Wednesday 18 November 2015

कब्र परस्ती का रद्द हदीस की रौशनी में

☣Topic
कब्र परस्ती का रद्द हदीस की रौशनी में
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✅सवाल : आजकल पक्की क़ब्रे बनाने का और उसपर इमारत तामीर करने का खूब रिवाज है क्या ऐसा करना शरई एतेबार से दुरुस्त है?
☑जवाब : पक्की क़ब्रे बनाना और कब्रो पर इमारत तामीर करना इस्लाम में कतई जायज नहीं है और रसूलुल्लाह (ﷺ) के सरिह हुक्म के खिलाफ है।
इसकी दलील इस तरह से हैं:-
۞ "हजरत जाबिर रजि. से रिवायत है की रसूलुल्लाह (ﷺ) ने पुख्ता कब्रे बनाने और और उनपर बैठने और इमारत तामीर करने से मना फ़र्माया है"
📚Reference : Sahih Muslim 2245 (970)
इस  सहीह हदीस से मालूम हुआ की पक्की क़ब्रे बनाना और उन पर इमारत तामीर करना हराम  है।


✅सवाल : रसूलुल्लाह  (ﷺ) के इंतेक़ाल के बाद आप  (ﷺ) की कब्रे-मुबारक घर में किस वजह से बनाई गयी?
☑जवाब : 
۞ इब्ने-जूरैज रह. से  मरवी है, वो कहते है की मुझे मेरे वालिद ने यह हदीस सुनाई की जब रसूलुल्लाह (ﷺ)  का इंतेक़ाल हो गया तब , नबी (ﷺ) के सहाबा को कुछ समझ नहीं आ रहा था की वो नबी (ﷺ) को कहा दफ़न करे, यहाँ तक के सैयदना अबु बकर सिद्दीक रजि. ने कहा, मेने रसूलुल्लाह (ﷺ)  को यु फरमाते हुए सुना था के "हर नबी की कब्र वही बनाई जाती जहा इनका इंतेक़ाल होता है" , चुनाँचे आप (ﷺ) के बिस्तर को हटा कर इसी के नीचे वाली जगह को कब्र के लिए खोदा गया"
📚Reference : Musnad Ahmed 27
यही वजह थी की रसूलुल्लाह (ﷺ) की कब्र-मुबारक आप  (ﷺ) के घर में ही बनाई गयी ।


✅सवाल : रसूलुल्लाह (ﷺ) की कब्र-मुबारक आप  (ﷺ) के घर में बना देने के बाद, मौजूद घर की इमारत को हटा कर कब्रे-मुबारक को नुमाया किस वजह नहीं किया गया ?
☑जवाब : रसूलुल्लाह (ﷺ) की कब्र को कही सज्दागाह न बना लिया जाए इसलिए इमारत को हटा कर कब्रे-मुबारक को नुमाया नहीं रखा गया ।
इसकी दलील इस तरह से हैं:- 
۞ सय्यिदा आइशा रजि. से रिवायत है की रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया-"अल्लाह तआला यहुदो-नसारा पर लानत करे उन्होंने अम्बिया अल्लैहिस्सलाम की कब्रो को मस्जिदे बना लिया",
उम्मुल - मोमिनींन  हजरत आइशा रजि. फरमाती है,"अगर यह अंदेशा ना होता तो आप की कब्र खुली जगह पर बनाई जाती  और नुमाया रखी जाती, लेकिन डर हुआ कि इसको सज्दागाह ना बना लिया जाएं"
📚Reference : Sahih Bukhari 1390

✅सवाल : क्या सहाबा ने नबी (ﷺ) कब्र मुबारक को पक्का (पुख्ता) बनाया और कब्रे-मुबारक पर इमारत तामीर की?
☑जवाब : सहाबा किराम रजि. ने नबी (ﷺ) की कब्र को पुख्ता नहीं बनाया और न ही इसपर इमारत तामीर की गयी क्योंकि :-
۞ "हजरत जाबिर रजि. से रिवायत है की रसूलुल्लाह (ﷺ) ने पुख्ता कब्रे बनाने और और उनपर बैठने और इमारत तामीर करने से मना फ़र्माया है"
📚Reference : Sahih Muslim 2245 (970) 
इस हदीस को मद्देनजर रखते हुए सहाबा ने आप (ﷺ) की कब्र को न तो पक्का बनाया न ही उस पर इमारत बनाई बल्कि जो इमारत पहले से बनी थी यानी नबी (ﷺ) का घर, उसी के अंदर आपको दफनाया गया। सहाबा किराम ने दफनाने के बाद कब्र पर "एक्स्ट्रा" अपनी तरफ से कोई तामीरात की हो इसका कोई सबूत सहीह हदीस से  नहीं मिलता हैं।

