بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَنِ الرَّحِيم
रसूलुल्लाह सल्ललाहु अल्लैही व सल्लम का हुक्म है :
"मुझे जिस तरह नमाज पढ़ते देखते हो तुम भी उसी तरह नमाज पढ़ो"
{1} सर्वप्रथम नमाजी मुकम्मल वुजू करे !
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया :
"अल्लाह तआला नहीं कबूल करता तुम में से किसी की नमाज जब वो बे-वुजू हो यहाँ तक के वुजू करे"
Refreance : Sahih Muslim 537
{2} नमाजी किब्ला की और मुँह करे !
नमाज पढ़ने वाला जहाँ कही भी हो अपने पुरे शरीर के साथ किब्ला (काअबा) की दिशा की तरफ हो जाएँ।
बरा बिन आजिब रजि. फरमाते है :"हम ने अल्लाह के रसूल सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम के साथ 16 (सोलह) या 17 (सत्रह) महीने तक बैतुल-मक्दिस की तरफ मुँह करके नमाज पढ़ी, फिर अल्लाह तआला ने हमें काअबा की तरफ मुँह करने का हुक्म दिया"
Refreance : Sahih Bukhari 4492
नमाज पढ़ने वाला इमाम हो या अकेला हो, उसे चाहिए की सुन्नत के मुताबिक़ अपने आगे सुतरह (लकड़ी या कोई अन्य वस्तु) रख कर उस ओर नमाज पढ़े।
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया :
"जब तुम अपने सामने पालान की छिछली लकड़ी के बराबर कोई चीज रख लो तो तुम्हे कोई नुकसान नहीं के कौन तुम्हारे आगे से गुजरता हैं"
Refreance : Sunan Abu Dawud 685
Refreance : Sunan Abu Dawud 685
{4} नमाज की निय्यत करे !
नमाजी फर्ज, सुन्नत या नफ्ल जो नमाज पढ़ने का इरादा रखता हो अपने दिल में उसकी नियत करे, निय्यत दिल के इरादे का नाम हैं। अपनी जबान से नियत के शब्द न निकाले, क्योंकि जुबान से नियत करना किताब व सुन्नत से साबित नहीं।
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया :
"तमाम आमाल का दारोमदार निय्यत पर है और हर अमल का नतीजा हर इंसान को इस की निय्यत के मुताबिक़ ही मिलेगा.........."
Refreance : Sahih Bukhari 1
Refreance : Sahih Bukhari 1
{5} नमाज में क़ियाम करना !
क़ियाम कुदरत रखने वाले पर जरुरी है और माअजुर के लिए रुख़्सत हैं।
हजरत इमरान बिन हुसैन रजि. ने कहा के मुझे बवासीर का मर्ज था। इस लिए मैने नबी करीम सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम से नमाज के बारे में दरयाफ़्त किया,
आप (ﷺ) ने फ़र्माया :
"खड़े हो कर नमाज पढ़ा करो अगर इस की भी ताकत ना हो तो बैठ कर और अगर इस की भी ना हो तो पहलु के बल लेट कर पढ़ लो"
Refreance : Sahih Bukhari 1117
{6} किब्ला रुख खड़े होने के बाद तकबीरे-तहरीमा "अल्लाहु अकबर" कहे !
नमाज पढ़ने वाले को चाहिए की सज्दा के स्थान पर अपनी निगाह रखते हुए "अल्लाहु अकबर" कहे।
हजरत अबु हमीद साअदी से रिवायत है इन्होंने फर्माया "रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम जब नमाज की लिए खड़े होते तो क़िब्ले की तरफ मुँह करते, अपने दोनों हाथ उठाते और 'अल्लाहु अकबर' कहते"
Refreance : Sunan Ibn Majah 803
Refreance : Sunan Ibn Majah 803
{7} तकबीर के तमाम मकामात और अल्फाज !
हजरत अबु हुरैरह रजि. फरमाते है : "रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम जब नमाज के लिए खड़े होते तो 'अल्लाहु अकबर' कहते, फिर जब रूकू फरमाते तो 'अल्लाहु अकबर' कहते, फिर जब रूकू से अपनी पुश्त उठाते तो 'समीअल्लाहु लिमन हमिदह' कहते, फिर खड़े-खड़े कहते 'रब्बना लकल हम्द' फिर जब सज्दे के लिए झुकते तो 'अल्लाहु अकबर' कहते, फिर जब सज्दे से सर उठाते तो 'अल्लाहु अकबर' कहते, फिर जब दूसरा सज्दा करते तो 'अल्लाहु अकबर' कहते, फिर जब सज्दे से सर उठाते तो 'अल्लाहु अकबर' कहते, फिर सारी नमाज में ऐसे ही करते हत्ता के इसे मुकम्मल फरमाते, और जब दो रकअतो के बाद बैठ कर उठते तो 'अल्लाहु अकबर' कहते"
Refreance : Sunan an-Nasa'i 1151
हजरत अबु हुरैरह रजि. फरमाते है : "रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम जब नमाज के लिए खड़े होते तो 'अल्लाहु अकबर' कहते, फिर जब रूकू फरमाते तो 'अल्लाहु अकबर' कहते, फिर जब रूकू से अपनी पुश्त उठाते तो 'समीअल्लाहु लिमन हमिदह' कहते, फिर खड़े-खड़े कहते 'रब्बना लकल हम्द' फिर जब सज्दे के लिए झुकते तो 'अल्लाहु अकबर' कहते, फिर जब सज्दे से सर उठाते तो 'अल्लाहु अकबर' कहते, फिर जब दूसरा सज्दा करते तो 'अल्लाहु अकबर' कहते, फिर जब सज्दे से सर उठाते तो 'अल्लाहु अकबर' कहते, फिर सारी नमाज में ऐसे ही करते हत्ता के इसे मुकम्मल फरमाते, और जब दो रकअतो के बाद बैठ कर उठते तो 'अल्लाहु अकबर' कहते"
Refreance : Sunan an-Nasa'i 1151
{8} 'अल्लाहु अकबर' कहते वक़्त अपने दोनों हाथ कंधो या कानो के बराबर उठाएं अर्थात रफअयदैन करे !
हजरत वाइल बिन हुज्र रजि. फरमाते है "मैने रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम के पीछे नमाज पढ़ी। जब आपने नमाज शुरू फ़रमाई तो "अल्लाहु अकबर" कहा और अपने हाथ उठाये हत्ता के वो कानो के बराबर हो गये फिर आप ने सुरः फातिहा पढ़ी, जब सुरः से फारिग होवे तो बुलन्द आवाज से आमीन कहीँ"
Refreance : Sunan an-Nasa'i 880
{9} रफअयदैन !
नमाज में दोनों हाथो को कानों या कंधो तक उठाने को 'रफअयदैन या रफउलयदैन' कहा जाता है।
(A) रफअयदैन के तमाम मकामात।
रफअयदैन नमाज में चार जगह साबित है :1.शुरू नमाज में तकबीरे-तहरीमा कहते वक़्त, 2.रूकूअ से पहले, 3.रुकूअ के बाद, 4.और तीसरी रकअत के शुरू में।
हजरत अली बिन अबी तालिब रजि. से रिवायत है, वो रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम से बयान करते है के "आप जब फर्ज नमाज के लिए खड़े होते तो 'अल्लाहु अकबर' कहते और अपने दोनों हाथ कंधो तक उठाते, और जब अपनी किरअत पूरी कर लेते और रूकूअ करना चाहते तो इसी तरह हाथ उठाते और जब रूकूअ से उठते तो इसी तरह करते, और नमाज में बैठे हुवे होने की हालत में रफअयदैन न करते थे और जब दो रकअत पढ़ कर उठते तो अपने हाथ उठाते और 'अल्लाहु अकबर' कहते"
Refreance : Sunan Abu Dawud 744
(B) रफअयदैन करते समय उंगलिया (नार्मल तरीके पर) खुली रखे, उंगलियो के बीच ज्यादा फासला न करे न उंगलिया मिलाएं।
अबु हुरैरह रजि. ने फ़र्माया : तीन काम ऐसे है जिन्हें रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम किया करते थे,लोगो ने इन्हें तर्क कर दिया है, आप जब नमाज के लिए खड़े होते तो आप ऐसे करते, अबु आमिर ने अपने हाथ से इशारा किया कर के दिखाया और अपनी उंगलियो के दरम्यान न ज्यादा फासला रखा और न इन्हें मिलाया (बल्कि दरम्यानी हालत में रखा)............................."
Refreance : Sahih Ibn Khujema 459
{10} तकबीरे-तहरीमा और रफयदैन के बाद हाथो को सीने पर मजबूती से बांधे !
नमाजी को दायां हाथ बाएं हाथ पर इस तरह रखना चाहिए की दायां हाथ बाएं हाथ की हथेली की पुश्त, जोड़ और कलाई पर आ जाए और दोनों को सीने पर बाँधा जाए।
हजरत वाइल बिन हुज्र रजि. रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम की नमाज का तरीका बयान करते हुए फ़र्माते है की "आप ने दाएं हाथ को बाएं हाथ की हथेली (की पुश्त), जोड़ और कलाई पर रखा"
Refreance : Sunan an-Nasa'i 890
Refreance : Sunan an-Nasa'i 890
हजरत वाइल बिन हुज्र रजि. फरमाते है : "मैने रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम के साथ नमाज पढ़ी, और आपने अपना दायाँ हाथ बाएँ हाथ पर रख कर सीने पर हाथ बाँध लिए"
Refreance : Sahih Ibn Khujema 479
{17} अल्लाहु अकबर कहते हुए रुकूअ करे !
