी हिदायत के मुताबिक़ दवाई के इस्तेमाल और परहेज करने के साथ मेरी मदद करो। इसी तरह हुजूर (ﷺ) रबीआ रजि. को फ़र्माया कि मै तेरे मकसद के लिए दुआ से कोशिश करता हूँ और तू सज्दो की ज्यादती के साथ मेरी कोशिश में मेरी मदद कर। इस तरह तुझे जन्नत में मेरा साथ हासिल होगा
प्यारे भाइयो और बहनो! अगर हम चाहते है की आख़िरत में हमें रसूलुल्लाह (ﷺ) का साथ मिले तो हमें पांचो नमाजे अदा करते रहना चाहिए ताकि हमें सज्दो की ज्यादती हासिल हो और हर नमाज के हर सज्दे में नेक नीयती और इत्मीनान को सज्दे की जान समझे।
अल्लाह तआला से दुआ है कि, 'ऐ अल्लाह की हमें कुरआन और सुन्नत के रास्ते पर चला,हमें शिर्क और बिदअत से दूर रखते हुए पांचो वक़्तों की नमाज बाजमाअत अता करने की तौफीक अता फ़र्मा,हमें दुनिया और आख़िरत में कामयाब करते हुए जहन्नम की आग से बचा ।
----आमीन----
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---------------|| اللَّهُ أَعْلَمُ      ।
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फायदे का सौदा


✨Topic
फायदे का सौदा:-
'रब्बना वल-क लहम्दु हम्दन कसीरन तय्यबन मुबारकन फिहि'।
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حَدَّثَنَا عَبْدُ اللَّهِ بْنُ مَسْلَمَةَ، عَنْ مَالِكٍ، عَنْ نُعَيْمِ بْنِ عَبْدِ اللَّهِ الْمُجْمِرِ، عَنْ عَلِيِّ بْنِ يَحْيَى بْنِ خَلاَّدٍ الزُّرَقِيِّ، عَنْ أَبِيهِ، عَنْ رِفَاعَةَ بْنِ رَافِعٍ الزُّرَقِيِّ، قَالَ كُنَّا يَوْمًا نُصَلِّي وَرَاءَ النَّبِيِّ صلى الله عليه وسلم فَلَمَّا رَفَعَ رَأْسَهُ مِنَ الرَّكْعَةِ قَالَ ‏"‏ سَمِعَ اللَّهُ لِمَنْ حَمِدَهُ ‏"‏‏.‏ قَالَ رَجُلٌ وَرَاءَهُ رَبَّنَا وَلَكَ الْحَمْدُ، حَمْدًا كَثِيرًا طَيِّبًا مُبَارَكًا فِيه"
ِ، فَلَمَّا انْصَرَفَ قَالَ ‏"‏ مَنِ الْمُتَكَلِّمُ ‏"‏‏.‏ قَالَ أَنَا‏.‏ قَالَ ‏"‏ رَأَيْتُ بِضْعَةً وَثَلاَثِينَ مَلَكًا يَبْتَدِرُونَهَا، أَيُّهُمْ يَكْتُبُهَا أَوَّلُ ‏"‏‏.‏
۞"हजरत रफाआ बिन राफेअ रिवायत करते हुए कहते है की एक दिन हम रसूलुल्लाह (ﷺ) के पीछे नमाज पढ़ते रहे थे। जब हुजूर (ﷺ) ने रूकू से सर उठाया तो फ़र्माया- 'समियल्ला हुलिमन हमिदह' तो कहा एक आदमी ने जो था पीछे आपके (मुक्त्तदी)- 'रब्बना वल-क लहम्दु हम्दन कसीरन तय्यबन मुबारकन फिहि'।
फिर जब हुजूर नमाज से फारिग हुए तो फ़र्माया -कौन था बोलने वाला वे शब्द ? (यानी किसने यह कलमें पढ़े है) कहा एक आदमी ने (मुक्त्तदीयों से) हुजूर(ﷺ), मै था।
आपने (ﷺ) फ़र्माया -देखे मैने कुछ और तीस (30) फ़रिश्ते, जल्दी करते थे कि इन कलमो का सवाब कौन पहले लिखे'।"
✨Reference : Sahih al-Bukhari 799
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✅प्यारे भाइयो और बहनो ! हर आदमी दुनिया में फायदे का सौदा चाहता है अगरचे हजरत अबु हुरैरह रजि. की रिवायत से सहीह बुखारी में यह है क़ि जब इमाम 'समियल्ला हुलिमन हमिदह' कहे तो मुक्त्तदी ' 'अल्लाहुमा रब्बना लकल हम्दु' कहें।लेकिन अगर आप इसके साथ 'रब्बना वल-क लहम्दु हम्दन कसीरन तय्यबन मुबारकन फिहि' भी पढ़ ले और आपके ये कलिमे पढ़ने पर कुछ ऊपर 30 फ़रिश्ते सवाब लिखने को दौड़े। बताइए ! आपको और क्या चाहिए ? क्या आप यह फायदे का सौदा हाथ से जाने देंगे ?






Saturday 20 February 2016

सज्दा करते वक़्त हाथ जमींन पर रखे या घुटने पर ?