✅सवाल : हजरत उमर रजि. और अबु बक्र रजि को नबी के पास क्यों दफनाया गया?
☑जवाब : दोनों सहाबा रजि. को नबी (ﷺ) से बहुत मुहब्बत थी इसलिए उनकी इच्छा अनुसार उनको आप (ﷺ) के पास में दफनाया गया।
हजरत उमर रजि. ने अम्मा आइशा रजि. से बकायदा परमिशन ली रसूलुल्लाह (ﷺ) के पास दफ़न होने के लिए। अधिक जानकारी के लिए देखे - Sahih Bukhari : 1392
इस पर  किसी सहाबा का एतराज साबित नहीं हैं।

✅सवाल : क्या सहाबा में से किसी का इंतेक़ाल हो जाने पर दूसरे सहाबा उनकी कब्र को पुख्ता करते या उसपर इमारत तामीर करते थे?
☑जवाब : बिल्कुल नहीं! सहाबा किराम रजि. नबी (ﷺ) से बहुत ज्यादा मुहब्बत करते थे इसलिए वे अपने प्यारे रसूलुल्लाह (ﷺ) के किसी भी हुक्म की नाफरमानी नहीं करते थे,
इसलिए उनकी कब्र-मुबारक रसूलुल्लाह (ﷺ) के फरमान के मुताबिक़ पुख्ता नहीं की जाती थी और न ही उसपर इमारत तामीर की जाती थी।
इसकी दलील इस तरह से हैं:-
۞ हजरत अम्र बिन अलहारित रजि. से रिवायत है की वे हजरत फादालह बिन उबैद रजि. के साथ रोमन साम्राज्य के 'रुदिस' नामक जगह पर थे,वहा पर हमारे एक दोस्त का इंतेक़ाल हो गया।
तो हजरत फादालह बिन उबैद रजि.ने हमें हुक्म दिया की "एक कब्र बनाई जाएँ और उसे समतल रखा जाए" और फिर फ़र्माया की मेने रसूलुल्लाह  (ﷺ) से सुना की उन्होंने "कब्र को जमीन के बराबर रखने का हुक्म दिया'।"
📚Reference : Sahih Muslim 2242 (968)


✅सवाल : बुजुर्गो (औलिया अल्लाह) या किसी भी शख्स की कब्र को पुख्ता किया जा सकता हैं और क्या उसपर इमारत तामीर की जा सकती हैं?
☑जवाब : बिलकुल नहीं! जैसा की आप ऊपर सहीह अहादीस की दलील देख चुके हैं। इन अहादीस से यह साबित होता हैं की आम व ख़ास किसी की भी कब्र को पुख्ता करना और उनपर इमारत तामीर करना हराम हैं और इसकी शरई तौर पर कोई हैसियत नहीं हैं।

✅सवाल : पैगम्बर, औलिया अल्लाह या अन्य किसी भी शख्स की कब्र के सामने सर झुका कर खड़े होना या नमाज की तरह हाथ बांधे खड़े रहना,सज्दा करना या उनका तवाफ़ करना इस्लामी-शरीयत के मुताबिक़ कैसा अमल है?
☑जवाब : पैगम्बर, औलिया अल्लाह या अन्य किसी भी शख्स की कब्र के सामने सर झुका कर खड़े होना या नमाज की तरह हाथ बांधे खड़े रहना,सज्दा करना या उनका तवाफ़ करना इस्लामी-शरीयत के मुताबिक़ सरासर नाजायज और हराम है।
इसकी दलील इस तरह से हैं:-
۞ जुन्दुब रजि. से रिवायत है कि रसूलुल्लाह (ﷺ)ने फ़र्माया -
".........तुम से पहले के लोग अपने अम्बिया और स्वालेहीन (नेक लोग) की कब्रो को मस्जिद (places of worship and prayers / सज्दागाहें) बना लिया करते थे, कब्रो को मस्जिद मत बनाना,में तुम को इससे मना करता हुँ"
📚Reference : Sahih Muslim 1188 (532)



✅सवाल : क्या हर वो कब्र जो शरीयत के खिलाफ ऊंची और पक्की हैं, उसे गिराना लाज़िमी हैं?
☑जवाब : इस सवाल का जवाब यह हदीस बेहतर दे रही है :-
۞ हजरत अली रजि. ने हजरत अबुल हय्याज असदी रजि. से फरमाया कि तुम्हें उसी काम पर मै भेजता हूँ जिस काम पर अल्लाह के रसूल (ﷺ) ने मुझे भेजा था वह यह कि "किसी बडी ऊंची कब्र को बराबर किये बगैर न छोडो , न किसी मूरत को बगैर मिटाये रहने दो ”
📚Reference : Sahih Muslim 2243 (969) 
✅सवाल : कब्रो का उर्स  (मेला/ईद) भरना शरीयत के एतेबार से कैसा अमल है?
☑जवाब : 
रसूलुल्लाह {ﷺ} ने फर्माया:-
‏{‏أَمَّا بَعْدُ فَإِنَّ خَيْرَ الْحَدِيثِ كِتَابُ اللَّهِ وَخَيْرُ الْهُدَى هُدَى مُحَمَّدٍ وَشَرُّ الأُمُورِ مُحْدَثَاتُهَا وَكُلُّ بِدْعَةٍ ضَلاَلَةٌ}
۞ "अमा बाद,बेहतरीन चीज अल्लाह की किताब हैं और बेहतरीन तरीका मुहम्मद {ﷺ} का तरीका हैं। और बदतरीन काम नई ईजाद करदा काम (बिदअतें) हैं और हर बिदअत गुमराही हैं।"
📚Reference : Sahih Muslim 2005 (867)
जो लोग कब्रो पर उर्स / मेला, कव्वाली व महफिले सिमाअ, ढोल व सारंगी वगैरह मुनकरात कायम करते है उनके इस अमल की दलील कुरआन और सुन्नत में मौजूद नहीं है। ये गैर-मुस्लिम कौम से मुसलमानो में रिवाज पकड़ा हुआ अमल है, दीन-ए-इस्लाम में इसकी कोई हकीकत नहीं हैं बल्कि ये सभी अमल बिदअत में शुमार है।
۞ हजरत अब हुरैरह रजि. से रिवायत है नबी करीम {ﷺ} ने फर्माया, "अपने घरो को कब्रिस्तान मत बनाओ, और न मेरी कब्र को ईद (मेलागाह) बनाओ और मुझ पर दरूद पढ़ो, तुम जहाँ कही भी होंगे तुम्हारा दरूद मुझ तक पहुच जायेगा"
📚Reference : Sunan Abu Dawud  2042