नमाजी अपने दोनों हाथ दोनों काँधे या दोनों कान की लौ तक उठाकर 'अल्लाहु अकबर' कहते हुए रुकूअ करे, अपना सिर अपनी पीठ के समान रखे, दोनों हाथो को दोनों घुटनो पर रखे, अपनी उँगलियाँ फैलाए रखे, सुकून और संतुष्टी के साथ रूकूअ करे।
(A) रुकूअ में पीठ (पुश्त) बिल्कुल सीधी रखें और सर को पीठ के बराबर अर्थात सर न तो ऊँचा हो और न नीचा।
रसुलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया :
"वो नमाज नही होती जिस में इंसान रूकूअ और सज्दे के दरम्यान में अपनी पुश्त (पीठ) को सीधा ना रखे"
Reference : Sunan an-Nasa'i 1028
(B) दोनों हाथो की हथेलिया दोनों घुटनो पर रखे, हाथो की उंगलिया कुशादा रखे और इस तरह से रखे की घुटनो को पकड़ लेवे।
हजरत मुहम्मद बिन उमर बयान करते है के मै असहाबे-रसूल (सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम) की एक मजलिस में था, तो वहाँ रसूलुल्लाह की नमाज का जिक्र शुरू हो गया, हजरत अबु हुमैद साअदी रजि. ने कहा.............और हदीस का कुछ हिस्सा बयान किया, इस में कहा "आप (सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम) जब रुकूअ करते तो अपनी हथेलियो से अपनी घुटनो को पकड़ लेते और अपनी उंगलियां को खोल लेते और अपनी कमर को झुकाया करते, सर न तो उठाया होता और न अपने रुखसारे को इधर-उधर मोड़ा होता (बल्कि सीधा क़िबला रुख होता)..........."
Reference : Sunan Abu Dawud 731
(C) दोनों हाथो (बाजुओ) को तान कर रखे जरा भी टेढे न हो, उंगलियों के बीच फासला हो घुटनो को मजबूत थामे, अपनी कुहनियों को पहलु से दूर रखें।
हजरत सालिम से रिवायत है के हजरत अकबा बिन उमर रजि. ने कहा : क्या मै इस तरह नमाज ना पढूं जिस तरह मैने रसूलुल्लाह रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम को पढ़ते देखा है? हमने कहा क्यों नहीं!
"आप खड़े हुवे, जब रूकूअ किया तो अपनी हथेलिया अपने घुटनो पर रखी और अपनी उंगलियो को घुटनो से नीचे रखा और अपनी बगलो को खोला (बाजू के पहलु से दूर रखा) हत्ता के आप का हर अजुव सीधा और दुरुस्त हो गया (अपनी जगह पर जम गया)......................"
Reference : Sunan an-Nasa'i 1038
अबु हुमैद रजि. फ़र्माते है की मै रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम की नमाज के बारे मेँ तुम सबसे ज्यादा आगाह हूँ फिर हदीस का एक हिस्सा बयान करते है :
"फिर रूकू किया और अपने हाथो को अपने घुटनो पर रखा गोया इन्हें पकडे हुए हो और अपने हाथो को तांत बनाया (जो के कमान पर होता हैं) और अपने हाथो को अपने पहलु से दूर रखा....."
Reference : Sunan Abu Dawud 734
{18} रूकूअ से सर उठाऐ यहाँ तक की (कौमा में) सीधा खड़े हो जाएं !
नमाजी रूकूअ से सर उठाते हुए रफयदैन (हाथो को कंधो या कानो तक उठाएं) करते हुए सीधे खड़े हो जाए और रूकूअ से कौमें में जाते समय यह पढ़े :
سَمِعَ اللَّهُ لِمَنْ حَمِدَهُ
और फिर यह कहे :
رَبَّنَا وَلَكَ الْحَمْدُ
या कहे :
رَبَّنَا وَلَكَ الْحَمْدُ، حَمْدًا كَثِيرًا طَيِّبًا مُبَارَكًا فِيهِ
रसुलुल्लाह (ﷺ) जब سَمِعَ اللَّهُ لِمَنْ حَمِدَهُ ' ' कहते तो इस के बाद ' رَبَّنَا وَلَكَ الْحَمْدُ ' भी कहते, .........."
Reference : Sahih Bukhari 795
हजरत रफाआ बिन राफेअ रिवायत करते हुए कहते है की "हम नबी करीम सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम की इकतदा में नमाज पढ़ रहे थे, जब आप (सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम) ने रूकू से सर उठाते तो कहते :
سَمِعَ اللَّهُ لِمَنْ حَمِدَهُ
(समियल्लाहु लिमन हमिदह),
एक शख्स ने पीछे से कहा
" رَبَّنَا وَلَكَ الْحَمْدُ، حَمْدًا كَثِيرًا طَيِّبًا مُبَارَكًا فِيهِ، "
(रब्बना वल-क लहम्दु हम्दन कसीरन तय्यबन मुबारकन फिह)
आप (सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम) ने नमाज से फारिग हो कर दरयाफ़्त फ़रमाया के किस ने यह कलमात कहे है? इस शख्स ने जवाब दिया के मैने ने ! इस पर आप (सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम) ने फरमाया के मैने तीस (30) से ज्यादा फरिश्तो को देखा के इन कलमात के लिखने में (या इसका सवाब लिखने में) वो एक दूसरे पर सबक़त ले जाना चाहते थे।
Reference : Sahih Bukhari 799
{19} नमाजी सज्दे में जाने से पहले दोनों हाथो का घुटनों से पहले जमींन पर रखें !
सहीह अहादीस की रु से राजेह बात यही है के नमाजी 'अल्लाहु अकबर' कहते हुए सज्दे में जाते हुवे पहले हाथ जमींन पर रखे जाएं और बाद में घुटनें।
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया :
"जब तुम में से कोई सज्दा करे तो ऐसे न बैठे जैसे के ऊंट बैठता है, चाहिए के अपने हाथ घुटनों से पहले रखे"
Referenc : Sunan Abu Dawud 840
हजरत इब्ने उमर रजि. से रिवायत है के "वो अपने हाथ अपने घुटनों से पहले (जमीन पर) रखते थे और फ़र्माते थे :
"रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम इसी तरह करते थे"
Refreance : Sahih Ibn Khujema 627
{20} नमाजी सज्दा करे !
अल्लाह तआला कुरआन में फरमाता है :
"ऐ ईमान वालो ! तुम रूकूअ करो और सज्दा करो..."
AL-Hajj 22 : 77
नमाजी 'अल्लाहु अकबर' कहते हुवे जमींन पर पहले हाथ फिर घुटने टिकाये और सज्दे में चले जाएं।
(A) सज्दा सात हड्डियों पर करे : पेशानी, दोनों हाथ, दोनों घुटनो और दोनों कदमो के पंजो पर।
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया :
"मुझे सात हड्डियों पर सज्दा करने का हुक्म हुवा है, पेशानी पर और अपने हाथ से नाक की तरफ इशारा किया और दोनों हाथ और दोनों घुटनें और दोनों पाँव की उंगलियो पर"
Reference : Sahih Bukhari 812
(B) सज्दे में पेशानी के साथ नाक भी जमींन पर टिकाएं। दोनों हाथो (हथेलियों) को कानो या कंधो के बराबर रखे। हाथो को अपने पहलुवों (Sides) से दूर रखे ।
अबु हुमैद रजि. फ़र्माते है की मै रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम की नमाज के बारे मेँ तुम सबसे ज्यादा आगाह हूँ फिर हदीस का एक हिस्सा बयान करते है :
"फिर रूकू किया और अपने हाथो को अपने घुटनो पर रखा गोया इन्हें पकडे हुए हो और अपने हाथो को तांत बनाया (जो के कमान पर होता हैं) और अपने हाथो को अपने पहलु से दूर रखा....ब्यान किया के ...फिर सज्दा किया तो अपनी नाक और पेशानी को जमींन पर टिकाया और अपने हाथो को अपने पहलुवों से दूर रखा और अपने दोनों हाथो को अपने कंधो के बराबर रखा, फिर अपना सर उठाया हत्ता के हर हड्डी अपनी जगह पर आ गयी यहाँ तक के (सज्दो से) फारिग हुवे, फिर बैठे और अपने बाए पाँवों को बिछा लिया और अपनी दायें पाँव की उंगलियो का रुख किब्ला की तरफ कर दिया और अपनी दायीं हथेली को अपने दायीं घुटने पर रखा और बायें को बाएँ घुटने पर और अपनी ऊँगली से इशारा किया"
Reference : Sunan Abu Dawud 734
(C) हाथो की उंगलिया एक दूसरे से मिलाकर रखें और उन्हें किब्ला रुख रखे।
हजरत अलकमा बिन वाइल अपने वालिद मुहतरम हजरत वाइल रजि. से रिवायत करते है के "नबी सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम जब सज्दा करते तो अपनी उँगलियों को मिला लेते थे"
Reference : Sahih Ibn Khujema 642
(D) सज्दे में हाथो को अपने पेट (Sides) से दूर रखे और अपनी बगल को खोल कर रखे।
सहाबा किराम रजि. बयान करते है "रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम जब सज्दा करते तो दोनों हाथ पेट से अलग रखते यहाँ तक के हम आपकी बगलो की सफेदी देख लेते"
Reference : Sahih Bukhari 3564
(E) नमाजी (मर्द या औरत) सज्दे में अपने दोनों हाथ जमीन पर रखकर दोनों कोहनियां (अर्थात बाजू) ज़मीन से उठाये रखे और पेट को रानो से, और रानो को पिंडलियों से जुदा रखे और सीना भी जमीन से ऊँचा रखे जैसा की रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम के इस फरमान से स्पष्ट है -
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया :
"सज्दे में हड्डियों को बराबर रखो और कोई तुम में से अपनी बाँहों को कुत्ते की तरह न बिछायें"
Reference : Sahih Muslim 1102 (493)
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया :
"जब तु सज्दा करे तो अपनी हथेलियां जमीन पर रख और कुहनियां जमीन से उठा ले"
Reference : Sahih Muslim 1104 (494)
रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम जब सज्दे में होते इस वक़्त "अगर बकरी का बच्चा निकलना चाहता (सीने और हाथो की नीचे से) तो निकल जाता"
Reference : Sahih Muslim 1107 (496)
(F) सज्दे में अपनी पीठ (पुश्त) सीधी रखे।
रसुलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया :
"वो नमाज नही होती जिस में इंसान रूकूअ और सज्दे के दरम्यान में अपनी पुश्त (पीठ) को सीधा ना रखे"
Reference : Sunan an-Nasa'i 1028
(H) रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम जब रुकूअ करते तो कहते :
سُبْحَانَ رَبِّيَ الْعَظِيمِ وَبِحَمْدِهِ
तीन बार और जब सज्दा करते तो कहते
سُبْحَانَ رَبِّيَ الأَعْلَى وَبِحَمْدِهِ
तीन बार।
Referenc : Sunan Abu Dawud 870
{21} नमाजी जल्सा और इसकी मसनून दुआऐं करे !