✅ ज्यादा सहीह बात ये है की सज्दा के लिए झुकते वक़्त पहले जमींन पर हाथ रखने चाहिए जैसा की इस सहीह हदीस से जानकारी मिलती है।

حَدَّثَنَا سَعِيدُ بْنُ مَنْصُورٍ، حَدَّثَنَا عَبْدُ الْعَزِيزِ بْنُ مُحَمَّدٍ، حَدَّثَنِي مُحَمَّدُ بْنُ عَبْدِ اللَّهِ بْنِ حَسَنٍ، عَنْ أَبِي الزِّنَادِ، عَنِ الأَعْرَجِ، عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ، قَالَ قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صلى الله عليه وسلم ‏ "‏ إِذَا سَجَدَ أَحَدُكُمْ فَلاَ يَبْرُكْ كَمَا يَبْرُكُ الْبَعِيرُ وَلْيَضَعْ يَدَيْهِ قَبْلَ رُكْبَتَيْهِ "‏‏
۞"हजरत अबु हुरैरह (रजि.) से रिवायत है की रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया,'जब कोई तुममें से सज्दा करे तो ऊंट की तरह न बैठे बल्कि अपने हाथ घुटनों से पहले रखे'।"
✨Grade : Sahih (Al-Albani)
Reference : Sunan Abi Dawud 840


✅ इस हदीस की सनद जय्यिद है। इमाम नववी,इमाम जुरकानी,इमाम अब्दुल हक़,शबीली और अल्लामा मुबारकपुरी (रह.) ने इसको सहीह कहा है।
हाफिज इब्ने हजर अस्कलानी ने कहा है की यह हदीस, हजरत वाइल बिन हुज्र (रजि.) वाली हदीस से ज्यादा मजबूत है।
✨ (सुबुलुस्स्लाम)

✅ इस हदीस के लिए सय्यिदिना अब्दुल्लाह बिन उमर (रजि.) वाली हदीस भी गवाह है।

۞"नाफेह (रह.) से रिवायत है की अब्दुल्लाह बिन उमर (रजि.) घुटनों से पहले अपने हाथ रखा करते थे  और फ़र्माते थे, 'रसूलुल्लाह (ﷺ) ऐसा ही किया करते थे।'
✨ इब्ने खुजैमा,दारे-कुत्नी,
बैहकी हाकिम

✅ इस हदीस को इमाम हाकिम (रह.) ने मुस्लिम की शर्त पर सहीह कहा है और इमाम ज़हबी (रह.) ने उनकी सहमति की है।
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♻जो लोग सज्दे में जाते हुए पहले घुटने रखने के काइल है वो यह रिवायत पेश करते है-

۞"हजरत वाइल बिन हुज्र रजि. से रिवायत है की मेने रसूलुल्लाह  (ﷺ) को देखा जब 'आप सज्दा करते तो दोनो घुटने हाथो से पहले जमींन पर रखते और जब सज्दे से उठते तो दोनों हाथ घुटनो से पहले उठाते'।"
✨ Grade : Da'if (week/कमजोर)
Reference : Jami` at-Tirmidhi 268/
Nasai/Abu Dawud/Ibne Majah. etc..

〰लेकिन यह रिवायत जईफ (कमजोर) है इसकी सनद में शरीक बिन अब्दुल्लाह काजी रावी जईफ है।
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♻ऊपर बयान हदीसों से ये बात जाहिर हो जाती है क़ि राजेह और कवी मजहब यही है की सज्दे में जाते वक्त आदमी घुटनो के बजाए पहले अपने हाथ जमींन पर रखे।
✅ इमाम औजाई रह. ,इमाम मालिक रह.,इमाम इब्ने हजम रह. और एक रिवायत के मुताबिक इमाम अहमद बिन हम्बल रह. का भी यही दृष्टीकोण है।

✅ अगर हजरत वाइल बिन हुज्र रजि. की इस हदीस को सहीह भी तस्लीम कर लिया जाए फिर भी तर्जीह इसी मोकफ को है।इसलिए की सय्यिदिना अबु हुरैरह रजि. की हदीस कौली है और वाइल बिन हुज्र वाली हदीस फेअली है और तुलना करने की सूरत में कौली हदीस फेअली हदीस पर तर्जीह दी जाती है और हजरत अबु हुरैरह रजि. की हदीस की शाहिद हजरत इब्ने उमर रजि. वाली सहीह हदीस भी है।हजरत अबु हुरैरह रजि.की हदीस में हाथो से पहले घुटने रखने की मुमानअत है और तुलना करने की सूरत में मुमानअत वाली रिवायत को तर्जिह दी जाती है।
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Friday 19 February 2016

नमाज में हाथ कहा और कैसे बांधे जाएं

✨Topic
नमाज में हाथ कहा और कैसे बांधे जाएं
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 حَدَّثَنَا أَبُو تَوْبَةَ، حَدَّثَنَا الْهَيْثَمُ، - يَعْنِي ابْنَ حُمَيْدٍ - عَنْ ثَوْرٍ، عَنْ سُلَيْمَانَ بْنِ مُوسَى، عَنْ طَاوُسٍ، قَالَ كَانَ رَسُولُ اللَّهِ صلى الله عليه وسلم يَضَعُ يَدَهُ الْيُمْنَى عَلَى يَدِهِ الْيُسْرَى ثُمَّ يَشُدُّ بَيْنَهُمَا عَلَى صَدْرِهِ وَهُوَ فِي الصَّلاَةِ ‏."‏
۞"हजरत ताऊस रजि. फरमाते है की अल्लाह के रसूल (ﷺ) अपना दायां हाथ नमाज में अपने  बाए हाथ पर रखकर अपने सीने पर सख्ती से बाँधा करते थे"
सहीह (अल्बानी)
हवाला : अबु दाऊद 759
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۞"वाइल बिन हुज्र रजि. से रिवायत है उन्होंने बयान किया की मेने नबी करीम (ﷺ) के साथ नमाज अदा की (तो क्या देखा कि) आप ने अपना दायां हाथ अपने बायें हाथ पर रख कर सीने पर बाँध लिया"
 इब्ने खुजैमा 749
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حَدَّثَنَا عَبْدُ اللَّهِ بْنُ مَسْلَمَةَ، عَنْ مَالِكٍ، عَنْ أَبِي حَازِمٍ، عَنْ سَهْلِ بْنِ سَعْدٍ، قَالَ كَانَ النَّاسُ يُؤْمَرُونَ أَنْ يَضَعَ الرَّجُلُ الْيَدَ الْيُمْنَى عَلَى ذِرَاعِهِ الْيُسْرَى فِي الصَّلاَةِ
۞"सहल बिन साद रजि. से रिवायत है की लोगो को यह हुक्म दिया जाता था की नमाज में दायां हाथ बायीं कलाई पर रखो।
अबु हाजिम कहते है,'मै जानता हु की यह आदेश  रसूलुल्लाह (ﷺ) की तरफ से दिया गया था'।"
हवाला: सहीह बुखारी 740
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۞۞۞
"मसला यह है की हाथ को बाँधा कहा जाए ? सीना पर या नाफ के नीचे ? कुछ उलेमा नाफ के नीचे बांधते है मगर नाफ के नीचे हाथ बाँधने वाली हदीस जईफ (कमजोर) है, सहीह नहीं है ।
ऊपर की हदीस (नंबर 749) को इब्ने खुजैमा ने अपनी सहीह में नक़ल किया है जिस की ताईद मुस्नद अहमद में हलब कि हदीस से होती है की नबी करीम सलल्लाहु अल्लैहि व सल्लम अपने हाथ को सीने पर बांधते थे। और रिवायत में "नाफ के ऊपर" के शब्द नक़ल है। "नाफ के निचे" के मुकाबले में "नाफ के ऊपर" वाली हदीस भारी है और उलेमा ए हक़ के नजदीक कवी (मजबूत) है।"
✨बुलूगुल मराम

