Monday 27 June 2016

कब्र परस्ती का रद्द कुरआन की रौशनी में


Topic
कब्र परस्ती का रद्द कुरआन की रौशनी में
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✅दुआ इबादत हैं।
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حَدَّثَنَا حَفْصُ بْنُ عُمَرَ، حَدَّثَنَا شُعْبَةُ، عَنْ مَنْصُورٍ، عَنْ ذَرٍّ، عَنْ يُسَيْعٍ الْحَضْرَمِيِّ، عَنِ النُّعْمَانِ بْنِ بَشِيرٍ، عَنِ النَّبِيِّ صلى الله عليه وسلم قَالَ  الدُّعَاءُ هُوَ الْعِبَادَةُ‏ قَالَ رَبُّكُمُ ادْعُونِي أَسْتَجِبْ لَكُمْ
۞"हजरत नोमान बिन बशीर रजि. से रिवायत है के रसूलुल्लाह {ﷺ} ने फरमाया : 'दुआ इबादत ही हैं, तुम्हारे रब ने फरमाया :मुझे पुकारो,मै कबूल करूँगा।'
✨Grade : Sahih (Albani rah.)
📚Reference : Sunan Abi Dawud 1479
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۞"हजरत नोमान बिन बशीर रजि. इर्शाद नक़ल करते है के दुआ ही तो इबादत हैं फिर आप {ﷺ} ने ये आयत पढ़ी,
وقالَ رَبُّكُمُ ادْعُونِي أَسْتَجِبْ لَكُمْ إِنَّ الَّذِينَ يَسْتَكْبِرُونَ عَنْ عِبَادَتِي سَيَدْخُلُونَ جَهَنَّمَ دَاخِرِينَ ‏
"और तुम्हारा परवरदिगार इरशाद फ़रमाता है कि तुम मुझसे दुआएं माँगों मैं तुम्हारी (दुआ) क़ुबूल करूँगा जो लोग हमारी इबादत से अकड़ते हैं वह अनक़रीब ही ज़लील व ख्वार हो कर यक़ीनन जहन्नुम दाखिल होंगे"
✨Grade : Hasan Sahih (Tirmiji rah.)
📚Reference : Jami` at-Tirmidhi 3372
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✅पुकारना भी दुआ हैं और दुआ, इबादत हैं।
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☑इन सहीह अहादीस से पता चलता हैं की दुआ, इबादत हैं। इसी तरह पुकारना भी दुआ हैं और दुआ, इबादत हैं।
एक ऐतराज किया जाता हैं की दुआ इबादत तो हैं लेकिन "पुकारना", दुआ या इबादत नहीं हैं।
〰इस गलत फहमी का निवारण इस तरह किया जा सकता हैं की कुरआन में "पुकारना" के लिए  "ﺗَﺪْﻋُﻮ" शब्द आया हैं जिसका तर्जुमा हजरत मौलाना अहमद रजा ख़ाँ बरेलवी द्वारा किये कुरआने मजीद के तर्जुमा : "📚कन्जुल ईमान" के हिंदी अनुवाद में सूरह फातिर,आयत 13 (सफा-695) में "पूजना (इबादत)" किया गया हैं और यही शब्द "ﺗَﺪْﻋُﻮ" का तर्जुमा सुरः फातिर ,आयत 14 में "पुकारना" किया हैं।
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〰इसके अलावा तीनो मसलक के उलमा-ए-किराम (देवबंदी,बरेलवी और अहले हदीस) का नजर सानी शुदा और उन का मुत्ताफिकुन अल्लैह "📚आसान तर्जुमा कुरआन मजीद" किताब के सफा-437 में सुरः फातिर,आयत 13-14 में भी "ﺗَﺪْﻋُﻮ" का तर्जुमा "पुकारना" लिया गया हैं। इससे साबित होता हैं पुकारना भी दुआ हैं और दुआ ही इबादत हैं।

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✅गेरूल्लाह को पुकारना शिर्क और कबीरा गुनाह हैं।
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☑जब पुकारना इबादत हैं और इबादत सिर्फ अल्लाह ही की जानी चाहिए। तो  फिर किसी गैर को पुकारना उसकी इबादत करना यानी मअबूद बनाना हैं जो शिर्क हैं और नाकाबिले माफ़ी जुर्म हैं।

〰पवित्र कुरआन की प्रथम सुरः, Al-Faaitha में अल्लाह तआला फरमाते हैं,
"ﺇِﻳَّﺎﻙَ ﻧَﻌْﺒُﺪُ ﻭَﺇِﻳَّﺎﻙَ ﻧَﺴْﺘَﻌِﻴﻦ"
"हम तेरी ही इबादत करते हैं, और तुझ ही से मदद मांगते है।"
✨Al-Faaitha (1 :5)
स्पष्ट हैं की दुआ बड़ी अहम किस्म की इबादत हैं और इबादत सिर्फ अल्लाह का हक़ हैं। यानी अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लायक नहीं।
हम जानते हैं की नमाज अल्लाह की इबादत हैं, इसलिए नमाज किसी रसूल या वली के लिए पढ़नी जाइज नहीं, इसी तरह अल्लाह तआला के अतिरिक्त किसी नबी या वली से दुआ मांगी जाये तो यह भी जायज न होगी। वोह मुसलमान जो या रसूलुल्लाह,या गौस पाक और फ़लाँ मदद करो,फ़रियादरसी करो, कहते हैं तो यकींनन यह दुआ ही हैं और अल्लाह तआला के अतिरिक्त दुसरो की इबादत भी। अल्लाह के अतिरिक्त दुसरो से दुआ माँगना शिर्क हैं जिसे अल्लाह तआला बिना तौबा के बिल्कुल माफ़ नहीं करेगा।
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✅कुरआन शरीफ से दलील
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{ﻗُﻞْ ﺇِﻧَّﻤَﺎ ﺃَﺩْﻋُﻮ ﺭَﺑِّﻲ ﻭَﻻَ ﺃُﺷْﺮِﻙُ ﺑِﻪِ ﺃَﺣَﺪًا}
"(आप ﷺ) कह दीजिये की मै तो केवल अपने रब की इबादत करता हु और उस के साथ किसी को साझीदार नहीं बनाता"
{ﻗُﻞْ ﺇِﻧِّﻲ ﻻَ ﺃَﻣْﻠِﻚُ ﻟَﻜُﻢْ ﺿَﺮًّا ﻭَﻻَ ﺭَﺷَﺪًا}
"कह दीजिये की मुझे तुम्हारे लिए किसी फायदे-नुकसान का हक़ नहीं"
✨Al-Jinn (72 :20-21)