दो सजदों के बीच में इत्मीनान से बैठने को 'जल्सा' कहा जाता हैं। इसके लिए पहले सज्दे से 'अल्लाहु अकबर' कहते हुवे सर उठाएँ और बाएँ पाँव को बिछा कर इस पर बैठ जाएँ और दायाँ पाँव खड़ा रखे, और दोनों हाथ दोनों रानो और घुटनो पर रखे। जल्से में इत्मीनान से काम ले और सज्दे के बराबर इसमें बैठे। जल्से में यह दुआ पढ़े رَبِّ اغْفِرْ لِي رَبِّ اغْفِرْ لِي अथवा اللَّهُمَّ اغْفِرْ لِي وَارْحَمْنِي وَعَافِنِي وَاهْدِنِي وَارْزُقْنِي
हजरत आइशा रजि. से रिवायत है इन्होंने फ़र्माया : रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम जब रूकू से सर उठाते तो इस वक़्त तक सज्दा नहीं करते थे जब तक पूरी तरह खड़े न हो जाते, और जब सज्दा करके सर उठाते इस वक़्त तक (दूसरा) सज्दा नहीं करते थे जब तक अच्छी तरह बैठ न जाते और आप अपना बायां पाँव बिछा लेते थे"
Reference : Sunan Ibn Majah 893
रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम का "सज्दा, रुकूअ और दोनों सज्दो के दरम्यान बैठने की मिक्दार तक़रीबन बराबर होती थी"
Reference : Sahih Bukhari 820
रसूलुल्लाह (ﷺ) दो सज्दो के दरमयान यो कहा करते थे :
رَبِّ اغْفِرْ لِي رَبِّ اغْفِرْ لِي
Reference : Sunan Ibn majah 897
और यदि चाहे तो उपर्युक्त दुआ के स्थान पर यह दुआ पढ़े :
रसूलुल्लाह (ﷺ) दो सज्दो के दरमयान यह दुआ पढ़ा करते थे :
اللَّهُمَّ اغْفِرْ لِي وَارْحَمْنِي وَعَافِنِي وَاهْدِنِي وَارْزُقْنِي
Reference : Sunan Abu Dawud 850
{22} नमाजी दूसरा सज्दा करे !
पुरे इत्मीनान से जल्से के फराइज से फारिग हो तो फिर 'अल्लाहु अकबर' कहते हुए नमाजी दूसरा सज्दा करे और पहले सज्दे की तरह इसमें भी विन्रमता, भय व कामिल इत्मीनान से दुआ या दुआएँ पढें। फिर 'अल्लाहु अकबर' कहते हुवे दूसरी रकअत के लिए खड़े हो जाएं। दूसरी रकअत के लिए उठने से पहले 'जल्साऐ-इस्तराहत' करे।
{23} जल्साऐ-इस्तराहत !
दूसरा सज्दा कर चुकने के बाद एक रकअत पूरी हो चुकी है अब अगली रकअत के लिए आपको उठना हैं लेकिन उठने से पहले जल्साऐ-इस्तराहत में कुछ वक़्त बैठ कर उठे, इसकी सूरत यह है : पहली और तीसरी रकअत के बाद दूसरी और चौथी रकअत के लिए उठने से पहले एक दफा इत्मीनान के साथ बैठ जाएं, और फिर हाथ का सहारा ले कर खड़े हो।
हजरत मालिक बिन हुयरस रजि. ने सुन्नत तरीका बताने के लिए नमाज पढ़ी तो इस में हैं :
"जब वो पहली और तीसरी रकअत के दूसरे सज्दे से सर उठाते तो बैठ जाते और जमींन पर टेक लगा कर खड़े होते"
Reference : Sahih Bukhari 824
{24} दूसरी रकअत !
दूसरी रकअत के शुरू में सुरः फातिहा और कुरआन की कुछ आयते पढ़े, फिर रूकूअ करे, फिर रुकूअ से सर उठाएँ और दो सज्दे ठीक इसी तरह करे जैसे पहली रकअत में किये थे।
Note :......दूसरी रकअत में दुआएँ-इस्तिफ्ताह नहीं पढ़ी जायेगी।
अबु हुरैरह ने कहा रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम "जब दूसरी रकअत पढ़ कर खड़े होते 'अल्हम्दु' (सुरः फातिहा) से किरअत शुरू करते और चुप न रहते (यानी दुआएँ-इस्तिफ्ताह न पढ़ते)"
Reference : Sahih Muslim 1356
{25} तीसरी और चौथी रकअत !
दूसरी रकअत के दो सज्दे करने के बाद तशह्हुद किया जाएगा इसे पहला काअदा भी कहते है और फिर अगर आप नमाज चार रकअत वाली पढ़ रहे हो तो पहले काअदे के बाद तीसरी रकअत के लिए 'अल्लाहु अकबर' कहते हुवे जमींन पर अपनी मुट्ठियों या हथेली का सहारा लेते हुवे उठे और रफयदैन करे और सुरः फातिहा से किरअत शुरू करे।
तीसरी रकअत से चौथी रकअत में उसी तरह प्रवेश करे जिस तरह पहली से दूसरी रकअत में किया था। चौथी रकअत भी दूसरी रकअत की तरह होगी होगी। चौथी रकअत में भी तशह्हुद किया जाएगा इसे आखरी काअदा कहा जाता है, यह पहले काअदे से कुछ मुख़्तलिफ़ है जिसके बारे में आगे बताया जाएगा, इंशाअल्लाह !
अगर नमाज दो रकअत है तो तशह्हुद के बाद अथवा चार रकअत है तो आखरी काअदे के बाद सलाम फेर कर नमाज मुकम्मल की जायेगी।
{26} तशह्हुद !