इस हदीस से पता चलता है की रसूलुल्लाह {ﷺ} की कब्र-मुबारक के पास आकर  ईद त्यौहार,मेला/उर्स जैसा इज्तिमाअ करना दुरुस्त नहीं है तो और किसी की आप {ﷺ} के मुकाबले क्या हैसियत हो सकती है। काजी सनाउल्लाह पानीपती हनफ़ी (सूरह आले इमरान की आयत 64) की तफ़सीर के जिम्न में फायदा के उन्वान के तहत लिखते है - "औलिया और शुहदा की कब्रो पर जाहिल हजरात जो सजदे करते हैं, उनके इर्द-गिर्द तवाफ़ करते, चिरागा और दिये जलाते है, कब्रो पर मस्जिदे काइम करते है और साल भर बाद ईदो की तरह जो इज्तिमाअ मुनअकिद (आयोजित) करते है और इसे उर्स का नाम देते है ये जाइज नहीं है। (तफ़सीरे मजहरी)

✅सवाल : आजकल के जमाने में कुछ बिदअतियों ने बाज कब्रो को पुख्ता कर लिया हैं,कब्रो पर इमारत तामीर कर ली हैं व उर्स और इस जैसी तमाम नाजायज खुराफातो को जायज ठहरा लिया है इससे उम्मत पर क्या साइड इफ़ेक्ट (गलत प्रभाव) पड़ रहा हैं?
☑जवाब : आजकल कुछ बिदअती जमाते ऐसी पाई जाती हैं जिन्होंने अपने नफ़्स की पैरवी करने के लिए कुरआन और हदीस को छोड़ दिया हैं और शैतान के बहकावे में आकर इन्होंने प्यारे रसलुल्लाह (ﷺ) के फरमान के खिलाफ अमल करना और फतवा देना शरू कर दिया हैं जिसकी वजह से कई भोले-भाले मुसलमान कब्र-परस्ती (शिर्क) करने में मशगूल हो गए हैं, और उन्होंने इसे ही दीन समझ लिया हैं जबकि इन बातिल अक़ीदों और खुराफतों का दीन-ए-इस्लाम से कोई ताल्लुक नहीं हैं।
आज हालात ये हो गए हैं की अगर कोई मुसलमान इन्हें सही दीन समझाना चाहता हैं और सही दीने-इस्लाम की तरफ यानी "कुरआन और हदीस" की तरफ मोड़ना चाहता हैं तो उसको "गुस्ताखे-रसूल" कहा जाता हैं उसको तरह-तरह से परेशान करने की कोशिश की जाती हैं।
बाज लोग तो "काफ़िर" कहने से भी गुरेज नहीं करते।

अल्लाह तआला से यही दुआ हैं इन कब्र-परस्तो (कब्र की इबादत करने वालो) को कुरआन और सुन्नत को समझने और अमल करने की तौफीक अता फर्मा।

आमीन।

"तेरे आमाल से है तेरा परेशान होना,
वरना मुश्किल नहीं मुश्किल का आसान होना,
दो जहान पे हुकूमत होगी तेरी ऐ मुस्लिम,
तू समझ जाए अगर तेरा मुसलमान होना"
इंशा अल्लाह ।

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--------------|    ‏ وَاللَّهُ أَعْلَمُ    ।
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Tuesday 17 November 2015

शिर्क बड़ा गुनाह है









Topic: शिर्क बड़ा गुनाह है
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अल्लाह कुरआन में फरमाता हैं:-
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۞" बेशक अल्लाह उस जुर्म को तो अलबत्ता नहीं माफ़ करता कि उसके साथ शिर्क किया जाए, हॉ उसके सिवा जो गुनाह हो जिसको चाहे माफ़ कर दे और जिसने (किसी को) अल्लाह का शरीक बनाया तो उसने बड़े गुनाह का तूफान बॉधा"
An-Nisaa (4:48)

