Wednesday 18 November 2015

कब्र परस्ती का रद्द हदीस की रौशनी में

☣Topic
कब्र परस्ती का रद्द हदीस की रौशनी में
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✅सवाल : आजकल पक्की क़ब्रे बनाने का और उसपर इमारत तामीर करने का खूब रिवाज है क्या ऐसा करना शरई एतेबार से दुरुस्त है?
☑जवाब : पक्की क़ब्रे बनाना और कब्रो पर इमारत तामीर करना इस्लाम में कतई जायज नहीं है और रसूलुल्लाह (ﷺ) के सरिह हुक्म के खिलाफ है।
इसकी दलील इस तरह से हैं:-
۞ "हजरत जाबिर रजि. से रिवायत है की रसूलुल्लाह (ﷺ) ने पुख्ता कब्रे बनाने और और उनपर बैठने और इमारत तामीर करने से मना फ़र्माया है"
📚Reference : Sahih Muslim 2245 (970)
इस  सहीह हदीस से मालूम हुआ की पक्की क़ब्रे बनाना और उन पर इमारत तामीर करना हराम  है।


✅सवाल : रसूलुल्लाह  (ﷺ) के इंतेक़ाल के बाद आप  (ﷺ) की कब्रे-मुबारक घर में किस वजह से बनाई गयी?
☑जवाब : 
۞ इब्ने-जूरैज रह. से  मरवी है, वो कहते है की मुझे मेरे वालिद ने यह हदीस सुनाई की जब रसूलुल्लाह (ﷺ)  का इंतेक़ाल हो गया तब , नबी (ﷺ) के सहाबा को कुछ समझ नहीं आ रहा था की वो नबी (ﷺ) को कहा दफ़न करे, यहाँ तक के सैयदना अबु बकर सिद्दीक रजि. ने कहा, मेने रसूलुल्लाह (ﷺ)  को यु फरमाते हुए सुना था के "हर नबी की कब्र वही बनाई जाती जहा इनका इंतेक़ाल होता है" , चुनाँचे आप (ﷺ) के बिस्तर को हटा कर इसी के नीचे वाली जगह को कब्र के लिए खोदा गया"
📚Reference : Musnad Ahmed 27
यही वजह थी की रसूलुल्लाह (ﷺ) की कब्र-मुबारक आप  (ﷺ) के घर में ही बनाई गयी ।


✅सवाल : रसूलुल्लाह (ﷺ) की कब्र-मुबारक आप  (ﷺ) के घर में बना देने के बाद, मौजूद घर की इमारत को हटा कर कब्रे-मुबारक को नुमाया किस वजह नहीं किया गया ?
☑जवाब : रसूलुल्लाह (ﷺ) की कब्र को कही सज्दागाह न बना लिया जाए इसलिए इमारत को हटा कर कब्रे-मुबारक को नुमाया नहीं रखा गया ।
इसकी दलील इस तरह से हैं:- 
۞ सय्यिदा आइशा रजि. से रिवायत है की रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया-"अल्लाह तआला यहुदो-नसारा पर लानत करे उन्होंने अम्बिया अल्लैहिस्सलाम की कब्रो को मस्जिदे बना लिया",
उम्मुल - मोमिनींन  हजरत आइशा रजि. फरमाती है,"अगर यह अंदेशा ना होता तो आप की कब्र खुली जगह पर बनाई जाती  और नुमाया रखी जाती, लेकिन डर हुआ कि इसको सज्दागाह ना बना लिया जाएं"
📚Reference : Sahih Bukhari 1390

✅सवाल : क्या सहाबा ने नबी (ﷺ) कब्र मुबारक को पक्का (पुख्ता) बनाया और कब्रे-मुबारक पर इमारत तामीर की?
☑जवाब : सहाबा किराम रजि. ने नबी (ﷺ) की कब्र को पुख्ता नहीं बनाया और न ही इसपर इमारत तामीर की गयी क्योंकि :-
۞ "हजरत जाबिर रजि. से रिवायत है की रसूलुल्लाह (ﷺ) ने पुख्ता कब्रे बनाने और और उनपर बैठने और इमारत तामीर करने से मना फ़र्माया है"
📚Reference : Sahih Muslim 2245 (970) 
इस हदीस को मद्देनजर रखते हुए सहाबा ने आप (ﷺ) की कब्र को न तो पक्का बनाया न ही उस पर इमारत बनाई बल्कि जो इमारत पहले से बनी थी यानी नबी (ﷺ) का घर, उसी के अंदर आपको दफनाया गया। सहाबा किराम ने दफनाने के बाद कब्र पर "एक्स्ट्रा" अपनी तरफ से कोई तामीरात की हो इसका कोई सबूत सहीह हदीस से  नहीं मिलता हैं।