ﻳَﺎ ﺃَﻳُّﻬَﺎ اﻟﻨَّﺎﺱُ ﺿُﺮِﺏَ ﻣَﺜَﻞٌ ﻓَﺎﺳْﺘَﻤِﻌُﻮا ﻟَﻪُ ۚ ﺇِﻥَّ اﻟَّﺬِﻳﻦَ ﺗَﺪْﻋُﻮﻥَ ﻣِﻦْ ﺩُﻭﻥِ اﻟﻠَّﻪِ ﻟَﻦْ ﻳَﺨْﻠُﻘُﻮا ﺫُﺑَﺎﺑًﺎ ﻭَﻟَﻮِ اﺟْﺘَﻤَﻌُﻮا ﻟَﻪُ ۖ ﻭَﺇِﻥْ ﻳَﺴْﻠُﺒْﻬُﻢُ اﻟﺬُّﺑَﺎﺏُ ﺷَﻴْﺌًﺎ ﻻَ ﻳَﺴْﺘَﻨْﻘِﺬُﻭﻩُ ﻣِﻨْﻪُ ۚ ﺿَﻌُﻒَ اﻟﻄَّﺎﻟِﺐُ ﻭَاﻟْﻤَﻄْﻠُﻮﺏُ
"हे लोगो! एक मिसाल दी जा रही हैं, जरा ध्यान से सुनो, अल्लाह के सिवाय जिन-जिन को पुकारते रहे वे एक मक्खी तो पैदा नहीं कर सकते अगर सारे के सारे जमा हो जाएं, बल्कि अगर मक्खी उन से कोई चीज ले भागे तो यह उसे भी छीन नहीं सकते। बड़ा कमजोर हैं मांगने वाला और बहुत कमजोर हैं जिस से माँगा जा रहा हैं।"
✨Al-Hajj (22 :73)

ﻳُﻮﻟِﺞُ اﻟﻠَّﻴْﻞَ ﻓِﻲ اﻟﻨَّﻬَﺎﺭِ ﻭَﻳُﻮﻟِﺞُ اﻟﻨَّﻬَﺎﺭَ ﻓِﻲ اﻟﻠَّﻴْﻞِ ﻭَﺳَﺨَّﺮَ اﻟﺸَّﻤْﺲَ ﻭَاﻟْﻘَﻤَﺮَ ﻛُﻞٌّ ﻳَﺠْﺮِﻱ ﻷَِﺟَﻞٍ ﻣُﺴَﻤًّﻰ ۚ ﺫَٰﻟِﻜُﻢُ اﻟﻠَّﻪُ ﺭَﺑُّﻜُﻢْ ﻟَﻪُ اﻟْﻤُﻠْﻚُ ۚ ﻭَاﻟَّﺬِﻳﻦَ ﺗَﺪْﻋُﻮﻥَ ﻣِﻦْ ﺩُﻭﻧِﻪِ ﻣَﺎ ﻳَﻤْﻠِﻜُﻮﻥَ ﻣِﻦْ ﻗِﻄْﻤِﻴﺮٍ
"वह रात को दिन में और दिन को रात में दाखिल कराता हैं, और सूरज और चाँद को उसी ने काम में लगा दिया हैं, हर एक मुकर्रर मुद्दत तक चल रहे हैं। यही हैं अल्लाह तुम सबका रब, इसी की सल्तनत हैं और जिन्हें तुम उस में सिवाय पुकार रहे हो वह तो खजूर की गुठली के छिलके के भी मालिक नहीं।"
ﺇِﻥْ ﺗَﺪْﻋُﻮﻫُﻢْ ﻻَ ﻳَﺴْﻤَﻌُﻮا ﺩُﻋَﺎءَﻛُﻢْ ﻭَﻟَﻮْ ﺳَﻤِﻌُﻮا ﻣَﺎ اﺳْﺘَﺠَﺎﺑُﻮا ﻟَﻜُﻢْ ۖ ﻭَﻳَﻮْﻡَ اﻟْﻘِﻴَﺎﻣَﺔِ ﻳَﻜْﻔُﺮُﻭﻥَ ﺑِﺸِﺮْﻛِﻜُﻢْ ۚ ﻭَﻻَ ﻳُﻨَﺒِّﺌُﻚَ ﻣِﺜْﻞُ ﺧَﺒِﻴﺮٍ
"अगर तुम उन्हें पुकारो तो वे तुम्हारी पुकार सुनते ही नहीं और अगर (मान लिया की) सुन भी ले तो कुबूल नहीं करेंगे,बल्कि कयामत के दिन तुम्हारे शिर्क का साफ़ इनकार कर देंगे और आप को कोई भी (अल्लाह तआला) जैसा जानकार खबरे न देगा"
✨Faatir (35 :13-14)

ﺇِﻥَّ اﻟﻠَّﻪَ ﻻَ ﻳَﻐْﻔِﺮُ ﺃَﻥْ ﻳُﺸْﺮَﻙَ ﺑِﻪِ ﻭَﻳَﻐْﻔِﺮُ ﻣَﺎ ﺩُﻭﻥَ ﺫَٰﻟِﻚَ ﻟِﻤَﻦْ ﻳَﺸَﺎءُ ۚ ﻭَﻣَﻦْ ﻳُﺸْﺮِﻙْ ﺑِﺎﻟﻠَّﻪِ ﻓَﻘَﺪِ اﻓْﺘَﺮَﻯٰ ﺇِﺛْﻤًﺎ ﻋَﻈِﻴﻤًﺎ
"बेशक अल्लाह (उस को) माफ़ नहीं करता जो उस का शरीक ठहराए, और उस के सिवा जिसे चाहे माफ़ कर दे,और जो अल्लाह के साथ शिर्क करे उस ने अल्लाह पर भारी आरोप घड़ा"
✨An-Nisaa (4 :48)

☑अल्लाह तआला के उपरोक्त फरमान के मुताबिक़ अल्लाह को छोड़कर दुसरो से मदद तलब करना जायज नहीं। बात एकदम साफ़ हैं की किसी व्यक्ति द्वारा यह कहना की या रसूलुल्लाह मदद कर, या अली मदद इत्यादि तो यह कुरआन और हदीस की रौशनी में कत्तई नाजाइज़,शिर्क और गुनाहे कबीरा हैं, जिसे बगैर सच्ची और पक्की तौबा के अल्लाह तआला कभी माफ़ नहीं फरमाएगा।
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✅हनफ़ी बरेलवी उलेमा का एतराज की "इन कुर्आनी आयते को मुसलमानो पर फिट नहीं किया जा सकता"
का जवाब कुरआन और हदीस की रौशनी में
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☑लेकिन कुरआन की ये आयते करीमा हनफ़ी बरेलवी हजरात को बतौर दलील पेश की जाती हैं तो इस दलील को बरेलवी उलेमा यह बोलकर रद्द कर देते हैं की अम्बिया किराम और औलिया अल्लाह मिन्दुनिल्लाह (ﻣِﻦْ ﺩُﻭﻥِ اﻟﻠَّﻪِ) में दाखिल नहीं हैं , ये कुर्आनी आयते सिर्फ और सिर्फ बुतो की इबादत की मुमानियत (मनाही) और मक्का के मुशरिकों के लिए अल्लाह ने नाजिल फ़रमाई हैं ,औलिया अल्लाह से इसका लेना देना नहीं हैं और इन आयते करीमा को मुसलमानो के ऊपर फिट नहीं किया जा सकता और दलील "तफ़सीर इब्ने कसीर" की तफ़सीर से देते हैं।