(A) इसे पहला काअदा भी कहते है, दूसरी रकअत के बाद (दूसरे सज्दे से उठकर) बायाँ पाँव बिछाकर उसपर बैठ जाएं और दायाँ पाँव खडा रखें।
अबु हुमैद रजि. फ़र्माते है की मै रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम की नमाज के बारे मे तुम सबसे ज्यादा याद है, मैने देखा आप (सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम) ने तकबीरे-तहरीमा कही.............................. और दो रकअतों में बैठते तो बायाँ पाँव बिछाकर बैठते और दायाँ पाँव खड़ा रखते। जब आखरी रकअत में बैठते तो बायां पाँव आगे करते और दायाँ पाँव खड़ा रखते, फिर अपने बायें कूल्हे के बल बैठ जाते (यानी आखरी काअदा में तवर्रूक करते)
Reference : Sahih Bukhari 828
(B) नमाजी दोनों हाथ घुटनों पर या रान (जांघ) पर रखेँ। अब पहले काअदा में तशह्हुद पढे।
हजरत अब्दुल्लाह बिन मसऊद रजि. से रिवायत है, वो कहते है : रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम ने हमें नमाज के दरमयान में और इस के आखिर में तशह्हुद सिखाया, अस्वद बिन यजीद कहते है : हम सैयदना अब्दुल्लाह रजि. को याद करते थे जब इन्होंने हमें बताया के रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम ने इन को तशह्हुद की ताअलीम दी थी, पस वो कहते थे : "जब आप (सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम) नमाज के दरमयान में और इस के आखिर में बाएं सिरिन पर बैठते तो पढ़ते :
التَّحِيَّاتُ لِلَّهِ وَالصَّلَوَاتُ وَالطَّيِّبَاتُ السَّلاَمُ عَلَيْكَ أَيُّهَا النَّبِيُّ وَرَحْمَةُ اللَّهِ وَبَرَكَاتُهُ السَّلاَمُ عَلَيْنَا وَعَلَى عِبَادِ اللَّهِ الصَّالِحِينَ أَشْهَدُ أَنْ لاَ إِلَهَ إِلاَّ اللَّهُ وَأَشْهَدُ أَنَّ مُحَمَّدًا عَبْدُهُ وَرَسُولُهُ
फिर अगर नमाज के दरम्यान में हो तो तशह्हुद से फारिग होने के बाद (तीसरी रकअत के लिए) खड़े हो जाते और अगर नमाज के आखिर में होते तो इतनी दुआऐं करते, जितनी अल्लाह तआला को मंजूर होती, फिर सलाम फेर देते"
Reference : Musnad Ahmad 4382
(C) रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम दरम्यानी (बीच के) तशह्हुद में तशह्हुद (अत्ताहीय्यात....) से फारिग होकर खड़े हो जाते थे।
लिहाजा दरम्यानी तशह्हुद में सिर्फ तशह्हुद (अत्ताहीय्यात....) काफी है।
और अगर कोई शख्स तशह्हुद के बाद दुआ करना चाहता है तो भी जाइज है।
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया :
"जब तुम दो रकअत के बाद बेठो तो यह पढ़ो - " अत्ताहीय्यात....", और तुम में से हर आदमी वो दुआ मुन्तख़ब करे जो इसे ज्यादा अच्छी लगे, फिर अल्लाह तआला से दुआ करे"
Reference : Sunan an-Nasa'i 1164
और दुआ से पहले दरूद पढ़ना चाहिए।
सहाबी रसूल (सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम) हजरत फजाला बिन अबैद रजि. बयान करते थे के रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम ने एक शख्स को नमाज में दुआ करते हुवे सुना के इस ने अल्लाह की हम्द व सना न की थी और न नबी (सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम) के लिए दरूद पढ़ा था, तो रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम ने फ़र्माया- इस ने जल्दी की, फिर इस को बुलाया और इसे या किसी दूसरे से फ़र्माया :
"जब तुम में से कोई नमाज पढ़े तो पहले अपने रब की हम्द व सना बयान करे, फिर नबी (सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम) के लिए दरूद पढ़े, इस के बाद जो चाहे दुआ करे"
Reference : Sunan Abu Dawud 1481
(D) दरूद शरीफ हर तशह्हुद में पढ़ना चाहिए। रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम से आखरी तशह्हुद (आखरी काअदा) से पहले वाले तशह्हुद (काअदा-अव्वल) में दरूद-शरीफ पढ़ना सहीह हदीस से साबित है।
हजरत आइशा रजि. फरमाती है के हम रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम के लिए आप की मिस्वाक और वजू का पानी तैयार रखते थे फिर जब अल्लाह तआला पसंद फरमाता, रात में आप को उठा देता, आप (उठ कर) मिस्वाक और वजू फरमाते और "नो (9) रकअत इस तरह पढ़ते के इन में से किसी के आखिर में न बैठते मगर आठवीं रकअत पर बैठते, अल्लाह की हम्द करते और नबी (सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम) पर दरूद पढ़ते और दुआऐं करते मगर सलाम न फेरते फिर नवमी (9) रकअत पढ़ कर बैठते और अल्लाह की हम्द व सना फरमाते और नबी (सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम) पर दरूद पढ़ते और दुआऐं करते, फिर इतनी आवाज से सलाम फेरते के हमें सुनाई देता, फिर बैठ कर दो रकअत पढते"
Reference : Sunan an-Nasa'i 1721
(B) तशह्हुद में दायीं हथेली दायीं रान पर और बायीं हथेली बायीं रान पर रखना और दौराने-तशह्हुद में ऊँगली को हरकत देते हुए इसके साथ दुआ करना।
हजरत वाइल बिन हुज्र रजि. से रिवायत हैं,'इन्होंने फरमाया : मैने इरादा किया के मै जरूर रसूलुल्लाह (सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम) की नमाज को गौर से देखूंगा के आप (सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम) कैसे नमाज पढ़ते हैं। मैन गौर से देखा......फिर इन्होंने बयान किया के.....फिर आप बैठेऔर अपना बायां पाँव बिछाया और अपनी बायीं हथेली अपनी बायीं रान और घुटने पर रखी और अपनी दायीं हथेली अपनी बायीं रान और घुटने पर रखी और अपनी दायीं कुहनी का किनारा अपनी दायीं रान पर रखा, फिर (अपनी दायीं हाथ की) दो उंगलिया बंद की और (दरमियानी ऊँगली और अंगूठे से) हलका बनाया, फिर अपनी शहादत की ऊँगली को उठाया।, मैने आप (सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम) को देखा, आप इसे हरकत देते थे और इस के साथ दुआ करते थे"
Reference : Sunan an-Nasa'i 1269
(C) तशह्हुद में इशारे के दौरान ऊँगली को कुछ झुका कर रखा जाएँ।
हजरत नुमैर खुजाई रजि. से रिवायत हैं, इन्होंने फरमाया : मैने रसूलुल्लाह (सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम) को दौरान नमाज में दायां हाथ दायीं रान पर रखे हुए देखा, आप अपनी ऊँगली शहादत उठा रखी थी,अलबत्ता इसे कुछ झुकाया हुवा था और आप तशह्हुद पढ रहे थे"
Reference : Sunan an-Nasa'i 1275
(D) तशह्हुद में इशारे के दौरान ऊँगली क़िबला रुख रखते हुए नजर इसी पर रखना।
हजरत अब्दुल्लाह बिन उमर रजि.से रिवायत है : .................ने अपना दायां हाथ अपनी दाहिनी रान पर रखा और अंगूठे के साथ वाली ऊँगली से क़िबले (सामने) की तरफ इशारा किया और अपनी नजर इसी पर टिकाई, इसके बाद उन्होंने फ़र्माया 'मेंने रसूलुल्लाह (सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम) को ऐसे करते देखा हैं।"
Reference : Sunan an-Nasa'i 1161
{28} आखिरी काअदा (तशह्हुद) !
(A) जिस रकअत पर नमाज खत्म होती हैं इस में तशह्हुद बैठने का तरीका {तवर्रूक}
आखरी रकअत मुकम्मल करके तशह्हुद में बैठ जाएं। आखिरी तशह्हुद का तरीका भी पहले तशह्हुद वाला है, फर्क सिर्फ यह है के दायाँ पाँव खड़ा करें, बायां पाँव (दायीं पिंडली के नीचे से) बाहर निकाले और जमीन पर बैठे। बायीं जानिब कूल्हे पर बैठना ' तवर्रूक' कहलाता है और यह सुन्नत है।
हजरत अबु हुमेद साअदी रजि. से मरवी हैं , इन्होंने फ़र्माया : "रसूलुल्लाह (सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम) इन दो रकअत के बाद जिन पर नमाज खत्म होती हैं (तशह्हुद में बैठते वक्त) अपना बायाँ पाँव दायीं तरफ (पिंडली के नीचे से) बाहर निकाल लेते और कूल्हे पर (जोर दे कर) बैठते फिर सलाम फेरते"
Reference : Sunan an-Nasa'i 1263
(B) जब काअदे में बैठे तो पहले अत्तहीय्यात...., पढ़े जिस तरह दूसरी रकअत पढ़कर आपने काअदे में पढ़ी थी, और रफअ सबाबा (शहादत की ऊँगली उठा कर इशारा) भी लगातार जारी रखे। अत्तहीय्यात खत्म करके मंदरजा जैल (निम्नलिखित) दरूद शरीफ पढ़े।
हजरत इब्राहिम रह.ने बयान किया के एक मर्तबा हजरत काअब रजि. से मेरी मुलाक़ात हुवी तो इन्होंने कहा क्यों न मै तुम्हे (हदीस का) एक तोहफा पहुँचा दू जो मैने रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम से सुना था, मैने अर्ज किया के हम ने ऑहजरत से पूछा था, या रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम हम आप पर और आप के अहले-बैत पर किस तरह दरूद भेजा करे? अल्लाह तआला ने सलाम भेजने का तरीका तो हमें खुद ही सीखा दिया है,
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया ये कहा करो :
اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَعَلَى آلِ مُحَمَّدٍ
Reference : Sahih Bukhari 3370
हजरत अबु बक्र सिद्दीक रजि. से रिवायत करते है की मैने कहा , या रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम! नमाज में मांगने के लिए मुझे (कोई) दुआ सिखाइए (की उसे अत्तहीय्यात और दरूद के बाद पढ़ा करू) तो,
(D) तशह्हुद खामोशी से पढ़ना।
हजरत अब्दुल्लाह बिन मसऊद रजि. से रिवायत है इन्होंने ने कहा : "सुन्नत यह है के तशह्हुद को खामोशी से पढ़ा जाएँ"
Reference : Sunan Abu Dawud 986
{29} नमाज का समापन सलाम से करे !
तशह्हुद की दुआऐं पढ़ने के बाद नमाजी पहले दायीं तरफ व बायीं तरफ चेहरा फेरकर सलाम कहे और नमाज को मुकम्मल करें।
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया :
"नमाज की चाबी वुजू है और इस की तहरीम 'अल्लाह अकबर' ही कहना और इस की तहलील सलाम फेरना ही है"
Reference : Musnad Ahmed 1072
हजरत अलकमा बिन वाइल अपने वालिद से बयान करते है : मैने नबी (सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम) के साथ नमाज, "आप अपनी दायीं तरफ सलाम फेरते तो السَّلاَمُ عَلَيْكُمْ وَرَحْمَةُ اللَّهِ وَبَرَكَاتُهُ कहते और अपनी बायीं तरफ السَّلاَمُ عَلَيْكُمْ وَرَحْمَةُ اللَّهِ कहते"
Reference : Sunan Abu Dawud 997
हजरत साद से रिवायत है के मै रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम को "दायीं और बायीं तरफ सलाम फेरते देखा करता यहाँ तक के आप की रुखसार की सफेदी मुझ को दिखाई देती थी"
Reference : Sahih Muslim 1315 (582)
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واَللَّهُ أَعْلَمُ |-------------- ।
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{11} तकबीरे-तहरीमा और कीरअत के दरम्यान दुआ इस्तिफ्ताह {सना} सिर्रन पढ़ें !