۞" और (उस दिन को याद करो) जिस दिन हम उन सबको जमा करेंगे फिर जिन लोगों ने शिर्क किया उनसे पूछेगें कि जिनको तुम (ख़ुदा का) शरीक ख्याल करते थे कहाँ हैं"
Al-An'aam (6:22)

۞" जिन लोगों ने ईमान क़ुबूल किया और अपने ईमान को ज़ुल्म (शिर्क) से आलूदा नहीं किया उन्हीं लोगों के लिए अमन (व इतमिनान) है और यही लोग हिदायत याफ़ता हैं"
Al-An'aam (6:82)

۞" (देखो) ये अल्लाह की हिदायत है अपने बन्दों से जिसको चाहे उसी की वजह से राह पर लाए और अगर उन लोगों ने शिर्क किया होता तो उनका किया (धरा) सब अकारत हो जाता"
Al-An'aam (6:88)

۞ "और (वह वक्त याद करो) जब लुक़मान ने अपने बेटे से उसकी नसीहत करते हुए कहा ऐ बेटा (ख़बरदार कभी किसी को) ख़ुदा का शरीक न बनाना (क्योंकि) शिर्क यक़ीनी बड़ा सख्त गुनाह है"
Luqman (31:13)

۞ "और (ऐ रसूल सलल्लाहो अल्लैहि व सल्लम) तुम्हारी तरफ और उन (पैग़म्बरों) की तरफ जो तुमसे पहले हो चुके हैं यक़ीनन ये वही(अल्लाह का सन्देश) भेजी जा चुकी है कि अगर (कहीं) शिर्क किया तो यक़ीनन तुम्हारे सारे अमल अकारत हो जाएँगे और तुम तो ज़रूर घाटे में आ जाओगे"
Az-Zumar (39:65)
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Monday 16 November 2015