〰इसका जवाब इस तरह हैं:-
सुरः हज्ज ,आयत 73 और इसी तरह से गेरुल्लाह को पुकारने की मनाही जिन-जिन आयतो में हैं जैसे सुरः :- निसा (4 :117), अनआम (6 :71), आराफ़ (7 :37), रअद (13 :14), नहल (16 :20), हज्ज (22 :12), अहकाफ (46 :5) आदि में "ﻣِﻦْ ﺩُﻭﻥِ اﻟﻠَّﻪِ" आया हैं जिसका अर्थ "अल्लाह को सिवा" होता हैं।

〰नूह अल्लैहिस्सलाम ने जब अपनी क़ौम को तौहीद की दवअत दी,
अल्फ़ाज़ कुरआन शरीफ के हैं:-
{ﺃَﻥِ اﻋْﺒُﺪُﻭا اﻟﻠَّﻪَ ﻭَاﺗَّﻘُﻮﻩُ ﻭَﺃَﻃِﻴﻌُﻮﻥِ}
"कि तुम लोग अल्लाह की इबादत करो और उसी से डरो और मेरी इताअत करो"
✨Nooh (71 :3)

तो उनकी कौम ने उन्हें जवाब दिया,
अल्फ़ाज़ कुरआन शरीफ के हैं:-
ﻭَﻗَﺎﻟُﻮا ﻻَ ﺗَﺬَﺭُﻥَّ ﺁﻟِﻬَﺘَﻜُﻢْ ﻭَﻻَ ﺗَﺬَﺭُﻥَّ ﻭَﺩًّا ﻭَﻻَ ﺳُﻮَاﻋًﺎ ﻭَﻻَ ﻳَﻐُﻮﺙَ ﻭَﻳَﻌُﻮﻕَ ﻭَﻧَﺴْﺮًا
"और (उलटे) कहने लगे कि आपने माबूदों को हरगिज़ न छोड़ना और न वद को और सुआ को और न यगूस और यऊक़ व नस्र को छोड़ना"
✨Nooh (71 :23)

۞"अब्दुल्लाह बिन अब्बास रजि.फरमाते हैं की ये कौमे नूह के नेक मुर्दो के नाम हैं जब वो मर गए तो शैतान ने उनकी कौम के दिल में ख्याल डाला की जिन मुक़ामात पर ये औलियाअल्लाह बैठा करते थे वहाँ उनके बुत बना कर खड़े कर दो (ताकि उनकी याद ताजा रहे,वो अबतक उनको पूजते न थे) जब ये यादगार बनाने वाले इंतेक़ाल कर गए तो बाद वालो ने उन बुजुर्गो के बुतों की इबादत शुरू कर दी। बुत हजरत नूह अलैहिस्सलाम की क़ौम में पूजे जाते थे बाद में वही अरब में पूजे (इबादत) जाने लगे।'
📚Reference   : Sahih Al-Bukhari  4920

۞"अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास रजि. ने लात और ऊज्जा (मुशरिकीने मक्का के मअबूद) के बारे में फरमाया की लात एक आदमी था जो हाजियों के लिए सत्तू घोलता था"
📚Reference   : Sahih Al-Bukhari

〰इन हवालों से बात वाजेह हो जाती हैं की मुशरिक लोग पहले के जमाने से ही नेक बुजुर्ग हजरात और औलिया अल्लाह की इबादत करते हुए आ रहे है। फर्क सिर्फ इतना हैं की मुशरिकीने मक्का बुतों की इबादत करता था आज के मुशरिक नेक लोगो और औलिया अल्लाह की कब्रो को पुख्ता करके और इमारत बना कर उनसे मदद तलब कर रहा हैं जो की सरासर उनको मअबूद बना कर उनकी इबादत करना ही हैं।
और ये काम भी अल्लाह के रसूल {ﷺ} की नाफ़रमानी करके हो रहा हैं क्योंकि हदीस-ए-पाक में आता हैं :
جَابِرٍ، قَالَ نَهَى رَسُولُ اللَّهِ صلى الله عليه وسلم أَنْ يُجَصَّصَ الْقَبْرُ وَأَنْ يُقْعَدَ عَلَيْهِ وَأَنْ يُبْنَى عَلَيْه
۞"हजरत जाबिर रजि. से रिवायत है की रसूलुल्लाह (ﷺ) ने पुख्ता कब्रे बनाने और और उनपर बैठने और इमारत तामीर करने से मना फ़र्माया है"
📚Reference : Sahih Muslim 2245 (970)

〰इस तरह से मौजूदा जमाने में कब्रो को बुत बना लिया गया हैं क्योंकि कोई भी पत्थर बुत तब बनता हैं जब लोगो की आस्था उससे जुड़ जाती लोग उस पत्थर को शक्तिशाली मानते हैं और मुसीबत व परेशानियो में अपनी हाजतरवाई के लिए उसे पुकारते हैं और यही हाल आजकल औलिया अल्लाह के मजारो का हैं।

और अल्लाह को छोड़कर अल्लाह के नेक बन्दों की इबादत करने वालो के लिए ही अल्लाह ने कुरआन में फरमाया:-
ﺇِﻥَّ اﻟَّﺬِﻳﻦَ ﺗَﺪْﻋُﻮﻥَ ﻣِﻦْ ﺩُﻭﻥِ اﻟﻠَّﻪِ ﻋِﺒَﺎﺩٌ ﺃَﻣْﺜَﺎﻟُﻜُﻢْ ۖ ﻓَﺎﺩْﻋُﻮﻫُﻢْ ﻓَﻠْﻴَﺴْﺘَﺠِﻴﺒُﻮا ﻟَﻜُﻢْ ﺇِﻥْ ﻛُﻨْﺘُﻢْ ﺻَﺎﺩِﻗِﻴﻦَ
"बेशक तुम अल्लाह को छोड़कर जिन को पुकारते हो (इबादत करते) हो वह भी तुम ही जैसे बन्दे हैं, तो तुम उनको पुकारो तो चाहिए था की वे तुम्हे जवाब दे अगर तुम सच्चे हो।"
✨Al-A'raaf (7 :194)