♻तमाम अहादीस की रौशनी से नमाजी को दायां हाथ बायीं कलाई पर रखकर अपने हाथ सीने पर बांधने चाहिए।
नमाज में नाफ के नीचे हाथ बाँधने वाली रिवायत इंतेहाई जईफ है।
इमाम नववी (रह.) ने शरह मुस्लिम में लिखा है - 'मुत्तफकुन अला जुअफिहि0" (इस रिवायत के जईफ होने पर इत्तिफ़ाक है) और जो रिवायत 'तहतुस्स-सुर्रति' 'नाफ के नीचे' हाथ बाँधने के बारे में अबूदाऊद में रिवायत है इसमें अब्दुल रहमान बिन इस्हाक़ अल वास्ती रावी जईफ है।
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✅हनफ़ी मसलक की मोतबर किताबो से नमाज में  सिने पर हाथ बाँधने वाली हदीस की सहीह होने की दलील तथा नाफ के निचे हाथ बाँधने वाली हदीस के जईफ होने की दलील
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۞नाफ़ के नीचे हाथ बांधने की हदीस बइत्‍तेफ़ाक़ अइम्‍मा मुहद्दसीन जईफ़ है।
~हिदाया उर्दू तर्जुमा जिल्‍द -1,सफा-57
~हिदाया अरबी जिल्द-1, किताब अल सलात,सफा-71 पर यह इबारत है:-
ضعيف متفق على تضعيفه

नाफ के नीचे हाथ बाँधने की रिवायत जईफ है और इसपर इमामो का इत्तेफाक है

नोट :- ये इबारत अल्लामा ऐनी रह. ने शरह अल-हिदाया (2/171) में नकल की है,जो दरअसल नाफ के निचे हाथ बान्धने वाली हदीस हजरत अली रजि0 के मुताल्लिक़ इमाम नववी के कौल है- वो फरमाते है:

أما حديث علي رضى الله عنه أنه قال : من السنة فى الصلاة وضع الأكف تحت السرة "ضعيف متفق على تضعيفه"

यानी हजरत अली रजि0 की ये हदीस बिला-इत्तेफाक जईफ (कमजोर) है।
मुलाहिज़ा हो : शरह अल- नववी 4/115

۞हिदाया उर्दू बनाम "ऐन उल हिदाया" जिल्द-1 सफा-59 है
"सीने पर हाथ बाँधने की हदीस कवी (सहीह) है"

۞सीने पर हाथ बांधने की हदीस बइत्‍तेफाक अइम्‍मा मुहद्दसीन सही है। ~शरह विकाया उर्दू  सफा-93 पर वे यही बयान मौजूद है।

۞हिदाया अरबी किताब उल सलात सफा-82 के हासिये नंबर 23 पर ये इबारत है और यह इबारत कट्टर-हनफ़ी की है:
هذا تعليل بمقابلة حديث وائل فَسَيُرَدُّ، وحديث علي لايعارضه لما ذكرنامن ضعفه
"नाफ के निचे हाथ बांधना की हदीस मर्फुह नहीं , वो हजरत अली रजि0 का कौल है और जईफ है"
(देखे शरह विकाया उर्दू सफा 13)
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Thursday 18 February 2016

नमाज में आमीन का मसला हदीस की रोशनी में




✨Topic
नमाज में आमीन का मसला हदीस की रोशनी में
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حَدَّثَنَا بُنْدَارٌ، مُحَمَّدُ بْنُ بَشَّارٍ حَدَّثَنَا يَحْيَى بْنُ سَعِيدٍ، وَعَبْدُ الرَّحْمَنِ بْنُ مَهْدِيٍّ، قَالاَ حَدَّثَنَا سُفْيَانُ، عَنْ سَلَمَةَ بْنِ كُهَيْلٍ، عَنْ حُجْرِ بْنِ عَنْبَسٍ، عَنْ وَائِلِ بْنِ حُجْرٍ، قَالَ سَمِعْتُ النَّبِيَّ صلى الله عليه وسلم قَرَأَ‏:‏ ‏(‏غَيْرِ الْمَغْضُوبِ عَلَيْهِمْ وَلاَ الضَّالِّينَ ‏)‏ فَقَالَ ‏"‏ آمِينَ ‏‏

‏.‏ وَمَدَّ بِهَا صَوْتَهُ ‏.‏ قَالَ وَفِي الْبَابِ عَنْ عَلِيٍّ وَأَبِي هُرَيْرَةَ ‏.‏ قَالَ أَبُو عِيسَى حَدِيثُ وَائِلِ بْنِ حُجْرٍ حَدِيثٌ حَسَنٌ ‏.‏ وَبِهِ يَقُولُ غَيْرُ وَاحِدٍ مِنْ أَهْلِ الْعِلْمِ مِنْ أَصْحَابِ النَّبِيِّ صلى الله عليه وسلم وَالتَّابِعِينَ وَمَنْ بَعْدَهُمْ يَرَوْنَ أَنَّ الرَّجُلَ يَرْفَعُ صَوْتَهُ بِالتَّأْمِينِ وَلاَ يُخْفِيهَا ‏."
۞"हजरत वाइल बिन हज्र रिवायत करते हुए कहते है की मेने सुना है की रसूलुल्लाह (ﷺ) ने पढ़ा वलज्जालीन फिर कहा आमीन (और) लम्बी की आवाज इसके साथ अपनी।"