दुआ सिर्फ अल्लाह से











✨Topic
दुआ सिर्फ अल्लाह से  !
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अल्लाह कुरआन में फरमाता हैं:-
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۞" (ऐ रसूल {ﷺ})जब मेरे बन्दे मेरा हाल तुमसे पूछे तो (कह दो कि) मै उन के करीब ही हूँ और जब मुझसे कोई दुआ माँगता है तो मै हर दुआ करने वालों की दुआ क़ुबूल करता हूँ अत: उन्हें चाहिए कि मेरा भी कहना माने और मुझ पर ईमान लाएँ,ताकी वह हिदायत पाए"
✨Al-Baqara (2:186)
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۞" फिर जहाँ से लोग चल खड़े हों वहीं से तुम भी चल खड़े हो और उससे मग़फिरत की दुआ माँगों बेशक ख़ुदा बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है
✨Al-Baqara (2:199)
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۞" और बाज़ (कुछ) बन्दे ऐसे हैं कि जो दुआ करते हैं कि ऐ मेरे पालने वाले मुझे दुनिया में नेअमत दे और आख़िरत में सवाब दे और दोज़ख़ की आग से बचा ले"
✨Al-Baqara (2:201)
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۞" ऐ हमारे पालने वाले हमारे दिल को हिदायत करने के बाद डॉवाडोल न कर और अपनी बारगाह से हमें रहमत अता फ़रमा इसमें तो शक ही नहीं कि तू बड़ा देने वाला है"
✨Aal-i-Imraan (3:8)
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۞" (ऐ रसूल {ﷺ}) तुम तो यह दुआ मॉगों कि ऐ ख़ुदा तमाम आलम के मालिक तू ही जिसको चाहे सल्तनत दे और जिससे चाहे सल्तनत छीन ले और तू ही जिसको चाहे इज्ज़त दे और जिसे चाहे ज़िल्लत दे हर तरह की भलाई तेरे ही हाथ में है बेशक तू ही हर चीज़ पर क़ादिर है"
✨Aal-i-Imraan (3:26)
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۞" उसी वक्त ज़करिया ने अपने परवरदिगार से दुआ कि और अर्ज क़ी ऐ मेरे पालने वाले तू मुझको (भी) अपनी बारगाह से पाकीज़ा औलाद अता फ़रमा बेशक तू ही दुआ का सुनने वाला है"
✨Aal-i-Imraan (3:38)
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۞" और लुत्फ़ ये है कि उनका क़ौल इसके सिवा कुछ न था कि दुआएं मॉगने लगें कि ऐ हमारे पालने वाले हमारे गुनाह और अपने कामों में हमारी ज्यादतियॉ माफ़ कर और दुश्मनों के मुक़ाबले में हमको साबित क़दम रख और काफ़िरों के गिरोह पर हमको फ़तेह दे"
✨Aal-i-Imraan (3:147)
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۞" और जो शख्स कोई बुरा काम करे या (किसी तरह) अपने नफ्स पर ज़ुल्म करे उसके बाद ख़ुदा से अपनी मग़फ़िरत की दुआ मॉगे तो ख़ुदा को बड़ा बख्शने वाला मेहरबान पाएगा"
✨An-Nisaa (4:110)
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۞" (ऐ रसूल {ﷺ}) उनसे पूछो कि तुम ख़ुश्की और तरी के (घटाटोप) अंधेरो से कौन छुटकारा देता है जिससे तुम गिड़ गिड़ाकर और (चुपके) दुआएं मॉगते हो कि अगर वह हमें (अब की दफ़ा) उस (बला) से छुटकारा दे तो हम ज़रुर उसके शुक्र गुज़ार (बन्दे होकर) रहेगें"
✨Al-An'aam (6:63)
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۞" (ऐ रसूल {ﷺ}) तुम कह दो कि मेरे परवरदिगार ने तो इन्साफ का हुक्म दिया है और (ये भी क़रार दिया है कि) हर नमाज़ के वक्त अपने अपने मुँह (क़िबले की तरफ़) सीधे कर लिया करो और उसे पुकारो ख़ालिस उस के हुक्म  के फरमाबरदार हो कर जैसे तुम्हे  (पहले) पैदा किया तुम दुबारा भी (पैदा किये जाओगे)"
✨Al-A'raaf (7:29)
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۞" अपने परवरदिगार से गिड़गिड़ाकर और चुपके - चुपके दुआ करो, वह हद से तजाविज़ करने वालों को हरगिज़ दोस्त नहीं रखता और ज़मीन में इसलाह के बाद फसाद न करते फिरो और (अज़ाब) के ख़ौफ से और (रहमत) की आस लगा के ख़ुदा से दुआ मांगो"
✨Al-A'raaf (7:56)
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۞" उस पर उन लोगों ने अर्ज़ की हमने तो ख़ुदा ही पर भरोसा कर लिया है और दुआ की कि ऐ हमारे पालने वाले तू हमें ज़ालिम लोगों का (ज़रिया) इम्तिहान न बना"
✨Yunus (10:85)
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۞" और ये भी कि अपने परवरदिगार से मग़फिरत की दुआ मॉगों फिर उसकी बारगाह में (गुनाहों से) तौबा करो वही तुम्हें एक मुकर्रर मुद्दत तक अच्छे नुत्फ के फायदे उठाने देगा और वही हर साहबे बुर्ज़गी को उसकी बुर्जुगी (की दाद) अता फरमाएगा और अगर तुमने (उसके हुक्म से) मुँह मोड़ा तो मुझे तुम्हारे बारे में एक बड़े (ख़ौफनाक) दिन के अज़ाब का डर है"
✨Hud (11:3)
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۞" और ऐ मेरी क़ौम अपने परवरदिगार से मग़फिरत की दुआ मॉगों फिर उसकी बारगाह में अपने (गुनाहों से) तौबा करो तो वह तुम पर मूसलाधार मेह आसमान से बरसाएगा ख़ुश्क साली न होगी और तुम्हारी क़ूवत (ताक़त) में और क़ूवत बढ़ा देगा और मुजरिम बन कर उससे मुँह न मोड़ों"
✨Hud (11:52)
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۞" और (हमने) क़ौमे समूद के पास उनके भाई सालेह को (पैग़म्बर बनाकर भेजा) तो उन्होंने (अपनी क़ौम से) कहा ऐ मेरी क़ौम ख़ुदा ही की परसतिश करो उसके सिवा कोई तुम्हारा माबूद नहीं उसी ने तुमको ज़मीन (की मिट्टी) से पैदा किया और तुमको उसमें बसाया तो उससे मग़फिरत की दुआ मॉगों फिर उसकी बारगाह में तौबा करो बेशक मेरा परवरदिगार (हर शख़्श के) क़रीब और सबकी सुनता और दुआ क़ुबूल करता है
✨Hud (11:61)
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۞" और अपने परवरदिगार से अपनी मग़फिरत की दुआ माँगों फिर उसी की बारगाह में तौबा करो बेशक मेरा परवरदिगार बड़ा मोहब्बत वाला मेहरबान है"
✨Hud (11:90)
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۞" और हमारे अज़ाब से ख़ौफ खाए और उन पैग़म्बरों हम से अपनी फतेह की दुआ माँगी (आख़िर वह पूरी हुई)"
✨Ibrahim (14:15)
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۞" जिसने मुझे बुढ़ापा आने पर इस्माईल व इसहाक़ (दो फरज़न्द) अता किए इसमें तो शक़ नहीं कि मेरा परवरदिगार दुआ का सुनने वाला है"
✨Ibrahim (14:39)
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۞" तो तुम अपने परवरदिगार की तारीफ़ के साथ तसबीह करना और उसी से मग़फेरत की दुआ माँगना वह बेशक बड़ा माफ़ करने वाला है"
✨An-Nasr (110:3)
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कुरआन हिदायत,नसीहत और रहमत है