〰अल्लाह तआला ने ईसा अलैहिस्सलाम और उनकी उनकी वालिदा मोहतरमा मरियम अलैहिस्सलाम को मिन्दुनिल्लाह (अल्लाह के अलावा/सिवा) में शामिल किया :-
ﻭَﺇِﺫْ ﻗَﺎﻝَ اﻟﻠَّﻪُ ﻳَﺎ ﻋِﻴﺴَﻰ اﺑْﻦَ ﻣَﺮْﻳَﻢَ ﺃَﺃَﻧْﺖَ ﻗُﻠْﺖَ ﻟِﻠﻨَّﺎﺱِ اﺗَّﺨِﺬُﻭﻧِﻲ ﻭَﺃُﻣِّﻲَ ﺇِﻟَٰﻬَﻴْﻦِ ﻣِﻦْ ﺩُﻭﻥِ اﻟﻠَّﻪِ ۖ ﻗَﺎﻝَ ﺳُﺒْﺤَﺎﻧَﻚَ ﻣَﺎ ﻳَﻜُﻮﻥُ ﻟِﻲ ﺃَﻥْ ﺃَﻗُﻮﻝَ ﻣَﺎ ﻟَﻴْﺲَ ﻟِﻲ ﺑِﺤَﻖٍّ ۚ ﺇِﻥْ ﻛُﻨْﺖُ ﻗُﻠْﺘُﻪُ ﻓَﻘَﺪْ ﻋَﻠِﻤْﺘَﻪُ ۚ ﺗَﻌْﻠَﻢُ ﻣَﺎ ﻓِﻲ ﻧَﻔْﺴِﻲ ﻭَﻻَ ﺃَﻋْﻠَﻢُ ﻣَﺎ ﻓِﻲ ﻧَﻔْﺴِﻚَ ۚ ﺇِﻧَّﻚَ ﺃَﻧْﺖَ ﻋَﻼَّﻡُ اﻟْﻐُﻴُﻮﺏِ
"और (वह वक़्त भी याद करो) जब अल्लाह तआला कहेगा की ईसा इब्ने मरियम,क्या तुम ने उन लोगो से कह दिया था की मुझ को और मेरी माँ को अल्लाह के सिवाय माबूद बना लेना? (ईसा) कहेंगे की मै  तो तुझे मुनज्जह (पाक) समझता हु, मुझ को किस तरह से शोभा (जेब) देती की मै ऐसी बात कहता जिस के कहने क मुझे कोई हक़ नहीं, अगर मेने कहा होगा तो तुझ को उस का इल्म होगा,तू तो मेरे दिल की बात जानता हैं ,मै तेरे जी में जो कुछ हैं उस को नहीं जानता,सिर्फ तू ही गैबो का जानकार हैं।"
✨Al-Maaida (5 :116)

〰जब अल्लाह के नबी ईसा अलैहिस्सलाम और उनकी वालिदा मरियम अल्लैहिस्सलाम मिन्दुनिल्लाह  {ﻣِﻦْ ﺩُﻭﻥِ اﻟﻠَّﻪِ} में दाखिल हैं तो यह दावा गलत हैं की अम्बिया और औलिया मिन्दुनिल्लाह में नहीं मिन्दुनिल्लाह में सिर्फ बुत शामिल हैं।

〰मजीद देखे एक और आयत में अल्लाह ने उलमा,दुर्वेशो और ईसा इब्ने मरियम अलैहिस्सलाम को मिन्दुनिल्लाह में शामिल किया हैं :
اﺗَّﺨَﺬُﻭا ﺃَﺣْﺒَﺎﺭَﻫُﻢْ ﻭَﺭُﻫْﺒَﺎﻧَﻬُﻢْ ﺃَﺭْﺑَﺎﺑًﺎ ﻣِﻦْ ﺩُﻭﻥِ اﻟﻠَّﻪِ ﻭَاﻟْﻤَﺴِﻴﺢَ اﺑْﻦَ ﻣَﺮْﻳَﻢَ ﻭَﻣَﺎ ﺃُﻣِﺮُﻭا ﺇِﻻَّ ﻟِﻴَﻌْﺒُﺪُﻭا ﺇِﻟَٰﻬًﺎ ﻭَاﺣِﺪًا ۖ ﻻَ ﺇِﻟَٰﻪَ ﺇِﻻَّ ﻫُﻮَ ۚ ﺳُﺒْﺤَﺎﻧَﻪُ ﻋَﻤَّﺎ ﻳُﺸْﺮِﻛُﻮﻥَ
"उन लोगो ने अल्लाह को छोड़कर अपने आलिमो और दरवेशों को रब बनाया हैं, मरियम के बेटे मसीह (ईसा) को,अगरचे कि उन्हें एक अकेले अल्लाह ही की इबादत का हुक्म दिया गया था,जिसके सिवाय कोई इबादत के लायक नहीं,वह उनके शिर्क करने से पाक हैं।"
✨At-Tawba (9 :31)

〰जब उलमा (आलिम), दुर्वेशों और ईसा अलै. मिन्दुनिल्लाह में दाखिल हैं तो इससे पता चला की मिन्दुनिल्लाह से सिर्फ बुत मुराद नहीं, बल्कि अल्लाह तआला के अलावा हर वो मखलूक जिसको अल्लाह के अलावा पुकारा/इबादत की जाएं,
भले ही वो बुरे कामो से मुकम्मिल तौर पर बरी हो जैसे अम्बिया,फ़रिश्ते, और औलिया अल्लाह जैसी बेहतरीन हस्तियाँ भी मिन्दुनिल्लाह में शामिल हैं। इन जलीलुलकद्र हस्तियों ने खुसूसन अम्बिया अलैहिस्सलाम ने तो अपनी तमाम कोशिशे इस बात को समझाने और मनवाने में लगा दी की अल्लाह एक हैं और इबादत का हक़ सिर्फ उसी को पहुचता हैं।