✅सवाल : हजरत उमर रजि. और अबु बक्र रजि को नबी के पास क्यों दफनाया गया?
☑जवाब : दोनों सहाबा रजि. को नबी (ﷺ) से बहुत मुहब्बत थी इसलिए उनकी इच्छा अनुसार उनको आप (ﷺ) के पास में दफनाया गया।
हजरत उमर रजि. ने अम्मा आइशा रजि. से बकायदा परमिशन ली रसूलुल्लाह (ﷺ) के पास दफ़न होने के लिए। अधिक जानकारी के लिए देखे - Sahih Bukhari : 1392
इस पर  किसी सहाबा का एतराज साबित नहीं हैं।

✅सवाल : क्या सहाबा में से किसी का इंतेक़ाल हो जाने पर दूसरे सहाबा उनकी कब्र को पुख्ता करते या उसपर इमारत तामीर करते थे?
☑जवाब : बिल्कुल नहीं! सहाबा किराम रजि. नबी (ﷺ) से बहुत ज्यादा मुहब्बत करते थे इसलिए वे अपने प्यारे रसूलुल्लाह (ﷺ) के किसी भी हुक्म की नाफरमानी नहीं करते थे,
इसलिए उनकी कब्र-मुबारक रसूलुल्लाह (ﷺ) के फरमान के मुताबिक़ पुख्ता नहीं की जाती थी और न ही उसपर इमारत तामीर की जाती थी।
इसकी दलील इस तरह से हैं:-
۞ हजरत अम्र बिन अलहारित रजि. से रिवायत है की वे हजरत फादालह बिन उबैद रजि. के साथ रोमन साम्राज्य के 'रुदिस' नामक जगह पर थे,वहा पर हमारे एक दोस्त का इंतेक़ाल हो गया।
तो हजरत फादालह बिन उबैद रजि.ने हमें हुक्म दिया की "एक कब्र बनाई जाएँ और उसे समतल रखा जाए" और फिर फ़र्माया की मेने रसूलुल्लाह  (ﷺ) से सुना की उन्होंने "कब्र को जमीन के बराबर रखने का हुक्म दिया'।"
📚Reference : Sahih Muslim 2242 (968)


✅सवाल : बुजुर्गो (औलिया अल्लाह) या किसी भी शख्स की कब्र को पुख्ता किया जा सकता हैं और क्या उसपर इमारत तामीर की जा सकती हैं?
☑जवाब : बिलकुल नहीं! जैसा की आप ऊपर सहीह अहादीस की दलील देख चुके हैं। इन अहादीस से यह साबित होता हैं की आम व ख़ास किसी की भी कब्र को पुख्ता करना और उनपर इमारत तामीर करना हराम हैं और इसकी शरई तौर पर कोई हैसियत नहीं हैं।

✅सवाल : पैगम्बर, औलिया अल्लाह या अन्य किसी भी शख्स की कब्र के सामने सर झुका कर खड़े होना या नमाज की तरह हाथ बांधे खड़े रहना,सज्दा करना या उनका तवाफ़ करना इस्लामी-शरीयत के मुताबिक़ कैसा अमल है?
☑जवाब : पैगम्बर, औलिया अल्लाह या अन्य किसी भी शख्स की कब्र के सामने सर झुका कर खड़े होना या नमाज की तरह हाथ बांधे खड़े रहना,सज्दा करना या उनका तवाफ़ करना इस्लामी-शरीयत के मुताबिक़ सरासर नाजायज और हराम है।
इसकी दलील इस तरह से हैं:-
۞ जुन्दुब रजि. से रिवायत है कि रसूलुल्लाह (ﷺ)ने फ़र्माया -
".........तुम से पहले के लोग अपने अम्बिया और स्वालेहीन (नेक लोग) की कब्रो को मस्जिद (places of worship and prayers / सज्दागाहें) बना लिया करते थे, कब्रो को मस्जिद मत बनाना,में तुम को इससे मना करता हुँ"
📚Reference : Sahih Muslim 1188 (532)