♻कुरआन  मुसलमानों सहित  दुनियाभर के तमाम इंसानों के लिए लिए नसीहत और हिदायत है।
अल्लाह कुरआन में फरमाता हैं:-
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۞" हमने हुक्म दिया था कि यहाँ से उतर पड़ो (तो भी कह दिया था कि) अगर तुम्हारे पास मेरी तरफ़ से हिदायत आए तो (उसकी पैरवी करना क्योंकि) जो लोग मेरी हिदायत पर चलेंगे उन पर (क़यामत) न कोई ख़ौफ होगा और न वह गमगीन होंगे"
"और न वह रंजीदा होगे और (ये भी याद रखो) जिन लोगों ने कुफ्र इख़तेयार किया और हमारी आयतों को झुठलाया तो वही जहन्नुमी हैं और हमेशा दोज़ख़ में पड़े रहेगे"
✨Al-Baqara (2:38-39)
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۞" और (ऐ रसूल {ﷺ}) न तो यहूदी कभी तुमसे रज़ामंद होगे न नसारा यहाँ तक कि तुम उनके मज़हब की पैरवी करो (ऐ रसूल उनसे) कह दो कि बस अल्लाह तआला ही की हिदायत तो हिदायत है (बाक़ी ढकोसला है) और अगर तुम इसके बाद भी कि तुम्हारे पास इल्म (क़ुरान) आ चुका है उनकी ख्वाहिशों पर चले तो (याद रहे कि फिर) तुमको खुदा (के ग़ज़ब) से बचाने वाला न कोई सरपरस्त होगा न मददगार"
"जिन लोगों को हमने किताब (कुरान) दी है वह लोग उसे इस तरह पढ़ते रहते हैं जो उसके पढ़ने का हक़ है यही लोग उस पर ईमान लाते हैं और जो उससे इनकार करते हैं वही लोग घाटे में हैं"
✨Al-Baqara (2:120-121) 
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۞" और तीसरा फायदा ये है ताकि तुम हिदायत पाओ मुसलमानों ये एहसान भी वैसा ही है जैसे हम ने तुम में तुम ही में का एक रसूल (ﷺ) भेजा जो तुमको हमारी आयतें पढ़ कर सुनाए और तुम्हारे नफ्स को पाकीज़ा करे और तुम्हें किताब क़ुरान और अक्ल की बातें सिखाए और तुम को वह बातें बतांए जिन की तुम्हें पहले से खबर भी न थी"
✨Al-Baqara (2:151) 
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۞" मगर जिन लोगों ने (हक़ छिपाने से) तौबा की और अपनी ख़राबी की इस्लाह कर ली और जो किताबे ख़ुदा में है साफ़ साफ़ बयान कर दिया पस उन की तौबा मै क़ुबूल करता हूँ और मै तो बड़ा तौबा क़ुबूल करने वाला मेहरबान हूँ"
Al-Baqara (2:160) 
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۞" (पहले) सब लोग एक ही दीन रखते थे (फिर आपस में झगड़ने लगे तब) ख़ुदा ने नजात से ख़ुश ख़बरी देने वाले और अज़ाब से डराने वाले पैग़म्बरों को भेजा और इन पैग़म्बरों के साथ बरहक़ किताब भी नाज़िल की ताकि जिन बातों में लोग झगड़ते थे किताबे ख़ुदा (उसका) फ़ैसला कर दे और फिर अफ़सोस तो ये है कि इस हुक्म से इख्तेलाफ किया भी तो उन्हीं लोगों ने जिन को किताब दी गयी थी और वह भी जब उन के पास ख़ुदा के साफ एहकाम आ चुके उसके बाद और वह भी आपस की शरारत से तब ख़ुदा ने अपनी मेहरबानी से (ख़ालिस) ईमानदारों को वह राहे हक़ दिखा दी जिस में उन लोगों ने इख्तेलाफ डाल रखा था और ख़ुदा जिस को चाहे राहे रास्त की हिदायत करता है"
✨Al-Baqara (2:213) 
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۞" (ये भी)परहेज़गारों पर एक हक़ है उसी तरह ख़ुदा तुम लोगों की हिदायत के वास्ते अपने एहक़ाम साफ़ साफ़ बयान फरमाता है"
✨Al-Baqara (2:242) 
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۞" ये (जो हमने कहा) आम लोगों के लिए तो सिर्फ़ बयान (वाक़या) है मगर और परहेज़गारों के लिए हिदायत व नसीहत है"
✨Aal-i-Imraan (3:138) 
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۞" (ऐ रसूल {ﷺ}) हमने तुमपर बरहक़ किताब इसलिए नाज़िल की है कि ख़ुदा ने तुम्हारी हिदायत की है उसी तरह लोगों के दरमियान फ़ैसला करो और ख्यानत करने वालों के तरफ़दार न बनो"
✨An-Nisaa (4:105) 
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۞" और जब उनसे कहा जाता है कि जो (क़ुरान) ख़ुदा ने नाज़िल फरमाया है उसकी तरफ और रसूल (ﷺ) की आओ (और जो कुछ कहे उसे मानों तो ) वह कहते हैं कि हमने जिस (रंग) में अपने बाप दादा को पाया वही हमारे लिए काफी है क्या (ये लोग लकीर के फकीर ही रहेंगे) अगरचे उनके बाप दादा न कुछ जानते ही हों न हिदायत ही पायी हो"