ﺃَﻻَ ﻟِﻠَّﻪِ اﻟﺪِّﻳﻦُ اﻟْﺨَﺎﻟِﺺُ ۚ ﻭَاﻟَّﺬِﻳﻦَ اﺗَّﺨَﺬُﻭا ﻣِﻦْ ﺩُﻭﻧِﻪِ ﺃَﻭْﻟِﻴَﺎءَ ﻣَﺎ ﻧَﻌْﺒُﺪُﻫُﻢْ ﺇِﻻَّ ﻟِﻴُﻘَﺮِّﺑُﻮﻧَﺎ ﺇِﻟَﻰ اﻟﻠَّﻪِ ﺯُﻟْﻔَﻰٰ ﺇِﻥَّ اﻟﻠَّﻪَ ﻳَﺤْﻜُﻢُ ﺑَﻴْﻨَﻬُﻢْ ﻓِﻲ ﻣَﺎ ﻫُﻢْ ﻓِﻴﻪِ ﻳَﺨْﺘَﻠِﻔُﻮﻥَ ۗ ﺇِﻥَّ اﻟﻠَّﻪَ ﻻَ ﻳَﻬْﺪِﻱ ﻣَﻦْ ﻫُﻮَ ﻛَﺎﺫِﺏٌ ﻛَﻔَّﺎﺭٌ
"सुनो! अल्लाह (तआला) ही के लिए खालिस इबादत करना हैं और जिन लोगों ने उस के सिवाय औलिया बना रखे हैं (और कहते हैं) की हम इनकी इबादत केवल इसलिए करते हैं की यह (बुजुर्ग) अल्लाह के करीब हम को पंहुचा दे,ये लोग जिस बारे में इख़्तिलाफ़ कर रहे हैं उसका (इंसाफ वाला) फैसला अल्लाह (तआला) खुद कर देगा, झूठे और नाशुक्रे (लोगों) को अल्लाह (तआला) रास्ता नही दिखता।"
✨Az-Zumar (39 :3)

"और उन में से ज्यादातर लोग अल्लाह पर ईमान रखने के बावजूद भी मुशरिक ही हैं "
✨Yusuf (12:106)

〰इन तमाम दलीलो से यह साबित होता हैं की ये कुरआन की बाज आयते गेरुल्लाह को पुकारने के रद्द में उतरी हैं और गेरुल्लाह में तमाम मख्लूक़ शामिल हैं जिन्हें अल्लाह के सिवा पुकारा जाऍ जिनमे तमाम अम्बिया और औलिया किराम व नेक लोग शामिल हैं इसलिए इन आयतो को गेरूल्लाह को पुकार कर शिर्क करने वाले मुसलमानों पर फिट किया जा सकता हैं।

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✅  हनफ़ी बरेलवी मसलक के बहुत बड़े आलिम हजरत ख्वाजा गुलाम फरीद का अपनी किताब में फ़तवा  “गैरुल्लाह से मदद माँगना शिर्क हैं” 
बाब – वहाबी और शिया मजहब
इबारत  वहाबी कहते हैं की अम्बिया और औलिया से मदद माँगना शिर्क है, “बेशक गैर खुदा (अल्लाह) से इमदाद (मदद) माँगना शिर्क हैंतौहीद ये हैं की हक तआला (अल्लाह) से मदद तलब करे चुनांचे - 

اِیَّاکَ نَعۡبُدُ وَ اِیَّاکَ نَسۡتَعِیۡنُ
तर्जुमा -  “हम तेरी ही इबादत करते हैं और तुझ ही से मदद माँगते हैं।“ का मतलब यहीं हैं।
📚Reference : Maqabis ul Majalis Malfoozat e *Hazrat Khawaja Gulam Fareed Ra* Ka Mokammal Mustanad Majmua *Safa no 796 se 797 



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✅"तफ़सीर इब्ने कसीर" से दलील
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☑और इस की ताईद के लिए इस्लामी दुनिया में कुरआन की सबसे मोतबर तफ़्सीर लिखने वाले हाफिज इस्माइल इब्ने कसीर रह. की किताब "तफ़्सीर इब्ने कसीर" जिसपर सभी मसलक के उलेमा मुत्तफ़िक हैं उसी किताब से दलील पर गौर फरमाए:-
इस किताब के सफा 748 में सुरः फातिर,आयत 13-14 की तफ़्सीर में इब्ने कसीर रह. लिखते हैं
۞".......अल्लाह...ही दरअसल लायके इबादत हैं और वही सब का पालने वाला हैं। इस के सिवा कोई भी लायके इबादत नहीं। जिन बुतों को और अल्लाह के सिवा जिन-जिन को लोग पुकारते हैं ख्वाह वो फ़रिश्ते ही क्यों न हो और अल्लाह के पास बड़े दर्जे रखने वाले ही क्यों न हो लेकिन सब के सब इस के सामने महज मजबूर और बिलकुल बेबस हैं। खजूर की गुठली के ऊपर के बारीक छिलके जितनी चीज का भी इन्हें इख़्तियार नहीं। आसमान व जमीन के हकीर से हकीर चीज के भी वो मालिक नहीं जिन जिन को तुम अल्लाह के सिवा पुकारते हो वो तुम्हारी आवाज सुनते ही नहीं। तुम्हारे ये बुत वगेरह बेजान चीजे कान वाली नहीं जो सुन सके। बेजान चीजे भी कही किसी की सुन सकती हैं? और बालफ्ज तुम्हारी पुकार सुन ले तो भी चूँकि इन के कब्जे में कोई चीज नहीं इस लिये वो तुम्हारी हाजत पूरी कर नहीं सकते। कयामत के दिन तुम्हारे इस शिर्क से वो इनकारी हो जाएंगे। तुम से वो बेजार नजर आएंगे।"
📚Reference : Tafsir Ibn Kathir, Tafsir Sura Faatir (35 :13-14), Page Number 748
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✅अन्त में कुछ मन की बात
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☑अल्लाह तआला ने  कुरआन को तमाम मुसलमानों को नसीहत और हिदायत के लिए नाजिल किया हैं।
अल्लाह कुरआन में फरमाता हैं
"ऐ लोगो! तुम्हारे रब की तरफ से एक ऐसी चीज (कुरआन) आई हैं जो नसीहत हैं और दिलो में जो (रोग) हैं उन के लिए शिफ़ा हैं, और हिदायत करने वाली हैं और रहमत हैं ईमान वालो के लिए"
"आप {ﷺ} कह दीजिये की बस लोगो को अल्लाह के फ़ज़्ल और रहमत पर खुश होना चाहिए,वह उस से कही ज्यादा बेहतर हैं जिसको वह जमा कर रहे हैं"
✨Yunus (10:57-58)

☑रसूलुल्लाह {ﷺ} ने फर्माया:-
‏أَمَّا بَعْدُ فَإِنَّ خَيْرَ الْحَدِيثِ كِتَابُ اللَّهِ وَخَيْرُ الْهُدَى هُدَى مُحَمَّدٍ وَشَرُّ الأُمُورِ مُحْدَثَاتُهَا وَكُلُّ بِدْعَةٍ ضَلاَلَةٌ
۞"अमा बाद,बेहतरीन चीज अल्लाह की किताब हैं और बेहतरीन तरीका मुहम्मद {ﷺ} का तरीका हैं। और बदतरीन काम नई ईजाद करदा काम (बिदअतें) हैं और हर बिदअत गुमराही हैं।"
📚Reference : Sahih Muslim 2005 (867)