हजरत अबु हुरैरह रजि. फरमाते है : "रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम तकबीरे-तहरीमा और कीरअत के दरम्यान थोड़ी देर खामोश रहते थे , अबु ज़र्र ने कहा मै समझता हु हजरत अबु हुरैरह रजि. ने यों कहा या रसूलुल्लाह, आप पर मेरे माँ-बाप कुर्बान हो, आप इस तकबीर और कीरअत के के दरम्यान की खामोशी के बीच में क्या पढ़ते हो ?
आप (ﷺ) ने फरमाया, मै पढता हूँ:
اللَّهُمَّ بَاعِدْ بَيْنِي وَبَيْنَ خَطَايَاىَ كَمَا بَاعَدْتَ بَيْنَ الْمَشْرِقِ وَالْمَغْرِبِ، اللَّهُمَّ نَقِّنِي مِنَ الْخَطَايَا كَمَا يُنَقَّى الثَّوْبُ الأَبْيَضُ مِنَ الدَّنَسِ، اللَّهُمَّ اغْسِلْ خَطَايَاىَ بِالْمَاءِ وَالثَّلْجِ وَالْبَرَدِ
Refreance : Sahih Bukhari 744
Refreance : Sahih Bukhari 744
और यदि चाहे तो उपर्युक्त दुआ के स्थान पर यह दुआ पढ़े :
रसूलुल्लाह (ﷺ) नमाज का आगाज फरमाते तो यह दुआ पढ़ते :
سُبْحَانَكَ اللَّهُمَّ وَبِحَمْدِكَ وَتَبَارَكَ اسْمُكَ وَتَعَالَى جَدُّكَ وَلاَ إِلَهَ غَيْرُكَ
Refreance : Sunan an-Nasa'i 900
Refreance : Sunan an-Nasa'i 900
{12} दुआ इस्तिफ्ताह के बाद तअव्वुज पढ़े !
अल्लाह तआला कुरआन में फरमाता है :
"फिर जब आप कुरआन पढ़ने लगे तो शैतान मर्दुद से अल्लाह की पनाह तलब कर लिया करे"
An-Nahl 16 : 98
हजरत इब्ने मसउद रजि. रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम से रिवायत करते है के आप यह दुआ पढ़ा करते थे :
اللَّهُمَّ إِنِّي أَعُوذُ بِكَ مِنَ الشَّيْطَانِ الرَّجِيمِ وَهَمْزِهِ وَنَفْخِهِ وَنَفْثِهِ
اللَّهُمَّ إِنِّي أَعُوذُ بِكَ مِنَ الشَّيْطَانِ الرَّجِيمِ وَهَمْزِهِ وَنَفْخِهِ وَنَفْثِهِ
Refreance : Sahih Ibn Khujema 472
{13} तअव्वुज के बाद और सुरः फातिहा की किरअत से पहले 'बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम' पढ़े !
जहरी (जोर से) नामाजो में सुरः फातिहा के साथ 'बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम' जहरन पढ़ना भी सही है और सिर्रन (धीरे से) भी सही है, कसरतें दलाईल की रु से आम तौर पर सिर्रन पढ़ना बेहतर हैं ।
हजरत अनस रजि. से मरवी है : "मैने रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम, हजरत अबु बक्र, हजरत उमर और हजरत उस्मान रजि. के पीछे नमाज पढ़ी है, मैने इनमे से किसी को बुलन्द आवाज से 'बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम' पढ़ते नहीं सुना"
हजरत नईमुल मुजमर फ़र्माते है - 'मैनें अबु हुरैरह (रजि.) के पीछे नमाज पढ़ी तो उन्होंने 'बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम' पढ़ी फिर सूरह फातिहा पढ़ी,जब 'गैरिल मग्जूबि अल्लैहि वलज्जालींन' पर पहुचे तो 'आमीन' कही और लोगो ने भी 'आमीन' कही। जब रकूअ किया तो 'अल्लाहु अकबर' कहा और ,फिर सज्दा किया तो 'अल्लाहु अकबर' कहा और जब सलाम फेरा तो कहा- उस जात की कसम जिसके हाथ में मेरी जान है ! मै तुमसे ज्यादा रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम की नमाज के मुशाबेह (अनुरूप) हुँ'"
Reference : Sunan an-Nasa'i 906
{14} नमाजी सुर: फातिहा पढ़े !
सहीह अहादीस की रु से इमाम,मुक्त्तदी और मुंफरिद (एकल नमाजी) सबके लिए हर नमाज में सूरः फातिहा पढ़ना वाजिब है। मुकतदी को इमाम के पीछे (चाहे वह बुलंद आवाज से किरअत करे या न करे) सूरः फातिहा जरूर पढ़नी चाहिए।
रसुलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया :
"जिस शख्स ने सूरः फातिहा नहीं पढ़ी इस की नमाज नहीं हुवीं"
उबादा बिन सामित रजि. से रिवायत है की एक मर्तबा रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम ने फज्र की नमाज पढ़ी ! इस में आप सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम के लिए किरात में मुश्किल पेश आयी ! जब आप सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम फारिग होवे, तो फरमाया शायद तुम इमाम के पीछे किरात करते हो ?, हजरत उबादा कहते है हम ने कहा हाँ या रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम अल्लाह की कसम (हम किरअत करते हैं)
आप (ﷺ) ने फ़र्माया :
"ऐसा 'ना' किया करो सिर्फ 'सूरह फातिहा' पढ़ा करो क्योंके इस के बगैर नमाज नहीं होती"
{15} सूरः फातिहा पढ़ने के बाद 'आमीन' कहें !
जब नमाजी अकेले नमाज पढ़ रहा हो तो आमीन आहिस्ता कहे। जब जोहर और अस्र इमाम के पीछे पढें फिर भी आहिस्ता ही कहे। लेकिन जब आप जहरी नमाज में इमाम के पीछे हो तो जिस समय इमाम 'वलज्जालींन' कहे तो आपको ऊँची आवाज से आमीन कहना चाहिए बल्कि इमाम भी सुन्नत की पैरवी में आमीन पुकार कर कहे और मुकतदियों को इमाम के आमीन शुरू करने के बाद आमीन कहना चाहिए।
रसुलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया :
"जब इमाम आमीन कहे तो तुम भी आमीन कहो, क्योंकि जिस की आमीन फरिश्तों की आमीन के साथ हो गयी इस के तमाम गुनाह माफ़ कर दिए जाएंगे"
हजरत वाइल बिन हुज्र रजि. फरमाते है : मैने रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम की इक्तदा में नमाज पढ़ी जब नबी सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम ने " ﻭَﻻَ اﻟﻀَّﺎﻟِّﻴﻦ " कहा तो फरमाया : " 'आमीन', हम सब ने आपकी 'आमीन' सुनी"
{16} सुरः फातिहा के बाद कुरआन में से जो चाहे पढ़े !
सुरः फातिहा के बाद कुरआन में से जो आसान लगे और याद हो, पढ़ें।
जनाब अली बिन यहिया ने हजरत रफाअ बिन राफेअ रजि. से बयान किया कहा : "जब तुम (नमाज के लिए) खड़े हो कर क़िबला की तरफ रुख करो तो 'अल्लाहु अकबर' कहो फिर उम्मुल कुरान (सुरः फातिहा) और कुरआन से कुछ पढ़ो तो अल्लाह तौफिक दे, जब रुकूअ करो तो अपनी हथेलियो को अपने घुटनो पर रखो और कमर को लम्बा रखो, और फ़रमाया जब सज्दा करो तो इत्मीनान से टिक कर सज्दा करो और जब सज्दे से उठो तो अपनी बायीं रान पर बैठ जाओ"
Refreance : Sunan Abu Dawud 859
नमाजी अपने दोनों हाथ दोनों काँधे या दोनों कान की लौ तक उठाकर 'अल्लाहु अकबर' कहते हुए रुकूअ करे, अपना सिर अपनी पीठ के समान रखे, दोनों हाथो को दोनों घुटनो पर रखे, अपनी उँगलियाँ फैलाए रखे, सुकून और संतुष्टी के साथ रूकूअ करे।
(A) रुकूअ में पीठ (पुश्त) बिल्कुल सीधी रखें और सर को पीठ के बराबर अर्थात सर न तो ऊँचा हो और न नीचा।
रसुलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया :
"वो नमाज नही होती जिस में इंसान रूकूअ और सज्दे के दरम्यान में अपनी पुश्त (पीठ) को सीधा ना रखे"
Reference : Sunan an-Nasa'i 1028
(B) दोनों हाथो की हथेलिया दोनों घुटनो पर रखे, हाथो की उंगलिया कुशादा रखे और इस तरह से रखे की घुटनो को पकड़ लेवे।
हजरत मुहम्मद बिन उमर बयान करते है के मै असहाबे-रसूल (सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम) की एक मजलिस में था, तो वहाँ रसूलुल्लाह की नमाज का जिक्र शुरू हो गया, हजरत अबु हुमैद साअदी रजि. ने कहा.............और हदीस का कुछ हिस्सा बयान किया, इस में कहा "आप (सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम) जब रुकूअ करते तो अपनी हथेलियो से अपनी घुटनो को पकड़ लेते और अपनी उंगलियां को खोल लेते और अपनी कमर को झुकाया करते, सर न तो उठाया होता और न अपने रुखसारे को इधर-उधर मोड़ा होता (बल्कि सीधा क़िबला रुख होता)..........."