✨Al-Maaida (5:104) 
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۞" जिन लोगों ने ईमान क़ुबूल किया और अपने ईमान को ज़ुल्म (शिर्क) से आलूदा नहीं किया उन्हीं लोगों के लिए अमन (व इतमिनान) है और यही लोग हिदायत याफ़ता हैं"
✨Al-An'aam (6:82) 
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۞" (देखो) ये ख़ुदा की हिदायत है अपने बन्दों से जिसको चाहे उसी की वजह से राह पर लाए और अगर उन लोगों ने शिर्क किया होता तो उनका किया (धरा) सब अकारत हो जाता"
✨Al-An'aam (6:88) 
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۞" या ये कहने लगो कि अगर हम पर किताबे (ख़ुदा नाज़िल होती तो हम उन लोगों से कहीं बढ़कर राहे रास्त पर होते तो (देखो) अब तो यक़ीनन तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से तुम्हारे पास एक रौशन दलील है (किताबे ख़ुदा) और हिदायत और रहमत आ चुकी तो जो शख्स ख़ुदा के आयात को झुठलाए और उससे मुँह फेरे उनसे बढ़ कर ज़ालिम कौन है जो लोग हमारी आयतों से मुँह फेरते हैं हम उनके मुँह फेरने के बदले में अनक़रीब ही बुरे अज़ाब की सज़ा देगें (ऐ रसूल) क्या ये लोग सिर्फ उसके मुन्तिज़र है कि उनके पास फरिश्ते आएं"
✨Al-An'aam (6:157) 
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۞" जिसे हर तरह समझ बूझ के तफसीलदार बयान कर दिया है (और वह) ईमानदार लोगों के लिए हिदायत और रहमत है क्या ये लोग बस सिर्फ अन्जाम (क़यामत ही) के मुन्तज़िर है (हालांकि) जिस दिन उसके अन्जाम का (वक्त) आ जाएगा तो जो लोग उसके पहले भूले बैठे थे (बेसाख्ता) बोल उठेगें कि बेशक हमारे परवरदिगार के सब रसूल हक़ लेकर आये थे तो क्या उस वक्त हमारी भी सिफारिश करने वाले हैं जो हमारी सिफारिश करें या हम फिर (दुनिया में) लौटाएं जाएं तो जो जो काम हम करते थे उसको छोड़कर दूसरें काम करें"
✨Al-A'raaf (7:53) 
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۞" (ऐ रसूल {ﷺ}) तुम (उन लोगों से) कह दो कि लोगों में तुम सब लोगों के पास उस ख़ुदा का भेजा हुआ (पैग़म्बर) हूँ जिसके लिए ख़ास सारे आसमान व ज़मीन की बादशाहत (हुकूमत) है उसके सिवा और कोई माबूद नहीं वही ज़िन्दा करता है वही मार डालता है पस (लोगों) ख़ुदा और उसके रसूल नबी उल उम्मी पर ईमान लाओ जो (ख़ुद भी) ख़ुदा पर और उसकी बातों पर (दिल से) ईमान रखता है और उसी के क़दम बा क़दम चलो ताकि तुम हिदायत पाओ"
✨Al-A'raaf (7:158) 
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۞" राह पर बस वही शख़्श है जिसकी ख़ुदा हिदायत करे और जिनको गुमराही में छोड़ दे तो वही लोग घाटे में हैं"
✨Al-A'raaf (7:178) 
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۞" लोगों तुम्हारे पास तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से नसीहत (किताबे ख़ुदा आ चुकी और जो (मरज़ शिर्क वगैरह) दिल में हैं उनकी दवा और ईमान वालों के लिए हिदायत और रहमत"
"(ऐ रसूल {ﷺ}) तुम कह दो कि (ये क़ुरान) ख़ुदा के फज़ल व करम और उसकी रहमत से तुमको मिला है (ही) तो उन लोगों को इस पर खुश होना चाहिए"
✨Yunus (10:57-58) 
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۞" और अगर कोई ऐसा क़ुरान (भी नाज़िल होता) जिसकी बरकत से पहाड़ (अपनी जगह) चल खड़े होते या उसकी वजह से ज़मीन (की मुसाफ़त (दूरी)) तय की जाती और उसकी बरकत से मुर्दे बोल उठते (तो भी ये लोग मानने वाले न थे) बल्कि सच यूँ है कि सब काम का एख्तेयार ख़ुदा ही को है तो क्या अभी तक ईमानदारों को चैन नहीं आया कि अगर ख़ुदा चाहता तो सब लोगों की हिदायत कर देता और जिन लोगों ने कुफ्र एख्तेयार किया उन पर उनकी करतूत की सज़ा में कोई (न कोई) मुसीबत पड़ती ही रहेगी या (उन पर पड़ी) तो उनके घरों के आस पास (ग़रज़) नाज़िल होगी (ज़रुर) यहाँ तक कि ख़ुदा का वायदा (फतेह मक्का) पूरा हो कर रहे और इसमें शक़ नहीं कि ख़ुदा हरगिज़ ख़िलाफ़े वायदा नहीं करता"
✨Ar-Ra'd (13:31)