"हजरत अबु ईसा तिर्मिज़ी रह. फ़र्माते 'हजरत वाइल बिन हुज्र रजि.' से रिवायत हदीस "हसन हदीस" है और अहले इल्म, सहाबा और ताबईन का यही फ़तवा है कि हर आदमी ज़ोर से आमीन कहे, आहिस्ता न कहे. यही फ़तवा है इमाम शाफ़ई, इमाम अहमद और इमाम इस्हाक़ (रह.) का और इस मसअले में हज़रत अली रजि. और अबू हुरैरह रज़ि. से भी रिवायत हैं "
✨Grade     : Sahih
Reference : Jami` at-Tirmidhi 248
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حَدَّثَنَا مُحَمَّدُ بْنُ كَثِيرٍ، أَخْبَرَنَا سُفْيَانُ، عَنْ سَلَمَةَ، عَنْ حُجْرٍ أَبِي الْعَنْبَسِ الْحَضْرَمِيِّ، عَنْ وَائِلِ بْنِ حُجْرٍ، قَالَ كَانَ رَسُولُ اللَّهِ صلى الله عليه وسلم إِذَا قَرَأَ ‏{‏ وَلاَ  الضَّالِّينَ ‏}‏ قَالَ ‏ "‏ آمِينَ ‏"‏ ‏.‏ وَرَفَعَ بِهَا صَوْتَهُ
۞"हजरत वाइल बिन हज्र रिवायत करते हुए कहते है की मेने सुना है की रसूलुल्लाह  (ﷺ) ने पढ़ा वलज्जालीन फिर कहा आमीन (और) लम्बी की आवाज इसके साथ अपनी।"
✨Grade    : Sahih (Al-Albani rah.)
Reference : Sunan Abi Dawud 932
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أَخْبَرَنَا مُحَمَّدُ بْنُ عَبْدِ اللَّهِ بْنِ عَبْدِ الْحَكَمِ، عَنْ شُعَيْبٍ، حَدَّثَنَا اللَّيْثُ، حَدَّثَنَا خَالِدٌ، عَنِ ابْنِ أَبِي هِلاَلٍ، عَنْ نُعَيْمٍ الْمُجْمِرِ، قَالَ صَلَّيْتُ وَرَاءَ أَبِي هُرَيْرَةَ فَقَرَأَ ‏{‏ بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَنِ ‏}‏ الرَّحِيمِ ثُمَّ قَرَأَ بِأُمِّ الْقُرْآنِ حَتَّى إِذَا بَلَغَ ‏{‏ غَيْرِ الْمَغْضُوبِ عَلَيْهِمْ وَلاَ الضَّالِّينَ ‏}‏ فَقَالَ آمِينَ ‏.‏ فَقَالَ النَّاسُ آمِينَ ‏.‏ وَيَقُولُ كُلَّمَا سَجَدَ اللَّهُ أَكْبَرُ وَإِذَا قَامَ مِنَ الْجُلُوسِ فِي الاِثْنَيْنِ قَالَ اللَّهُ أَكْبَرُ وَإِذَا سَلَّمَ قَالَ وَالَّذِي نَفْسِي بِيَدِهِ إِنِّي لأَشْبَهُكُمْ صَلاَةً بِرَسُولِ اللَّهِ صلى الله عليه وسلم ‏.‏
۞"हजरत नईमुल मुजमर फ़र्माते है - 'मैनें अबु हुरैरह (रजि.) के पीछे नमाज पढ़ी तो उन्होंने 'बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम' पढ़ी फिर सूरह फातिहा पढ़ी,जब 'गैरिल मग्जूबि  अल्लैहि वलज्जालींन' पर पहुचे तो 'आमीन' कही और लोगो ने भी 'आमीन' कही। और वो जब सज्दा करते तो अल्लाहु अकबर कहते और जब दो रकअत पढ़ कर उठते तो अल्लाहु अकबर कहते। फिर जब सलाम फेरा तो कहा- उस जात की कसम जिसके हाथ में मेरी जान है ! मै तुमसे ज्यादा रसूलुल्लाह (ﷺ) की नमाज के मुशाबेह (अनुरूप) हुँ'।"
✨Grade     : Sahih
Reference : Sunan an-Nasa'i 905/906
In-book reference : Book 11, Hadith 30
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حَدَّثَنَا عُثْمَانُ بْنُ أَبِي شَيْبَةَ، حَدَّثَنَا حُمَيْدُ بْنُ عَبْدِ الرَّحْمَنِ، حَدَّثَنَا ابْنُ أَبِي لَيْلَى، عَنْ سَلَمَةَ بْنِ كُهَيْلٍ، عَنْ حُجَيَّةَ بْنِ عَدِيٍّ، عَنْ عَلِيٍّ، قَالَ سَمِعْتُ رَسُولَ اللَّهِ ـ صلى الله عليه وسلم ـ إِذَا قَالَ ‏{وَلاَ الضَّالِّينَ}‏ قَالَ ‏ "‏ آمِينَ ‏ ‏.‏
۞"हज़रत अली रज़ि. फ़रमाते हैं कि मैंने रसूलुल्लाह (ﷺ) से सुना कि जब आपने ‘वलज्ज़ाल्लीन’ कहा तो फ़रमाया 'आमीन'."
✨Grade              : Sahih
Arabic reference : Sunan Ibn Majah»854
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حَدَّثَنَا عَبْدُ اللَّهِ بْنُ يُوسُفَ، قَالَ أَخْبَرَنَا مَالِكٌ، عَنِ ابْنِ شِهَابٍ، عَنْ سَعِيدِ بْنِ الْمُسَيَّبِ، وَأَبِي، سَلَمَةَ بْنِ عَبْدِ الرَّحْمَنِ أَنَّهُمَا أَخْبَرَاهُ عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ، أَنَّ النَّبِيَّ صلى الله عليه وسلم قَالَ ‏"‏ إِذَا أَمَّنَ الإِمَامُ فَأَمِّنُوا فَإِنَّهُ مَنْ وَافَقَ تَأْمِينُهُ تَأْمِينَ الْمَلاَئِكَةِ غُفِرَ لَهُ مَا تَقَدَّمَ مِنْ ذَنْبِهِ ‏"‏‏.‏ وَقَالَ ابْنُ شِهَابٍ وَكَانَ رَسُولُ اللَّهِ صلى الله عليه وسلم يَقُولُ ‏"‏ آمِينَ ‏
۞"अबू हुरैरह रजि. बयान फरमाते है कि आप (ﷺ) ने फ़र्माया',"कहो आमीन" कहे जब इमाम इसे और इस आमीन से अगर किसी एक की भी आमीन फरिश्तों की आमीन से मिल जाती है,तो इसके बाद उसके सभी पिछले गुनाहों को माफ कर दिया जाएगा"
इब्ने शाहिब फरमाते है" अल्लाह के पैगम्बर (ﷺ) कहा करते थे, "अमीन।"
✨Reference : Sahih al-Bukhari 780
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حَدَّثَنَا إِسْحَاقُ بْنُ مَنْصُورٍ، أَخْبَرَنَا عَبْدُ الصَّمَدِ بْنُ عَبْدِ الْوَارِثِ، حَدَّثَنَا حَمَّادُ بْنُ سَلَمَةَ، حَدَّثَنَا سُهَيْلُ بْنُ أَبِي صَالِحٍ، عَنْ أَبِيهِ، عَنْ عَائِشَةَ، عَنِ النَّبِيِّ ـ صلى الله عليه وسلم ـ قَالَ ‏ "‏ مَا حَسَدَتْكُمُ الْيَهُودُ عَلَى شَىْءٍ مَا حَسَدَتْكُمْ عَلَى السَّلاَمِ وَالتَّأْمِينِ ‏ ‏.‏
۞"हज़रत आयशा रज़ि.से रिवायत है कि रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया "यहूदी तुमसे किसी चीज़ से इतना हसद (जलन) नहीं रखते जितना सलाम और आमीन से"
✨Grade               : Sahih
Arabic reference : Sunan Ibn Majah 856
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✅ हज़रत अता इब्न अबी रिबाह रह.(जो एक ताबिई और इमाम अबू हनीफ़ा रह.के उस्ताद थे) इन अल्फ़ाज़ में शहादत पेश करते हैं "मैंने ख़ुद मस्जिदे हरम में इमाम के ' वलज्ज़ाल्लीन ' कहने के बाद 200 सहाबा को जोर से आमीन कहते हुए सुना."
 ✨ बैहक़ी 2/59