Reference : Sunan Abu Dawud 731
(C) दोनों हाथो (बाजुओ) को तान कर रखे जरा भी टेढे न हो, उंगलियों के बीच फासला हो घुटनो को मजबूत थामे, अपनी कुहनियों को पहलु से दूर रखें।
हजरत सालिम से रिवायत है के हजरत अकबा बिन उमर रजि. ने कहा : क्या मै इस तरह नमाज ना पढूं जिस तरह मैने रसूलुल्लाह रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम को पढ़ते देखा है? हमने कहा क्यों नहीं!
"आप खड़े हुवे, जब रूकूअ किया तो अपनी हथेलिया अपने घुटनो पर रखी और अपनी उंगलियो को घुटनो से नीचे रखा और अपनी बगलो को खोला (बाजू के पहलु से दूर रखा) हत्ता के आप का हर अजुव सीधा और दुरुस्त हो गया (अपनी जगह पर जम गया)......................"
Reference : Sunan an-Nasa'i 1038
अबु हुमैद रजि. फ़र्माते है की मै रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम की नमाज के बारे मेँ तुम सबसे ज्यादा आगाह हूँ फिर हदीस का एक हिस्सा बयान करते है :
"फिर रूकू किया और अपने हाथो को अपने घुटनो पर रखा गोया इन्हें पकडे हुए हो और अपने हाथो को तांत बनाया (जो के कमान पर होता हैं) और अपने हाथो को अपने पहलु से दूर रखा....."
Reference : Sunan Abu Dawud 734
(D) रसूलुल्लाह (ﷺ) ने रूकूअ किया तो रूकूअ में पढ़ा :
سُبْحَانَ رَبِّيَ الْعَظِيمِ
और सज्दे में पढ़ा :
سُبْحَانَ رَبِّيَ الأَعْلَى
Reference : Sunan an-Nasa'i 1047
नमाजी रूकूअ से सर उठाते हुए रफयदैन (हाथो को कंधो या कानो तक उठाएं) करते हुए सीधे खड़े हो जाए और रूकूअ से कौमें में जाते समय यह पढ़े :
سَمِعَ اللَّهُ لِمَنْ حَمِدَهُ
और फिर यह कहे :
رَبَّنَا وَلَكَ الْحَمْدُ
या कहे :
رَبَّنَا وَلَكَ الْحَمْدُ، حَمْدًا كَثِيرًا طَيِّبًا مُبَارَكًا فِيهِ
रसुलुल्लाह (ﷺ) जब سَمِعَ اللَّهُ لِمَنْ حَمِدَهُ ' ' कहते तो इस के बाद ' رَبَّنَا وَلَكَ الْحَمْدُ ' भी कहते, .........."
Reference : Sahih Bukhari 795
سَمِعَ اللَّهُ لِمَنْ حَمِدَهُ
(समियल्लाहु लिमन हमिदह),
एक शख्स ने पीछे से कहा
" رَبَّنَا وَلَكَ الْحَمْدُ، حَمْدًا كَثِيرًا طَيِّبًا مُبَارَكًا فِيهِ، "
(रब्बना वल-क लहम्दु हम्दन कसीरन तय्यबन मुबारकन फिह)
आप (सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम) ने नमाज से फारिग हो कर दरयाफ़्त फ़रमाया के किस ने यह कलमात कहे है? इस शख्स ने जवाब दिया के मैने ने ! इस पर आप (सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम) ने फरमाया के मैने तीस (30) से ज्यादा फरिश्तो को देखा के इन कलमात के लिखने में (या इसका सवाब लिखने में) वो एक दूसरे पर सबक़त ले जाना चाहते थे।
Reference : Sahih Bukhari 799
सहीह अहादीस की रु से राजेह बात यही है के नमाजी 'अल्लाहु अकबर' कहते हुए सज्दे में जाते हुवे पहले हाथ जमींन पर रखे जाएं और बाद में घुटनें।
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया :
"जब तुम में से कोई सज्दा करे तो ऐसे न बैठे जैसे के ऊंट बैठता है, चाहिए के अपने हाथ घुटनों से पहले रखे"
Referenc : Sunan Abu Dawud 840
"रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम इसी तरह करते थे"
Refreance : Sahih Ibn Khujema 627
अल्लाह तआला कुरआन में फरमाता है :
"ऐ ईमान वालो ! तुम रूकूअ करो और सज्दा करो..."
AL-Hajj 22 : 77
नमाजी 'अल्लाहु अकबर' कहते हुवे जमींन पर पहले हाथ फिर घुटने टिकाये और सज्दे में चले जाएं।
(A) सज्दा सात हड्डियों पर करे : पेशानी, दोनों हाथ, दोनों घुटनो और दोनों कदमो के पंजो पर।
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया :
"मुझे सात हड्डियों पर सज्दा करने का हुक्म हुवा है, पेशानी पर और अपने हाथ से नाक की तरफ इशारा किया और दोनों हाथ और दोनों घुटनें और दोनों पाँव की उंगलियो पर"
Reference : Sahih Bukhari 812
(B) सज्दे में पेशानी के साथ नाक भी जमींन पर टिकाएं। दोनों हाथो (हथेलियों) को कानो या कंधो के बराबर रखे। हाथो को अपने पहलुवों (Sides) से दूर रखे ।
अबु हुमैद रजि. फ़र्माते है की मै रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम की नमाज के बारे मेँ तुम सबसे ज्यादा आगाह हूँ फिर हदीस का एक हिस्सा बयान करते है :
"फिर रूकू किया और अपने हाथो को अपने घुटनो पर रखा गोया इन्हें पकडे हुए हो और अपने हाथो को तांत बनाया (जो के कमान पर होता हैं) और अपने हाथो को अपने पहलु से दूर रखा....ब्यान किया के ...फिर सज्दा किया तो अपनी नाक और पेशानी को जमींन पर टिकाया और अपने हाथो को अपने पहलुवों से दूर रखा और अपने दोनों हाथो को अपने कंधो के बराबर रखा, फिर अपना सर उठाया हत्ता के हर हड्डी अपनी जगह पर आ गयी यहाँ तक के (सज्दो से) फारिग हुवे, फिर बैठे और अपने बाए पाँवों को बिछा लिया और अपनी दायें पाँव की उंगलियो का रुख किब्ला की तरफ कर दिया और अपनी दायीं हथेली को अपने दायीं घुटने पर रखा और बायें को बाएँ घुटने पर और अपनी ऊँगली से इशारा किया"
Reference : Sunan Abu Dawud 734
हजरत अलकमा बिन वाइल अपने वालिद मुहतरम हजरत वाइल रजि. से रिवायत करते है के "नबी सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम जब सज्दा करते तो अपनी उँगलियों को मिला लेते थे"
Reference : Sahih Ibn Khujema 642
(D) सज्दे में हाथो को अपने पेट (Sides) से दूर रखे और अपनी बगल को खोल कर रखे।
सहाबा किराम रजि. बयान करते है "रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम जब सज्दा करते तो दोनों हाथ पेट से अलग रखते यहाँ तक के हम आपकी बगलो की सफेदी देख लेते"
Reference : Sahih Bukhari 3564
(E) नमाजी (मर्द या औरत) सज्दे में अपने दोनों हाथ जमीन पर रखकर दोनों कोहनियां (अर्थात बाजू) ज़मीन से उठाये रखे और पेट को रानो से, और रानो को पिंडलियों से जुदा रखे और सीना भी जमीन से ऊँचा रखे जैसा की रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम के इस फरमान से स्पष्ट है -
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया :
"सज्दे में हड्डियों को बराबर रखो और कोई तुम में से अपनी बाँहों को कुत्ते की तरह न बिछायें"
Reference : Sahih Muslim 1102 (493)
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया :
"जब तु सज्दा करे तो अपनी हथेलियां जमीन पर रख और कुहनियां जमीन से उठा ले"
Reference : Sahih Muslim 1104 (494)
Reference : Sahih Muslim 1107 (496)
(F) सज्दे में अपनी पीठ (पुश्त) सीधी रखे।
रसुलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया :
"वो नमाज नही होती जिस में इंसान रूकूअ और सज्दे के दरम्यान में अपनी पुश्त (पीठ) को सीधा ना रखे"
Reference : Sunan an-Nasa'i 1028
(G) सज्दे में पाँव की उंगलियो के सिरे क़िब्ला की तरफ मुड़े हुए रखे और कदम भी दोनों खड़े रखे और ऐडियो को मिलाएं।
हजरत आइशा रजि. से रिवायत है के मैने एक रात बिस्तर पर रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम को न पाया, मैने ढूंढा तो मेरा हाथ आप के तलुवों पर पड़ा, आप सज्दे में थे और दोनों हाथ पाँव खड़े थे और आप फरमाते थे :
اللَّهُمَّ أَعُوذُ بِرِضَاكَ مِنْ سَخَطِكَ وَبِمُعَافَاتِكَ مِنْ عُقُوبَتِكَ وَأَعُوذُ بِكَ مِنْكَ لاَ أُحْصِي ثَنَاءً عَلَيْكَ أَنْتَ كَمَا أَثْنَيْتَ عَلَى نَفْسِكَ
Reference : Sahih Muslim 1090 (486)
Reference : Sahih Muslim 1090 (486)
नबी अकरम सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम की जोजा मोहतरमा हजरत आइशा रदी. बयान करती है के (एक रात) मेने रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम को गुम पाया जबके आप मेरे साथ मेरे बिस्तर पर तशरीफ़ फरमा थे (मैंने आप को तलाश किया तो) "मैने आपको आप को सज्दे की हालत में पाया, आप ने अपनी एड़ियां खूब मिलायी हुई थी और उँगलियों के किनारो को किब्ला रुख किया हुआ था,......."