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۞" और हमने तुम पर किताब (क़ुरान) तो इसी लिए नाज़िल की ताकि जिन बातों में ये लोग बाहम झगड़ा किए हैं उनको तुम साफ साफ बयान करो (और यह किताब) ईमानदारों के लिए तो (अज़सरतापा) हिदायत और रहमत है"
✨An-Nahl (16:64)
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۞" और वह दिन याद करो जिस दिन हम हर एक गिरोह में से उन्हीं में का एक गवाह उनके मुक़ाबिल ला खड़ा करेगें और (ऐ रसूल) तुम को उन लोगों पर (उनके) सामने गवाह बनाकर ला खड़ा करेंगें और हमने तुम पर किताब (क़ुरान) नाज़िल की जिसमें हर चीज़ का (शाफी) बयान है और मुसलमानों के लिए (सरमापा) हिदायत और रहमत और खुशख़बरी है"
✨An-Nahl (16:89) 
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۞" इसमें शक़ नहीं कि ये क़ुरान उस राह की हिदायत करता है जो सबसे ज्यादा सीधी है और जो ईमानदार अच्छे अच्छे काम करते हैं उनको ये खुशख़बरी देता है कि उनके लिए बहुत बड़ा अज्र और सवाब (मौजूद) है"
✨Al-Israa (17:9) 
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۞" हम ही ने यक़ीनन वाजेए व रौशन आयतें नाज़िल की और खुदा ही जिसको चाहता है सीधी राह की हिदायत करता है"
✨An-Noor (24:46) 
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۞" और इसमें भी शक नहीं कि ये कुरान ईमानदारों के वास्ते अज़सरतापा हिदायत व रहमत है"
✨An-Naml (27:77) 
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۞" ये लोग सरीही गुमराही में (पड़े) हैं ख़ुदा ने बहुत ही अच्छा कलाम (यावी ये) किताब नाज़िल फरमाई (जिसकी आयतें) एक दूसरे से मिलती जुलती हैं और (एक बात कई-कई बार) दोहराई गयी है उसके सुनने से उन लोगों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं जो अपने परवरदिगार से डरते हैं फिर उनके जिस्म नरम हो जाते हैं और उनके दिल खुदा की याद की तरफ बा इतमेनान मुतावज्जे हो जाते हैं ये खुदा की हिदायत है इसी से जिसकी चाहता है हिदायत करता है और खुदा जिसको गुमराही में छोड़ दे तो उसको कोई राह पर लाने वाला नहीं"
 ✨Az-Zumar (39:23) 
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۞" (ऐ रसूल {ﷺ}) हमने तुम्हारे पास (ये) किताब (क़ुरान) सच्चाई के साथ लोगों (की हिदायत) के वास्ते नाज़िल की है, पस जो राह पर आया तो अपने ही (भले के) लिए और जो गुमराह हुआ तो उसकी गुमराही का वबाल भी उसी पर है और फिर तुम कुछ उनके ज़िम्मेदार तो हो नहीं"
✨Az-Zumar (39:41) 
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۞" और अगर हम इस क़ुरान को अरबी ज़बान के सिवा दूसरी ज़बान में नाज़िल करते तो ये लोग ज़रूर कह न बैठते कि इसकी आयतें (हमारी) ज़बान में क्यों तफ़सीलदार बयान नहीं की गयी क्या (खूब क़ुरान तो) अजमी और (मुख़ातिब) अरबी (ऐ रसूल) तुम कह दो कि ईमानदारों के लिए तो ये (कुरान अज़सरतापा) हिदायत और (हर मर्ज़ की) शिफ़ा है और जो लोग ईमान नहीं रखते उनके कानों (के हक़) में गिरानी (बहरापन) है और वह (कुरान) उनके हक़ में नाबीनाई (का सबब) है तो गिरानी की वजह से गोया वह लोग बड़ी दूर की जगह से पुकारे जाते है"
✨Fussilat (41:44) 
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۞" ये (क़ुरान) लोगों (की) हिदायत के लिए दलीलो का मजमूआ है और बातें करने वाले लोगों के लिए (अज़सरतापा) हिदायत व रहमत है"
✨Al-Jaathiya (45:20)
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۞ "और जो लोग हिदायत याफ़ता हैं उनको ख़ुदा (क़ुरान के ज़रिए से) मज़ीद हिदायत करता है और उनको परहेज़गारी अता फरमाता है"
✨Muhammad (47:17) 
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۞" और ये कि जब हमने हिदायत (की किताब) सुनी तो उन पर ईमान लाए तो जो शख़्श अपने परवरदिगार पर ईमान लाएगा तो उसको न नुक़सान का ख़ौफ़ है और न ज़ुल्म का"
✨Al-Jinn (72:13) 
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Starting of my first blog...

بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ

In the name of Allah, the Beneficent, the Merciful.

अल्लाह के नाम से जो रहमान व रहीम है।