✅ मौलाना अब्दुल हई लखनवी फ़रंगी महली (रह.) फ़र्माते हैं " अगर इन्साफ़ से पूछा जाए तो सच बात यह है कि  ज़ोर से आमीन कहने का मसअला दलील के लिहाज़ से  ज़्यादा क़वी (मज़बूत) है."
✨ तअलीकुल मुमज्जद पेज 103

✅ अल्लामा इब्ने जौज़ी रह.फ़रमाते हैं “ किसी एक सहाबी का भी बुलंद आवाज से आमीन  का इन्कार साबित नहीं है बल्कि इस पर उनका इज्मा है.”
✨ तोह्फ़तुल जौज़ी पेज 66

✅ शाह वली उल्लाह मुहद्दिस देहलवी रह. फ़रमाते  हैं " इससे मालूम हुआ कि मुक़्तदी अपने इमाम की आवाज़ सुन कर ख़ुद भी आमीन कहे."
✨ हुज्जतुलाहिल बालिग़ह 2/7

♻तमाम अहादिसे रसूल (ﷺ) जिनका ऊपर हवाला पेश किया गया की रौशनी में यह साबित होता है की जहरी नमाज में जोर से आमीन बोलना सुन्नत है।
जब आप अकेले नमाज पढ़ रहे हो तो आमीन धीरे से कहे।जब जुहर और अस्र इमाम के पीछे पढ़े तो भी धीरे से कहना चाहिए लेकिन जब आप जोर वाली नमाज में हो इमाम के पीछे तो जिस वक़्त इमाम वलज्जालीन कहे तो आमीन कहनी चाहिए, बल्कि इमाम भी सुन्नत की पैरवी मे आमीन पुकार कर कहे।
प्यारे भाइयो आप आमीन से नफरत न करे बल्कि रसूलुल्लाह (ﷺ) की सुन्नत पर अमल करने वाले बने।
कब्र परस्ती का रद्द हदीस की रौशनी में
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इंग्लिश स्केन:-









उर्दू स्केन:-






Tuesday 16 February 2016

इमाम के पीछे सुरः फातिहा




✨Topic
नमाज में मुक्त्तदी के लिए सूरह फातिहा की किरअत 

फातिहा चूँकि नमाज की बुनियाद है इसके बिना नमाज नहीं होती इसलिए इस मसले को यहाँ बयान करना बहुत जरुरी है।