〰इतना ग़ज़ब की आँख से न देख ऐ दोज़ख़,
बड़ा रहीम है वो , जिसका गुनाहगार हूँ मैं।
न कर मोहताज़ मुझे , किसी का इस ज़माने में ,
क्या कमी है या रब,  तेरे इस ख़ज़ाने में।

〰अल्लाह तआला से दुआ हैं की,
अल्लाह हमारे इल्म में बढ़ोतरी पैदा कर दीजिये और हमें दीन-ए-हक़ इस्लाम की सही समझ अता कीजिए।
आमीन

अल्लाह मुझे,मेरे भाइयो,मेरे दोस्तों,मेरे रिश्तेदारो और मेरे संपर्क में आने वाले हर व्यक्ति को कुरआन और हदीस के रास्ते पर चलने की तौफीक अता फर्मा।
आमीन

अल्लाह हम सभी मुसलमानो को शिर्क व बिदअत से बहुत दूर रख और हमें दुनिया व आख़िरत में कामयाबी अता कर।
आमीन
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मेरे पास "तफ़सीर इब्ने कसीर" अलग-अलग 2 किताबे PDF में मौजूद हैं इसलिए एक और स्केन दूसरी किताब वाला लगा रहा हुँ
📚Tafsir Ibn Kathir, Tafsir Sura Faatir (35 :13-14), Page Number 748
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Lables:-

Gairullah Se Madad Mangne Ka Rad

BRELVI EXPOSED

Gairullah Se Madad Mangna Shirk hai

Saturday 18 June 2016

सलात वित्र अहकामो मसाइल


♻Topic
वित्र का बयान
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✅वित्र का वक़्त
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۞"हजरत खारजा बिन हुजैफा रजि. बयान करते है एक दफा नबी {ﷺ} हमारे पास तशरीफ़ लाएं, आप  {ﷺ} ने इर्शाद फरमाया :अल्लाह तआला ने तुम्हे एक मजीद नमाज अता की है, जो तुम्हारे लिए सुर्ख ऊँटो से ज्यादा बेहतर है वो वित्र की नमाज है अल्लाह तआला ने इस को ईशा नमाज से लेकर सुबह सादिक तक इस का वक़्त मुकर्रर किया है।"
✨Grade : Sahih
📚Reference : Sunan Darqutni 1638
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✅वित्र की रकअत
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أَبِي أَيُّوبَ الأَنْصَارِيِّ، قَالَ قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صلى الله عليه وسلم ‏ "‏ الْوِتْرُ حَقٌّ عَلَى كُلِّ مُسْلِمٍ فَمَنْ أَحَبَّ أَنْ يُوتِرَ بِخَمْسٍ فَلْيَفْعَلْ وَمَنْ أَحَبَّ أَنْ يُوتِرَ بِثَلاَثٍ فَلْيَفْعَلْ وَمَنْ أَحَبَّ أَنْ يُوتِرَ بِوَاحِدَةٍ فَلْيَفْعَلْ ‏
۞"सय्यिदिना अबू अय्यूब अंसारी रजि. बयान करते है के रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फरमाया "वित्र नमाज हर मुसलमान पर हक़ है चुनांचे जो पांच (5) पढ़ना चाहे पढ़ ले,और जो तीन (3) पढ़ना चाहे पढ़ ले,और जो एक (1) पढ़ना चाहे वो एक पढ़ ले"
✨Grade : Sahih (Al-Albani) 📚Reference  : Sunan Abi Dawud 1422

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✅रकअत के अनुसार वित्र नमाज की किस्में और उनको अदा करने का तरीका
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☑नौ रकअत वित्र
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حَدَّثَنَا أَبُو بَكْرِ بْنُ أَبِي شَيْبَةَ، حَدَّثَنَا مُحَمَّدُ بْنُ بِشْرٍ، حَدَّثَنَا سَعِيدُ بْنُ أَبِي عَرُوبَةَ، عَنْ قَتَادَةَ، عَنْ زُرَارَةَ بْنِ أَوْفَى، عَنْ سَعْدِ بْنِ هِشَامٍ، قَالَ سَأَلْتُ عَائِشَةَ قُلْتُ يَا أُمَّ الْمُؤْمِنِينَ أَفْتِنِي عَنْ وِتْرِ رَسُولِ اللَّهِ ـ صلى الله عليه وسلم ـ ‏.‏ قَالَتْ كُنَّا نُعِدُّ لَهُ سِوَاكَهُ وَطَهُورَهُ فَيَبْعَثُهُ اللَّهُ فِيمَا شَاءَ أَنْ يَبْعَثَهُ مِنَ اللَّيْلِ فَيَتَسَوَّكُ وَيَتَوَضَّأُ ثُمَّ يُصَلِّي تِسْعَ رَكَعَاتٍ لاَ يَجْلِسُ فِيهَا إِلاَّ عِنْدَ الثَّامِنَةِ فَيَدْعُو رَبَّهُ فَيَذْكُرُ اللَّهَ وَيَحْمَدُهُ وَيَدْعُوهُ ثُمَّ يَنْهَضُ وَلاَ يُسَلِّمُ ثُمَّ يَقُومُ فَيُصَلِّي التَّاسِعَةَ ثُمَّ يَقْعُدُ فَيَذْكُرُ اللَّهَ وَيَحْمَدُهُ وَيَدْعُو رَبَّهُ وَيُصَلِّي عَلَى نَبِيِّهِ ثُمَّ يُسَلِّمُ تَسْلِيمًا يُسْمِعُنَا ثُمَّ يُصَلِّي رَكْعَتَيْنِ بَعْدَ مَا يُسَلِّمُ وَهُوَ قَاعِدٌ فَتِلْكَ إِحْدَى عَشْرَةَ رَكْعَةً فَلَمَّا أَسَنَّ رَسُولُ اللَّهِ ـ صلى الله عليه وسلم ـ وَأَخَذَ اللَّحْمُ أَوْتَرَ بِسَبْعٍ وَصَلَّى رَكْعَتَيْنِ بَعْدَ مَا سَلَّمَ ‏.‏۞"हजरत साद बिन हिशाम रजि. से रिवायत है 'इन्होंने फरमाया मै ने हजरत आइशा रजि. से सवाल करते होवे कहा : उम्मुल मोमिनीन! मुझे रसूलुल्लाह {ﷺ} की नमाज वित्र (तहज्ज़ुद) की मुताल्लिक इरशाद फरमाए!,-जवाब में इन्होंने फरमाया: हम लोग रसूलुल्लाह {ﷺ} के लिए मिस्वाक और (वजू के लिए) पानी तैयार रखते थे। अल्लाह तआला रात के जिस हिस्से में नबी {ﷺ} को उठा देता' आप {ﷺ} मिस्वाक करते वजू करते फिर नौ रकअत नमाज पढ़ते इस में सिर्फ आठवीं रकअत पर (तशह्हुद के लिए) बैठते तो अपनी रब से दुआऍ करते- (यानी) अल्लाह का जिक्र करते' इस की तारीफ फरमाते और दुआए पढ़ते फिर सलाम फेरे बगैर खड़े हो जाते- खड़े हो कर नौवीं रकअत पढ़ते फिर (तशह्हुद में) बैठ कर अल्लाह का जिक्र करते' इस की तअरिफे करते' रब से दुआऍ करते मांगते और इस के नबी पर दरूद पढ़ते' फिर (इतनी बुलंद आवाज से) सलाम फेरते जो हमें सुन जाए फिर सलाम फेरने के बाद बैठ कर दो रकअत पढ़ते। जब रसूलुल्लाह {ﷺ} की उम्र ज्यादा हो गयी और जिस्म मुबारक भारी हो गया तो आप सात वित्र पढ़ते थे और सलाम के बाद दो रकअत पढ़ते थे।"
✨Grade : Sahih
📚Reference : Sunan Ibn Majah 1191