✅सवाल : क्या हर वो कब्र जो शरीयत के खिलाफ ऊंची और पक्की हैं, उसे गिराना लाज़िमी हैं?
☑जवाब : इस सवाल का जवाब यह हदीस बेहतर दे रही है :-
۞ हजरत अली रजि. ने हजरत अबुल हय्याज असदी रजि. से फरमाया कि तुम्हें उसी काम पर मै भेजता हूँ जिस काम पर अल्लाह के रसूल (ﷺ) ने मुझे भेजा था वह यह कि "किसी बडी ऊंची कब्र को बराबर किये बगैर न छोडो , न किसी मूरत को बगैर मिटाये रहने दो ”
📚Reference : Sahih Muslim 2243 (969) 
✅सवाल : कब्रो का उर्स  (मेला/ईद) भरना शरीयत के एतेबार से कैसा अमल है?
☑जवाब : 
रसूलुल्लाह {ﷺ} ने फर्माया:-
‏{‏أَمَّا بَعْدُ فَإِنَّ خَيْرَ الْحَدِيثِ كِتَابُ اللَّهِ وَخَيْرُ الْهُدَى هُدَى مُحَمَّدٍ وَشَرُّ الأُمُورِ مُحْدَثَاتُهَا وَكُلُّ بِدْعَةٍ ضَلاَلَةٌ}
۞ "अमा बाद,बेहतरीन चीज अल्लाह की किताब हैं और बेहतरीन तरीका मुहम्मद {ﷺ} का तरीका हैं। और बदतरीन काम नई ईजाद करदा काम (बिदअतें) हैं और हर बिदअत गुमराही हैं।"
📚Reference : Sahih Muslim 2005 (867)
जो लोग कब्रो पर उर्स / मेला, कव्वाली व महफिले सिमाअ, ढोल व सारंगी वगैरह मुनकरात कायम करते है उनके इस अमल की दलील कुरआन और सुन्नत में मौजूद नहीं है। ये गैर-मुस्लिम कौम से मुसलमानो में रिवाज पकड़ा हुआ अमल है, दीन-ए-इस्लाम में इसकी कोई हकीकत नहीं हैं बल्कि ये सभी अमल बिदअत में शुमार है।
۞ हजरत अब हुरैरह रजि. से रिवायत है नबी करीम {ﷺ} ने फर्माया, "अपने घरो को कब्रिस्तान मत बनाओ, और न मेरी कब्र को ईद (मेलागाह) बनाओ और मुझ पर दरूद पढ़ो, तुम जहाँ कही भी होंगे तुम्हारा दरूद मुझ तक पहुच जायेगा"
📚Reference : Sunan Abu Dawud  2042

इस हदीस से पता चलता है की रसूलुल्लाह {ﷺ} की कब्र-मुबारक के पास आकर  ईद त्यौहार,मेला/उर्स जैसा इज्तिमाअ करना दुरुस्त नहीं है तो और किसी की आप {ﷺ} के मुकाबले क्या हैसियत हो सकती है। काजी सनाउल्लाह पानीपती हनफ़ी (सूरह आले इमरान की आयत 64) की तफ़सीर के जिम्न में फायदा के उन्वान के तहत लिखते है - "औलिया और शुहदा की कब्रो पर जाहिल हजरात जो सजदे करते हैं, उनके इर्द-गिर्द तवाफ़ करते, चिरागा और दिये जलाते है, कब्रो पर मस्जिदे काइम करते है और साल भर बाद ईदो की तरह जो इज्तिमाअ मुनअकिद (आयोजित) करते है और इसे उर्स का नाम देते है ये जाइज नहीं है। (तफ़सीरे मजहरी)

✅सवाल : आजकल के जमाने में कुछ बिदअतियों ने बाज कब्रो को पुख्ता कर लिया हैं,कब्रो पर इमारत तामीर कर ली हैं व उर्स और इस जैसी तमाम नाजायज खुराफातो को जायज ठहरा लिया है इससे उम्मत पर क्या साइड इफ़ेक्ट (गलत प्रभाव) पड़ रहा हैं?
☑जवाब : आजकल कुछ बिदअती जमाते ऐसी पाई जाती हैं जिन्होंने अपने नफ़्स की पैरवी करने के लिए कुरआन और हदीस को छोड़ दिया हैं और शैतान के बहकावे में आकर इन्होंने प्यारे रसलुल्लाह (ﷺ) के फरमान के खिलाफ अमल करना और फतवा देना शरू कर दिया हैं जिसकी वजह से कई भोले-भाले मुसलमान कब्र-परस्ती (शिर्क) करने में मशगूल हो गए हैं, और उन्होंने इसे ही दीन समझ लिया हैं जबकि इन बातिल अक़ीदों और खुराफतों का दीन-ए-इस्लाम से कोई ताल्लुक नहीं हैं।
आज हालात ये हो गए हैं की अगर कोई मुसलमान इन्हें सही दीन समझाना चाहता हैं और सही दीने-इस्लाम की तरफ यानी "कुरआन और हदीस" की तरफ मोड़ना चाहता हैं तो उसको "गुस्ताखे-रसूल" कहा जाता हैं उसको तरह-तरह से परेशान करने की कोशिश की जाती हैं।
बाज लोग तो "काफ़िर" कहने से भी गुरेज नहीं करते।

अल्लाह तआला से यही दुआ हैं इन कब्र-परस्तो (कब्र की इबादत करने वालो) को कुरआन और सुन्नत को समझने और अमल करने की तौफीक अता फर्मा।

आमीन।

"तेरे आमाल से है तेरा परेशान होना,
वरना मुश्किल नहीं मुश्किल का आसान होना,
दो जहान पे हुकूमत होगी तेरी ऐ मुस्लिम,
तू समझ जाए अगर तेरा मुसलमान होना"
इंशा अल्लाह ।

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--------------|    ‏ وَاللَّهُ أَعْلَمُ    ।
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3 comments:

mohammad habib bhati said...

mashaa allah.

Mohammad Arif said...

جزاك اللهُ خيراً‎

Athar Hashmi Sir said...

Aapne bahot nek kaam Kiya hai, Allah aapko ajr de iska