तमाम सहीह अहादीस की रु से इमाम,मुक्त्तदी और मुंफरिद (एकल नमाजी) सबके लिए हर नमाज में सूरः फातिहा पढ़ना लाजमी है।
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حَدَّثَنَا عَلِيُّ بْنُ عَبْدِ اللَّهِ، قَالَ حَدَّثَنَا سُفْيَانُ، قَالَ حَدَّثَنَا الزُّهْرِيُّ، عَنْ مَحْمُودِ بْنِ الرَّبِيعِ، عَنْ عُبَادَةَ بْنِ الصَّامِتِ، أَنَّ رَسُولَ اللَّهِ صلى الله عليه وسلم قَالَ ‏"‏ لاَ صَلاَةَ لِمَنْ لَمْ يَقْرَأْ بِفَاتِحَةِ الْكِتَابِ ‏"‏‏.
۞" हजरत उबादा बिन सामित (रजि.) से रिवायत है की रसुलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया, "जिसने भी अपनी नमाज में सूरह फातिहा नहीं पढ़ी उसकी नमाज अमान्य (कोई नमाज नहीं) है।"
✨Reference : Sahih al-Bukhari 756
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حَدَّثَنَا مُسَدَّدٌ، قَالَ حَدَّثَنَا إِسْمَاعِيلُ بْنُ إِبْرَاهِيمَ، قَالَ أَخْبَرَنَا ابْنُ جُرَيْجٍ، قَالَ أَخْبَرَنِي عَطَاءٌ، أَنَّهُ سَمِعَ أَبَا هُرَيْرَةَ ـ رضى الله عنه ـ يَقُولُ فِي كُلِّ صَلاَةٍ يُقْرَأُ، فَمَا أَسْمَعَنَا رَسُولُ اللَّهِ صلى الله عليه وسلم أَسْمَعْنَاكُمْ، وَمَا أَخْفَى عَنَّا أَخْفَيْنَا عَنْكُمْ، وَإِنْ لَمْ تَزِدْ عَلَى أُمِّ الْقُرْآنِ أَجْزَأَتْ، وَإِنْ زِدْتَ فَهُوَ خَيْرٌ‏.
۞"अबु हरैरह रजि. से रिवायत है,उन्होंने फ़र्माया की हर नमाज में किरअत करना चाहिए,फिर जिन नमाजो में रसूलुल्लाह (ﷺ) ने हमें जोर से सुनाया,उनमे तुम्हे जोर से सुनाते है और जिनमें आपने पढ़कर नहीं सुनाया, उनमे हम भी तुम्हे नहीं सुनाते है और अगर तू सुरः फातिहा से ज्यादा किरअत न करे तो भी काफी है और अगर ज्यादा पढ़ ले तो अच्छा है।"
Reference : Sahih al-Bukhari 772
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وَحَدَّثَنَاهُ إِسْحَاقُ بْنُ إِبْرَاهِيمَ الْحَنْظَلِيُّ، أَخْبَرَنَا سُفْيَانُ بْنُ عُيَيْنَةَ، عَنِ الْعَلاَءِ، عَنْ أَبِيهِ، عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ، عَنِ النَّبِيِّ صلى الله عليه وسلم قَالَ ‏"‏ مَنْ صَلَّى صَلاَةً لَمْ يَقْرَأْ فِيهَا بِأُمِّ الْقُرْآنِ فَهْىَ خِدَاجٌ - ثَلاَثًا - غَيْرُ تَمَامٍ ‏"‏ ‏.‏ فَقِيلَ لأَبِي هُرَيْرَةَ إِنَّا نَكُونُ وَرَاءَ الإِمَامِ ‏.‏ فَقَالَ اقْرَأْ بِهَا فِي نَفْسِكَ فَإِنِّي سَمِعْتُ رَسُولَ اللَّهِ صلى الله عليه وسلم يَقُولُ ‏"‏ قَالَ اللَّهُ تَعَالَى قَسَمْتُ الصَّلاَةَ بَيْنِي وَبَيْنَ عَبْدِي نِصْفَيْنِ وَلِعَبْدِي مَا سَأَلَ فَإِذَا قَالَ الْعَبْدُ ‏{‏ الْحَمْدُ لِلَّهِ رَبِّ الْعَالَمِينَ‏}‏ ‏.‏ قَالَ اللَّهُ تَعَالَى حَمِدَنِي عَبْدِي وَإِذَا قَالَ ‏{‏ الرَّحْمَنِ الرَّحِيمِ‏}‏ ‏.‏ قَالَ اللَّهُ تَعَالَى أَثْنَى عَلَىَّ عَبْدِي ‏.‏ وَإِذَا قَالَ ‏{‏ مَالِكِ يَوْمِ الدِّينِ‏}‏ ‏.‏ قَالَ مَجَّدَنِي عَبْدِي - وَقَالَ مَرَّةً فَوَّضَ إِلَىَّ عَبْدِي - فَإِذَا قَالَ ‏{‏ إِيَّاكَ نَعْبُدُ وَإِيَّاكَ نَسْتَعِينُ‏}‏ ‏.‏ قَالَ هَذَا بَيْنِي وَبَيْنَ عَبْدِي وَلِعَبْدِي مَا سَأَلَ ‏.‏ فَإِذَا قَالَ ‏{‏ اهْدِنَا الصِّرَاطَ الْمُسْتَقِيمَ * صِرَاطَ الَّذِينَ أَنْعَمْتَ عَلَيْهِمْ غَيْرِ الْمَغْضُوبِ عَلَيْهِمْ وَلاَ الضَّالِّينَ‏}‏ ‏.‏ قَالَ هَذَا لِعَبْدِي وَلِعَبْدِي مَا سَأَلَ ‏"‏ ‏.‏ قَالَ سُفْيَانُ حَدَّثَنِي بِهِ الْعَلاَءُ بْنُ عَبْدِ الرَّحْمَنِ بْنِ يَعْقُوبَ دَخَلْتُ عَلَيْهِ وَهُوَ مَرِيضٌ فِي بَيْتِهِ فَسَأَلْتُهُ أَنَا عَنْهُ ‏
۞"अबु हुरैरह रजि. से रिवायत है की रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया,"जिस ने नमाज पढ़ी और इसमें कुरआन (सूरह फातिहा) ना पढ़ी तो उसकी नमाज नाकिस (अधूरी है, पूरी नहीं) है।
कहा इसको तीन बार,नही पूरी होती (नमाज बिना फातिहा के) 
अबु हुरैरह रजि. से पूछा गया की हम इमाम के पीछे होते है तो?
आप (रजि.) ने फ़र्माया (हाँ) पढ़  अपने आप में
 /"فِي نَفْسِك"َ}
Yourself/मन में/आहिस्ता/धीरे से},
क्योंकि  मैंने रसूलुल्लाह (ﷺ) से सुना है की अल्लाह तआला ने फ़र्माया नमाज मेरे और बन्दे के दरमियान आधी तक़सीम हो गई है,और जो मेरा बन्दा जो भी मांगेगा उसे वही मिलेगा।
चुनाँचे बन्दा जब कहता है,
"الْحَمْدُ لِلَّهِ رَبِّ الْعَالَمِينَ‏"
(तमाम तारीफ़ अल्लाह ही के लिये है जो तमाम क़ायनात का रब है)
तो अल्लाह तआला फर्माता है "मेरा बन्दा मेरी प्रशंसा (तारीफ़) करता है।"
और जब वह (बन्दा) कहता है,
"‏ الرَّحْمَنِ الرَّحِيمِ‏"
(वह मेहरबान,रहम करने वाला है)
तो अल्लाह तआला फरमाता है "मेरे बन्दे ने मेरी खूबी (गुणगान) बयान करता है"
वह (बन्दा) कहता है,
" مَالِكِ يَوْمِ الدِّينِ" 
(बदले के दिन का मालिक)
तो अल्लाह तआला फरमाता है "बन्दे ने मेरी खूबी और बुजुर्गी बयान की और कभी फरमाता है के बन्दा ने अपने कामो को मेरे सुपुर्द कर दिया" 
वह (बन्दा) कहता है,
"إِيَّاكَ نَعْبُدُ وَإِيَّاكَ نَسْتَعِينُ"
(हम सिर्फ तेरी ही इबादत करते है और सिर्फ तुझ ही से मदद चाहते है)
तो अल्लाह तआला फरमाता है "ये मेरे और बन्दे के बीच है और मेरे बन्दे को जो वो मांगे मिलेगा"
वह (बन्दा) कहता है,
" اهْدِنَا الصِّرَاطَ الْمُسْتَقِيمَ" 