✏नौ रकअत वित्र पढ़ने का तरीका
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इसका तरीका यह है की आठ रकअत तक लगातार पढकर, आठवी रकअत में तशह्हुद (अतिय्यात) में बैठते और बगैर सलाम किये नौवीं रकअत के लिए खड़े हो जाए उसके बाद तशह्हुद में बैठे और उसके बाद सलाम फेरा जाएगा।
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☑पांच या सात रकअत वित्र
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عَائِشَةَ، قَالَتْ كَانَ رَسُولُ اللَّهِ صلى الله عليه وسلم يُصَلِّي مِنَ اللَّيْلِ ثَلاَثَ عَشْرَةَ رَكْعَةً يُوتِرُ مِنْ ذَلِكَ بِخَمْسٍ لاَ يَجْلِسُ فِي شَىْءٍ إِلاَّ فِي آخِرِهَا ‏.‏
۞"हजरत आइशा रजि. से रिवायत है के रसूलुल्लाह {ﷺ} रात को तेरह रकअत पढ़ते, इनमे से पांच वित्र होती जिसमे आप {ﷺ} आखरी रकअत के अलावा किसी रकअत में नहीं बैठते (तशह्हुद के लिए)"
Reference  : Sahih Muslim 1720 (737 a)


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حَدَّثَنَا أَبُو بَكْرِ بْنُ أَبِي شَيْبَةَ، حَدَّثَنَا حُمَيْدُ بْنُ عَبْدِ الرَّحْمَنِ، عَنْ زُهَيْرٍ، عَنْ مَنْصُورٍ، عَنِ الْحَكَمِ، عَنْ مِقْسَمٍ، عَنْ أُمِّ سَلَمَةَ، قَالَتْ كَانَ رَسُولُ اللَّهِ ـ صلى الله عليه وسلم ـ يُوتِرُ بِسَبْعٍ أَوْ بِخَمْسٍ لاَ يَفْصِلُ بَيْنَهُنَّ بِتَسْلِيمٍ وَلاَ كَلاَمٍ ‏.‏
۞"हजरत उम्म सलमह रजि. से रिवायत है की रसूलुल्लाह {ﷺ} सात या पांच रकअत वित्र पढ़ते थे इन के दरम्यान सलाम के साथ तफरिक नहीं करते थे (एक ही सलाम से पढ़ते थे)"
✨Grade : Sahih
📚Reference : Sunan Ibn Majah 1192

✏पाँच या सात रकअत वित्र पढ़ने का तरीका
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इन अहादीस से मालुम हुआ की कोई पांच या सात रकअत वित्र पढ़े तो वो मुसलसल (लगातार) होनी चाहिए और सिर्फ आखरी रकअत में तशह्हूद पढ़े और फिर सलाम फेर देवे।
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☑तीन रकअत वित्र
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۞"सय्यिदा आइशा रजि. बयान करती है :'रसूलुल्लाह {ﷺ} वित्र की दो रकअत अदा करने की बाद सलाम नहीं फेरते थे'।"
✨Grade : Sahih
📚Reference : Sunan Darqutni 1647


✏तीन रकअत वित्र पढ़ने का तरीका
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जो आदमी तीन वित्र पढ़े उसे दो रकअत के बाद तशह्हुद (अत्तियात) में नहीं बैठना चाहिए बल्कि तीसरी रकअत ख़त्म करके काअदे में बैठकर अत्तियात,दरूद और दुआ करके सलाम फेरना चाहिए क्योंकि रसूलुल्लाह {ﷺ} से ऐसा ही साबित है।
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✅एक रकअत वित्र
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أَخْبَرَنَا مُحَمَّدُ بْنُ يَحْيَى بْنِ عَبْدِ اللَّهِ، قَالَ حَدَّثَنَا وَهْبُ بْنُ جَرِيرٍ، قَالَ حَدَّثَنَا شُعْبَةُ، عَنْ أَبِي التَّيَّاحِ، عَنْ أَبِي مِجْلَزٍ، عَنِ ابْنِ عُمَرَ، أَنَّ النَّبِيَّ صلى الله عليه وسلم قَالَ ‏ "‏ الْوَتْرُ رَكْعَةٌ مِنْ آخِرِ اللَّيْلِ ‏"‏ ‏.‏
۞"हजरत इब्ने उमर रजि. कहते है के रसूलुल्लाह {ﷺ} ने इर्शाद फरमाया 'वित्र रात के आखिरी हिस्से में एक रकअत है"
✨Grade : Sahih
📚Reference  : Sunan an-Nasa'i 1692

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۞"हजरत कैस बिन अबु हाजिम बयान करते है मैने हजरत साद रजि. को देखा इन्होंने ईशा के बाद एक रकअत अदा की तो मैने दरयाफ़्त किया: ये कौनसी नमाज है? तो इन्होंने जवाब दिया: मेने नबी अकरम {ﷺ} को एक रकअत वित्र अदा करते हुए देखा है"
✨Grade : Sahih
📚Reference : Sunan Darqutni 1634