Reference : Sahih Ibn Khujema 654
Reference : Sahih Ibn Khujema 654
سُبْحَانَ رَبِّيَ الْعَظِيمِ وَبِحَمْدِهِ
तीन बार और जब सज्दा करते तो कहते
سُبْحَانَ رَبِّيَ الأَعْلَى وَبِحَمْدِهِ
तीन बार।
Referenc : Sunan Abu Dawud 870
{21} नमाजी जल्सा और इसकी मसनून दुआऐं करे !
दो सजदों के बीच में इत्मीनान से बैठने को 'जल्सा' कहा जाता हैं। इसके लिए पहले सज्दे से 'अल्लाहु अकबर' कहते हुवे सर उठाएँ और बाएँ पाँव को बिछा कर इस पर बैठ जाएँ और दायाँ पाँव खड़ा रखे, और दोनों हाथ दोनों रानो और घुटनो पर रखे। जल्से में इत्मीनान से काम ले और सज्दे के बराबर इसमें बैठे। जल्से में यह दुआ पढ़े رَبِّ اغْفِرْ لِي رَبِّ اغْفِرْ لِي अथवा اللَّهُمَّ اغْفِرْ لِي وَارْحَمْنِي وَعَافِنِي وَاهْدِنِي وَارْزُقْنِي
Reference : Sunan Ibn Majah 893
Reference : Sahih Bukhari 820
रसूलुल्लाह (ﷺ) दो सज्दो के दरमयान यो कहा करते थे :
رَبِّ اغْفِرْ لِي رَبِّ اغْفِرْ لِي
Reference : Sunan Ibn majah 897
और यदि चाहे तो उपर्युक्त दुआ के स्थान पर यह दुआ पढ़े :
रसूलुल्लाह (ﷺ) दो सज्दो के दरमयान यह दुआ पढ़ा करते थे :
اللَّهُمَّ اغْفِرْ لِي وَارْحَمْنِي وَعَافِنِي وَاهْدِنِي وَارْزُقْنِي
Reference : Sunan Abu Dawud 850
{22} नमाजी दूसरा सज्दा करे !
पुरे इत्मीनान से जल्से के फराइज से फारिग हो तो फिर 'अल्लाहु अकबर' कहते हुए नमाजी दूसरा सज्दा करे और पहले सज्दे की तरह इसमें भी विन्रमता, भय व कामिल इत्मीनान से दुआ या दुआएँ पढें। फिर 'अल्लाहु अकबर' कहते हुवे दूसरी रकअत के लिए खड़े हो जाएं। दूसरी रकअत के लिए उठने से पहले 'जल्साऐ-इस्तराहत' करे।
{23} जल्साऐ-इस्तराहत !
दूसरा सज्दा कर चुकने के बाद एक रकअत पूरी हो चुकी है अब अगली रकअत के लिए आपको उठना हैं लेकिन उठने से पहले जल्साऐ-इस्तराहत में कुछ वक़्त बैठ कर उठे, इसकी सूरत यह है : पहली और तीसरी रकअत के बाद दूसरी और चौथी रकअत के लिए उठने से पहले एक दफा इत्मीनान के साथ बैठ जाएं, और फिर हाथ का सहारा ले कर खड़े हो।
हजरत मालिक बिन हुयरस रजि. ने सुन्नत तरीका बताने के लिए नमाज पढ़ी तो इस में हैं :
"जब वो पहली और तीसरी रकअत के दूसरे सज्दे से सर उठाते तो बैठ जाते और जमींन पर टेक लगा कर खड़े होते"
Reference : Sahih Bukhari 824
दूसरी रकअत के शुरू में सुरः फातिहा और कुरआन की कुछ आयते पढ़े, फिर रूकूअ करे, फिर रुकूअ से सर उठाएँ और दो सज्दे ठीक इसी तरह करे जैसे पहली रकअत में किये थे।
Note :......दूसरी रकअत में दुआएँ-इस्तिफ्ताह नहीं पढ़ी जायेगी।
अबु हुरैरह ने कहा रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम "जब दूसरी रकअत पढ़ कर खड़े होते 'अल्हम्दु' (सुरः फातिहा) से किरअत शुरू करते और चुप न रहते (यानी दुआएँ-इस्तिफ्ताह न पढ़ते)"
Reference : Sahih Muslim 1356
{25} तीसरी और चौथी रकअत !
दूसरी रकअत के दो सज्दे करने के बाद तशह्हुद किया जाएगा इसे पहला काअदा भी कहते है और फिर अगर आप नमाज चार रकअत वाली पढ़ रहे हो तो पहले काअदे के बाद तीसरी रकअत के लिए 'अल्लाहु अकबर' कहते हुवे जमींन पर अपनी मुट्ठियों या हथेली का सहारा लेते हुवे उठे और रफयदैन करे और सुरः फातिहा से किरअत शुरू करे।
तीसरी रकअत से चौथी रकअत में उसी तरह प्रवेश करे जिस तरह पहली से दूसरी रकअत में किया था। चौथी रकअत भी दूसरी रकअत की तरह होगी होगी। चौथी रकअत में भी तशह्हुद किया जाएगा इसे आखरी काअदा कहा जाता है, यह पहले काअदे से कुछ मुख़्तलिफ़ है जिसके बारे में आगे बताया जाएगा, इंशाअल्लाह !
अगर नमाज दो रकअत है तो तशह्हुद के बाद अथवा चार रकअत है तो आखरी काअदे के बाद सलाम फेर कर नमाज मुकम्मल की जायेगी।
{26} तशह्हुद !
(A) इसे पहला काअदा भी कहते है, दूसरी रकअत के बाद (दूसरे सज्दे से उठकर) बायाँ पाँव बिछाकर उसपर बैठ जाएं और दायाँ पाँव खडा रखें।
अबु हुमैद रजि. फ़र्माते है की मै रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम की नमाज के बारे मे तुम सबसे ज्यादा याद है, मैने देखा आप (सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम) ने तकबीरे-तहरीमा कही.............................. और दो रकअतों में बैठते तो बायाँ पाँव बिछाकर बैठते और दायाँ पाँव खड़ा रखते। जब आखरी रकअत में बैठते तो बायां पाँव आगे करते और दायाँ पाँव खड़ा रखते, फिर अपने बायें कूल्हे के बल बैठ जाते (यानी आखरी काअदा में तवर्रूक करते)
Reference : Sahih Bukhari 828
(B) नमाजी दोनों हाथ घुटनों पर या रान (जांघ) पर रखेँ। अब पहले काअदा में तशह्हुद पढे।
हजरत अब्दुल्लाह बिन मसऊद रजि. से रिवायत है, वो कहते है : रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम ने हमें नमाज के दरमयान में और इस के आखिर में तशह्हुद सिखाया, अस्वद बिन यजीद कहते है : हम सैयदना अब्दुल्लाह रजि. को याद करते थे जब इन्होंने हमें बताया के रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम ने इन को तशह्हुद की ताअलीम दी थी, पस वो कहते थे : "जब आप (सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम) नमाज के दरमयान में और इस के आखिर में बाएं सिरिन पर बैठते तो पढ़ते :
التَّحِيَّاتُ لِلَّهِ وَالصَّلَوَاتُ وَالطَّيِّبَاتُ السَّلاَمُ عَلَيْكَ أَيُّهَا النَّبِيُّ وَرَحْمَةُ اللَّهِ وَبَرَكَاتُهُ السَّلاَمُ عَلَيْنَا وَعَلَى عِبَادِ اللَّهِ الصَّالِحِينَ أَشْهَدُ أَنْ لاَ إِلَهَ إِلاَّ اللَّهُ وَأَشْهَدُ أَنَّ مُحَمَّدًا عَبْدُهُ وَرَسُولُهُ
फिर अगर नमाज के दरम्यान में हो तो तशह्हुद से फारिग होने के बाद (तीसरी रकअत के लिए) खड़े हो जाते और अगर नमाज के आखिर में होते तो इतनी दुआऐं करते, जितनी अल्लाह तआला को मंजूर होती, फिर सलाम फेर देते"
Reference : Musnad Ahmad 4382
लिहाजा दरम्यानी तशह्हुद में सिर्फ तशह्हुद (अत्ताहीय्यात....) काफी है।
और अगर कोई शख्स तशह्हुद के बाद दुआ करना चाहता है तो भी जाइज है।
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया :
"जब तुम दो रकअत के बाद बेठो तो यह पढ़ो - " अत्ताहीय्यात....", और तुम में से हर आदमी वो दुआ मुन्तख़ब करे जो इसे ज्यादा अच्छी लगे, फिर अल्लाह तआला से दुआ करे"
Reference : Sunan an-Nasa'i 1164
और दुआ से पहले दरूद पढ़ना चाहिए।
"जब तुम में से कोई नमाज पढ़े तो पहले अपने रब की हम्द व सना बयान करे, फिर नबी (सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम) के लिए दरूद पढ़े, इस के बाद जो चाहे दुआ करे"
Reference : Sunan Abu Dawud 1481
लिहाजा दरम्यानी तशह्हुद में तशह्हुद (अत्ताहीय्यात....) के बाद दरूद और दुआ भी की जा सकती है।
हजरत आइशा रजि. फरमाती है के हम रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम के लिए आप की मिस्वाक और वजू का पानी तैयार रखते थे फिर जब अल्लाह तआला पसंद फरमाता, रात में आप को उठा देता, आप (उठ कर) मिस्वाक और वजू फरमाते और "नो (9) रकअत इस तरह पढ़ते के इन में से किसी के आखिर में न बैठते मगर आठवीं रकअत पर बैठते, अल्लाह की हम्द करते और नबी (सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम) पर दरूद पढ़ते और दुआऐं करते मगर सलाम न फेरते फिर नवमी (9) रकअत पढ़ कर बैठते और अल्लाह की हम्द व सना फरमाते और नबी (सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम) पर दरूद पढ़ते और दुआऐं करते, फिर इतनी आवाज से सलाम फेरते के हमें सुनाई देता, फिर बैठ कर दो रकअत पढते"
Reference : Sunan an-Nasa'i 1721
इस हदीस से वाजेह हो गया की खुद रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम ने भी आखरी काअदे से पहले वाले काअदे में दरूद पढ़ा है। लिहाजा हमें आप (सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम) की सुन्नत के मुताबिक़ आखरी काअदे से पहले वाले काअदे (काअदे-अव्वल) में भी दरूद पढ़ना चाहिए।
{28} मसला रफअ सबाबा !