" صِرَاطَ الَّذِينَ أَنْعَمْتَ عَلَيْهِمْ غَيْرِ الْمَغْضُوبِ عَلَيْهِمْ وَلاَ الضَّالِّينَ"
(हमें सीधे रास्ते की हिदायत दे। 
उन लोगों का रास्ता जिन पर तूने इनाम फ़रमाया, जो माअतूब नहीं हुए, जो भटके हुए नहीं है।)
अल्लाह तआला फरमाता है "ये मेरे बन्दे के लिए है और जो वो मांगे इसे वही मिलेगा"
✨Reference : Sahih Muslim 395
(878)
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حَدَّثَنَا هَنَّادٌ، حَدَّثَنَا عَبْدَةُ بْنُ سُلَيْمَانَ، عَنْ مُحَمَّدِ بْنِ إِسْحَاقَ، عَنْ مَكْحُولٍ، عَنْ مَحْمُودِ بْنِ الرَّبِيعِ، عَنْ عُبَادَةَ بْنِ الصَّامِتِ، قَالَ صَلَّى رَسُولُ اللَّهِ صلى الله عليه وسلم الصُّبْحَ فَثَقُلَتْ عَلَيْهِ الْقِرَاءَةُ فَلَمَّا انْصَرَفَ قَالَ ‏"‏ إِنِّي أَرَاكُمْ تَقْرَءُونَ وَرَاءَ إِمَامِكُمْ ‏"‏ ‏.‏ قَالَ قُلْنَا يَا رَسُولَ اللَّهِ إِي وَاللَّهِ ‏.‏ قَالَ ‏"‏ فَلاَ تَفْعَلُوا إِلاَّ بِأُمِّ الْقُرْآنِ فَإِنَّهُ لاَ صَلاَةَ لِمَنْ لَمْ يَقْرَأْ بِهَا ‏"‏ ‏.‏ قَالَ وَفِي الْبَابِ عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ وَعَائِشَةَ وَأَنَسٍ وَأَبِي قَتَادَةَ وَعَبْدِ اللَّهِ بْنِ عَمْرٍو ‏.‏ قَالَ أَبُو عِيسَى حَدِيثُ عُبَادَةَ حَدِيثٌ حَسَنٌ ‏.‏ وَرَوَى هَذَا الْحَدِيثَ الزُّهْرِيُّ عَنْ مَحْمُودِ بْنِ الرَّبِيعِ عَنْ عُبَادَةَ بْنِ الصَّامِتِ عَنِ النَّبِيِّ صلى الله عليه وسلم قَالَ ‏"‏ لاَ صَلاَةَ لِمَنْ لَمْ يَقْرَأْ بِفَاتِحَةِ الْكِتَابِ ‏"‏ ‏.‏ قَالَ وَهَذَا أَصَحُّ ‏.‏ وَالْعَمَلُ عَلَى هَذَا الْحَدِيثِ فِي الْقِرَاءَةِ خَلْفَ الإِمَامِ عِنْدَ أَكْثَرِ أَهْلِ الْعِلْمِ مِنْ أَصْحَابِ النَّبِيِّ صلى الله عليه وسلم وَالتَّابِعِينَ وَهُوَ قَوْلُ مَالِكِ بْنِ أَنَسٍ وَابْنِ الْمُبَارَكِ وَالشَّافِعِيِّ وَأَحْمَدَ وَإِسْحَاقَ يَرَوْنَ الْقِرَاءَةَ خَلْفَ الإِمَامِ ‏
"قَالَ أَبُو عِيسَى حَدِيثُ عُبَادَةَ حَدِيثٌ حَسَنٌ ‏"
۞"उबादा बिन अस-सामित रजि. से रिवायत करते है की हम सुबह (फज्र) की नमाज में रसूलुल्लाह (ﷺ) के पीछे थे,तो पढा आप (ﷺ) ने कुरआन,तो भारी हुआ उन पर पढ़ना (कुरआन), जब नमाज से फारिग हुए तो फ़र्माया, "शायद तुम अपने इमाम के पीछे पढ़ा करते हो ?" हम ने कहा "हाँ" अल्लाह के रसूल (ﷺ). आप ने फ़र्माया "सिवाय सूरह फातिहा के और कुछ न पढ़ा करो क्योंकि उस शख्स की नमाज नहीं होती जो "सूरह फातिहा" न पढ़े."
✨Grade : Sahih 
✨Reference : Jami` at-Tirmidhi 311
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حَدَّثَنَا أَبُو بَكْرِ بْنُ أَبِي شَيْبَةَ، حَدَّثَنَا إِسْمَاعِيلُ ابْنُ عُلَيَّةَ، عَنِ ابْنِ جُرَيْجٍ، عَنِ الْعَلاَءِ بْنِ عَبْدِ الرَّحْمَنِ بْنِ يَعْقُوبَ، أَنَّ أَبَا السَّائِبِ، أَخْبَرَهُ أَنَّهُ، سَمِعَ أَبَا هُرَيْرَةَ، يَقُولُ قَالَ رَسُولُ اللَّهِ ـ صلى الله عليه وسلم ـ ‏"‏ مَنْ صَلَّى صَلاَةً لَمْ يَقْرَأْ فِيهَا بِأُمِّ الْقُرْآنِ فَهِيَ خِدَاجٌ غَيْرُ تَمَامٍ ‏"‏ ‏.‏ فَقُلْتُ يَا أَبَا هُرَيْرَةَ فَإِنِّي أَكُونُ أَحْيَانًا وَرَاءَ الإِمَامِ ‏.‏ فَغَمَزَ ذِرَاعِي وَقَالَ يَا فَارِسِيُّ اقْرَأْ بِهَا فِي نَفْسِكَ ‏.