✏एक रकअत वित्र पढ़ने का तरीका
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ये वित्र की कम से कम तादाद है जैसा के दलाइल की रौशनी में बयान किया जा चूका है।सिर्फ एक ही रकअत पढ़ कर तशह्हुद के बाद सलाम फेर ले।
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✅वित्र की किरअत
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أَخْبَرَنَا مُحَمَّدُ بْنُ عَبْدِ الأَعْلَى، قَالَ حَدَّثَنَا خَالِدٌ، قَالَ حَدَّثَنَا شُعْبَةُ، قَالَ أَخْبَرَنِي سَلَمَةُ، وَزُبَيْدٌ، عَنْ ذَرٍّ، عَنِ ابْنِ عَبْدِ الرَّحْمَنِ بْنِ أَبْزَى، عَنْ عَبْدِ الرَّحْمَنِ، أَنَّ رَسُولَ اللَّهِ صلى الله عليه وسلم كَانَ يَقْرَأُ فِي الْوَتْرِ بِـ ‏{‏ سَبِّحِ اسْمَ رَبِّكَ الأَعْلَى ‏}‏ وَ ‏{‏ قُلْ يَا أَيُّهَا الْكَافِرُونَ ‏}‏ وَ ‏{‏ قُلْ هُوَ اللَّهُ أَحَدٌ ‏}‏ ثُمَّ يَقُولُ إِذَا سَلَّمَ ‏"‏ سُبْحَانَ الْمَلِكِ الْقُدُّوسِ ‏"‏ ‏.‏ وَيَرْفَعُ بِـ ‏"‏ سُبْحَانَ الْمَلِكِ الْقُدُّوسِ ‏"‏ ‏.‏ صَوْتَهُ بِالثَّالِثَةِ ‏.‏ رَوَاهُ مَنْصُورٌ عَنْ سَلَمَةَ بْنِ كُهَيْلٍ وَلَمْ يَذْكُرْ ذَرًّا ‏.‏
۞"हजरत अब्दुल रहमान बिन अब्ज रजि. फरमाते है के रसूलुल्लाह {ﷺ} वित्र के पहले रकअत में सुरः आला (87. Al-A'laa), दूसरी में सुरः काफिरुन (109. Al-Kaafiroon), और तीसरी रकअत में सुरः इख्लास (112. Al-Ikhlaas) पढ़ा करते थे। फिर जब सलाम फेर कर फारिग होते तो तीन मर्तबा,
 "सुब्हानल मलिकिल कुद्दुसि"
{‏سُبْحَانَ الْمَلِكِ الْقُدُّوسِ}
कहते और तीसरी मर्तबा खीच कर अदा फरमाते"
✨Grade : Sahih
📚Reference : Sunan an-Nasa'i 1737

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✅वित्र में पढ़ी जाने वाली दुआ
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 الْحَسَنُ بْنُ عَلِيٍّ رضى الله عنهما عَلَّمَنِي رَسُولُ اللَّهِ صلى الله عليه وسلم كَلِمَاتٍ أَقُولُهُنَّ فِي الْوِتْرِ
۞"हजरत हसन बिन अली रजि. ने बयान किया रसूलुल्लाह {ﷺ} ने मुझे कुछ कलमात तअलीम फ़रमाई जिन्हें मै वित्र में पढ़ा करता:-
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✅क़ुनूत वित्र रुकूअ से पहले है या बाद में?
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रसूलुल्लाह {ﷺ} के कौल व फैअल और सहाबा किराम रजि. के अमल से वित्र में दुआएँ क़ुनूत रूकूअ से पहले साबित है और अक्सर रिवायतें रुकूअ से पहले ही क़ुनूत वित्र पर दलालत करती है।
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حَدَّثَنَا عَلِيُّ بْنُ مَيْمُونٍ الرَّقِّيُّ، حَدَّثَنَا مَخْلَدُ بْنُ يَزِيدَ، عَنْ سُفْيَانَ، عَنْ زُبَيْدٍ الْيَامِيِّ، عَنْ سَعِيدِ بْنِ عَبْدِ الرَّحْمَنِ بْنِ أَبْزَى، عَنْ أَبِيهِ، عَنْ أُبَىِّ بْنِ كَعْبٍ، أَنَّ رَسُولَ اللَّهِ ـ صلى الله عليه وسلم ـ كَانَ يُوتِرُ فَيَقْنُتُ قَبْلَ الرُّكُوعِ ‏.‏
۞"हजरत उबैय बिन कअब रजि. से रिवायत है-'रसूलुल्लाह {ﷺ} वित्र पढ़ते तो रूकू से पहले दुआएँ क़ुनूत पढ़ते थे"
Grade : Sahih
Reference  : Sunan Ibn Majah1182


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इस रिवायत से ये बात भी मालुम होती है की जो दुआ हंगामी (आपातकालीन) हालात में मुसलमानो की खेरख्वाही,कुफ्फार व मुश्रिकींन और दुश्मनाने इस्लाम के लिए बद्दुआ के तौर पर की जाती है वो रुकूअ के बाद, जिसे क़ुनूत नाजिला कहा जाता है और जो दुआ रुकूअ से पहले मांगी जाती है वो क़ुनूत वित्र है।

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✅एक रात में दो दफा वित्र पढ़ने की मनाही का बयान
أَخْبَرَنَا هَنَّادُ بْنُ السَّرِيِّ، عَنْ مُلاَزِمِ بْنِ عَمْرٍو، قَالَ حَدَّثَنِي عَبْدُ اللَّهِ بْنُ بَدْرٍ، عَنْ قَيْسِ بْنِ طَلْقٍ، قَالَ زَارَنَا أَبِي طَلْقُ بْنُ عَلِيٍّ فِي يَوْمٍ مِنْ رَمَضَانَ فَأَمْسَى بِنَا وَقَامَ بِنَا تِلْكَ اللَّيْلَةَ وَأَوْتَرَ بِنَا ثُمَّ انْحَدَرَ إِلَى مَسْجِدٍ فَصَلَّى بِأَصْحَابِهِ حَتَّى بَقِيَ الْوِتْرُ ثُمَّ قَدَّمَ رَجُلاً فَقَالَ لَهُ أَوْتِرْ بِهِمْ فَإِنِّي سَمِعْتُ رَسُولَ اللَّهِ صلى الله عليه وسلم يَقُولُ ‏ "‏ لاَ وِتْرَانِ فِي لَيْلَةٍ ‏"‏ ‏.‏
۞हजरत कैस बिन तलक फरमाते है की तलक बिन अली एक मर्तबा रमजान में हमारे यहाँ तशरीफ़ लाये तो शाम तक वही रहे। रात की नमाज पढ़े और वित्र अदा करने के बाद एक मस्जिद में तशरीफ़ ले गए। वहां भी अपने साथियो को नमाज पढ़ाई लेकिन जब वित्र पढ़ने की बारी आई तो दूसरे शख्स को आगे कर दिया और कहाँ के वित्र पढ़ाए क्योंकि मेने रसूलुल्लाह {ﷺ} से सुना है के एक रात में दो मर्तबा वित्र नहीं होती"
Grade : Sahih
Reference : Sunan an-Nasa'i 1682


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