तशह्हुद में ऊँगली को उठाना रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम की बड़ी बरकत वाली और महान सुन्नत है, इसका सुबूत सुन्नत रसूलुल्लाह (सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम) से देखे।
(A) तशह्हुद में ऊँगली से इशारा करने से पहले बाकी की उंगलियो से एक ख़ास तरह की आकृति बनाना।
हजरत वाइल बिन हुज्र रिवायत करते है, इन्होंने फरमाया : मैने रसूलुल्लाह (सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम) को देखा के "आपने अंगूठे और दरमियान (बीच) की उँगली से दायरा (हलका) बनाया और इस की करीब की ऊँगली (शहादत/तर्जनी ऊँगली) को उठाया, आप तशह्हुद में इस के साथ (इशारा करते हुए) दुआ कर रहे थे"
(B) तशह्हुद में दायीं हथेली दायीं रान पर और बायीं हथेली बायीं रान पर रखना और दौराने-तशह्हुद में ऊँगली को हरकत देते हुए इसके साथ दुआ करना।
हजरत वाइल बिन हुज्र रजि. से रिवायत हैं,'इन्होंने फरमाया : मैने इरादा किया के मै जरूर रसूलुल्लाह (सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम) की नमाज को गौर से देखूंगा के आप (सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम) कैसे नमाज पढ़ते हैं। मैन गौर से देखा......फिर इन्होंने बयान किया के.....फिर आप बैठेऔर अपना बायां पाँव बिछाया और अपनी बायीं हथेली अपनी बायीं रान और घुटने पर रखी और अपनी दायीं हथेली अपनी बायीं रान और घुटने पर रखी और अपनी दायीं कुहनी का किनारा अपनी दायीं रान पर रखा, फिर (अपनी दायीं हाथ की) दो उंगलिया बंद की और (दरमियानी ऊँगली और अंगूठे से) हलका बनाया, फिर अपनी शहादत की ऊँगली को उठाया।, मैने आप (सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम) को देखा, आप इसे हरकत देते थे और इस के साथ दुआ करते थे"
Reference : Sunan an-Nasa'i 1269
(C) तशह्हुद में इशारे के दौरान ऊँगली को कुछ झुका कर रखा जाएँ।
हजरत नुमैर खुजाई रजि. से रिवायत हैं, इन्होंने फरमाया : मैने रसूलुल्लाह (सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम) को दौरान नमाज में दायां हाथ दायीं रान पर रखे हुए देखा, आप अपनी ऊँगली शहादत उठा रखी थी,अलबत्ता इसे कुछ झुकाया हुवा था और आप तशह्हुद पढ रहे थे"
Reference : Sunan an-Nasa'i 1275
हजरत अब्दुल्लाह बिन उमर रजि.से रिवायत है : .................ने अपना दायां हाथ अपनी दाहिनी रान पर रखा और अंगूठे के साथ वाली ऊँगली से क़िबले (सामने) की तरफ इशारा किया और अपनी नजर इसी पर टिकाई, इसके बाद उन्होंने फ़र्माया 'मेंने रसूलुल्लाह (सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम) को ऐसे करते देखा हैं।"
Reference : Sunan an-Nasa'i 1161
{28} आखिरी काअदा (तशह्हुद) !
(A) जिस रकअत पर नमाज खत्म होती हैं इस में तशह्हुद बैठने का तरीका {तवर्रूक}
आखरी रकअत मुकम्मल करके तशह्हुद में बैठ जाएं। आखिरी तशह्हुद का तरीका भी पहले तशह्हुद वाला है, फर्क सिर्फ यह है के दायाँ पाँव खड़ा करें, बायां पाँव (दायीं पिंडली के नीचे से) बाहर निकाले और जमीन पर बैठे। बायीं जानिब कूल्हे पर बैठना ' तवर्रूक' कहलाता है और यह सुन्नत है।
हजरत अबु हुमेद साअदी रजि. से मरवी हैं , इन्होंने फ़र्माया : "रसूलुल्लाह (सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम) इन दो रकअत के बाद जिन पर नमाज खत्म होती हैं (तशह्हुद में बैठते वक्त) अपना बायाँ पाँव दायीं तरफ (पिंडली के नीचे से) बाहर निकाल लेते और कूल्हे पर (जोर दे कर) बैठते फिर सलाम फेरते"
Reference : Sunan an-Nasa'i 1263
हजरत इब्राहिम रह.ने बयान किया के एक मर्तबा हजरत काअब रजि. से मेरी मुलाक़ात हुवी तो इन्होंने कहा क्यों न मै तुम्हे (हदीस का) एक तोहफा पहुँचा दू जो मैने रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम से सुना था, मैने अर्ज किया के हम ने ऑहजरत से पूछा था, या रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम हम आप पर और आप के अहले-बैत पर किस तरह दरूद भेजा करे? अल्लाह तआला ने सलाम भेजने का तरीका तो हमें खुद ही सीखा दिया है,
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया ये कहा करो :
اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَعَلَى آلِ مُحَمَّدٍ
كَمَا صَلَّيْتَ عَلَى إِبْرَاهِيمَ وَعَلَى آلِ إِبْرَاهِيمَ
.إِنَّكَ حَمِيدٌ مَجِيدٌ
اللَّهُمَّ بَارِكْ عَلَى مُحَمَّدٍ، وَعَلَى آلِ مُحَمَّدٍ
كَمَا بَارَكْتَ عَلَى إِبْرَاهِيمَ وَعَلَى آلِ إِبْرَاهِيمَ
.إِنَّكَ حَمِيدٌ مَجِيدٌ
Reference : Sahih Bukhari 3370
(C) दरूद के बाद की दुआएँ।
नमाजी तशह्हुद पढ़े तो इसे चाहिए के अल्लाह से चार चीजो की पनाह तलब करे यानि अजाब 'जहन्नम' अजाब 'कब्र', 'ज़िन्दगी और मौत' के फ़ित्ने से और फित्नाए-मसीह दज्जाल की बुराई से।
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया : जब कोई तुम में से नमाज में तशह्हुद पढ़े तो चार चीजो से पनाह मांगे, कहे :
اللَّهُمَّ إِنِّي أَعُوذُ بِكَ مِنْ عَذَابِ جَهَنَّمَ وَمِنْ عَذَابِ الْقَبْرِ وَمِنْ فِتْنَةِ الْمَحْيَا وَالْمَمَاتِ وَمِنْ شَرِّ فِتْنَةِ الْمَسِيحِ الدَّجَّالِ
Reference : Sahih Muslim 1323 (588)
हजरत अबु बक्र सिद्दीक रजि. से रिवायत करते है की मैने कहा , या रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम! नमाज में मांगने के लिए मुझे (कोई) दुआ सिखाइए (की उसे अत्तहीय्यात और दरूद के बाद पढ़ा करू) तो,
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया : पढ़ -
اللَّهُمَّ إِنِّي ظَلَمْتُ نَفْسِي ظُلْمًا كَثِيرًا وَلاَ يَغْفِرُ الذُّنُوبَ إِلاَّ أَنْتَ، فَاغْفِرْ لِي مَغْفِرَةً مِنْ عِنْدِكَ، وَارْحَمْنِي إِنَّكَ أَنْتَ الْغَفُورُ الرَّحِيمُ
Reference : Sahih Bukhari 834
हजरत अब्दुल्लाह बिन मसऊद रजि. से रिवायत है इन्होंने ने कहा : "सुन्नत यह है के तशह्हुद को खामोशी से पढ़ा जाएँ"
Reference : Sunan Abu Dawud 986
{29} नमाज का समापन सलाम से करे !
तशह्हुद की दुआऐं पढ़ने के बाद नमाजी पहले दायीं तरफ व बायीं तरफ चेहरा फेरकर सलाम कहे और नमाज को मुकम्मल करें।
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया :
"नमाज की चाबी वुजू है और इस की तहरीम 'अल्लाह अकबर' ही कहना और इस की तहलील सलाम फेरना ही है"
Reference : Musnad Ahmed 1072
हजरत अलकमा बिन वाइल अपने वालिद से बयान करते है : मैने नबी (सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम) के साथ नमाज, "आप अपनी दायीं तरफ सलाम फेरते तो السَّلاَمُ عَلَيْكُمْ وَرَحْمَةُ اللَّهِ وَبَرَكَاتُهُ कहते और अपनी बायीं तरफ السَّلاَمُ عَلَيْكُمْ وَرَحْمَةُ اللَّهِ कहते"
Reference : Sunan Abu Dawud 997
Reference : Sahih Muslim 1315 (582)
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واَللَّهُ أَعْلَمُ |-------------- ।
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