۞"हजरत अबु साइब (रजि.) से रिवायत है की अबु हुरैरा (रजि.) कहते है की ,रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया,'जिस आदमी ने नमाज पढ़ी और ना पढ़ी उसमे सूरह फातिहा (उम्मुल कुरान) तो,वह (नमाज) अधूरी है।
मैंने कहा , ओ अबु हुरैरा किसी वक़्त हम होते है पीछे इमाम के (यानी जब भी पढ़े) तो उन्होंने मेरा बायां हाथ पकड़ा और कहा,"ओ फ़ारसी,अपने आप में (मन के अंदर) पढ़ (धीरे से)।""
✨Reference : Sunan Ibn Majah 838
✨Arabic Book Reference : 887
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حَدَّثَنَا دَّثَنَا الْقَعْنَبِيُّ، عَنْ مَالِكٍ، عَنِ الْعَلاَءِ بْنِ عَبْدِ الرَّحْمَنِ، أَنَّهُ سَمِعَ أَبَا السَّائِبِ، مَوْلَى هِشَامِ بْنِ زُهْرَةَ يَقُولُ سَمِعْتُ أَبَا هُرَيْرَةَ، يَقُولُ قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صلى الله عليه وسلم ‏"‏ مَنْ صَلَّى صَلاَةً لَمْ يَقْرَأْ فِيهَا بِأُمِّ الْقُرْآنِ فَهِيَ خِدَاجٌ فَهِيَ خِدَاجٌ فَهِيَ خِدَاجٌ غَيْرُ تَمَامٍ ‏"‏ ‏.‏ قَالَ فَقُلْتُ يَا أَبَا هُرَيْرَةَ إِنِّي أَكُونُ أَحْيَانًا وَرَاءَ الإِمَامِ ‏.‏ قَالَ فَغَمَزَ ذِرَاعِي وَقَالَ اقْرَأْ بِهَا يَا فَارِسِيُّ فِي نَفْسِكَ
۞"हजरत अबु हरैरह रजि. रिवायत करते है की रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया , जिस किसी भी ने नमाज पढ़ी और नहीं पढ़ी उसमे उम्मुल कुरआन (सूरह फातिहा),तो वह (नमाज) अधूरी है,वहअधूरी है,वह अधूरी है,और दोषपूर्ण (deficient) है।
मेने पूछा (रिवायत करने वाले ने) : अबु हुरैरह किसी वक़्त मै इमाम के पीछे नमाज पढ़ रहा हु तो(तो मुझे क्या करना चाहिए) ? 
तो उन्होंने (अबु हुरैरह ने) मेरा हाथ दबाया और कहा: ओ फारसी,पढ़ इसे अपने आप में (मन के अंदर/inwardly) ..................."
✨Grade : Sahih (Al-Albani rah.)
Reference : Sunan Abi Dawud 821
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✅ सहीह बुखारी 756, हदीस की शरह में अल्लामा कास्तलानी (रह.) फ़र्माते है -'इस हदीस का मकसद यह है की हर रकअत में हर नमाजी ख्वाह इमाम हो,मुंफरिद हो या मुक़्तदी,इमाम आहिस्ता पढ़े या बुलंद आवाज से,सूरह फातिहा हर हाल में जरुरी है।'
✨ कास्तलानी शरह बुखारी

✅ इसी तरह अल्लामा किर्मानी ✨ शरह बुखारी में फ़र्माते है-'इस हदीस में दलील है की सूरह फातिहा इमाम और मुक़्तदी पर हाल में वाजिब है।'

✅ हजरत शाह वली अल्लाह साहब मुहद्दीस देहलवी फ़र्माते है 'अगर इमाम ऊँची आवाज में किरअत पढता है है तो मुक़्तदी इमाम के सकतह* के वक्त पीछे-पीछे अल्हम्दु शरीफ पढता जाए और अगर वह ख़ामोशी से पढता है तो मुक़्तदी को छुट है (जिस तरह चाहे पढ़) ।
*सुरः पढ़ते समय इमाम जहाँ ठहरता है 
उसे सकतह कहते है।
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--------------|    ‏ وَاللَّهُ أَعْلَمُ    ।
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उर्दू स्केन
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