Monday, 11 April 2016

बिदअत का शरई पोस्टमार्टम










♻बिदअत से दूरी ही कामयाबी है
(भाग-1)
🔻🔻🔻🔻🔻🔻
✅बिदअत का क्या अर्थ है और उसका हुक्म 
🔻🔻🔻
☑बिदअत काअर्थ किसी वस्तु का सर्व प्रथम अविष्कार अथवा नवाचार या प्रथम बार किसी नई वस्तु का बनाना है।

बिदअत दो प्रकार के होती है  :-

1.बिदअत ,दुनिया के रहन- सहन क़े बारे में में:

दुनिया में अगर किसी कार्य या वस्तु का प्रयोग किया जाता है- परन्तु  इसमें  किसी सवाब की आशा/इच्छा नहीं की जाती है तथा जब तक कि उसका इस्लाम की किसी मूल (बेसिक) आस्था से टकराव न हो तो ऐसे में नई वस्तु/कार्य का प्रचलन जाइज़ है।
जैसे - कि आज के युग में दुनिया ने नई नई चीज़ें अविष्कार की हैं, परिवहन साधन,मोबाइल,रेफ्रिजरेटर,पंखे-कुलर, इत्यादि का प्रयोग।

इसी तरह मस्जिद को पक्का सीमेंटेड करवाना या उसपर मार्बल लगवाना ,कालीन बिछवाना,मीनार तामीर करवाना,पंखे ,ट्यूब लाइट,ए.सी. आदि के प्रयोग से चुँकि किसी व्यक्ति की इबादत के सवाब में किसी कमी या बढ़ोतरी की गुंजाईश नहीं रहती है इसलिए यह दीन बिदअत नहीं कहलाएगी।

मिसाल के तोर पर  किसी साधारण कमरेनुमा मस्जिद में जहा ऊपर उल्लेखित सुविधाए न हो के अंदर अथवा मस्जिद न होने की स्थिति में कोई जमात खुले आसमान के निचे कच्चे फर्श पर नमाज अदा करे तो उन व्यक्तियो को भी नमाज का उतना ही सवाब प्राप्त होगा जितना की सुविधायुक्त मस्जिद में प्राप्त होता,इसलिए इन दुनिवायी सविधाओं को दीन में बिदअत नहीं माना जा सकता।

2.बिदअत , दीन के बारे में :

दीन में बिदअत की परिभाषाः 
शरीयत ए इस्लाम में प्रत्येक वह नया कर्म जिस के करने पर अल्लाह से सवाब (पुण्य) की आशा रखा जाए और वह कर्म नबी करीम ﷺ ने नहीं किया और न ही सहाबा (रज़ि0) ने किया हो तो वह बिदअत में शुमार होगा।

इबादत तौक़ीफी है मतलब कि जिन इबादतों के करने का आदेश अल्लाह ने दिया हो या नबी करीम ﷺ की सुन्नत से प्रमाणित हो तो उन्हीं इबादतों को किया जाएगा। अपनी इच्छा या विद्वानों के इच्छानुसार इबादतें अल्लाह के पास अस्वीकृत है और इन्हीं इबादतों को बिदअत और पथभ्रष्टता में शुमार किया जाता है।

۞"हज़रत आयशा रज़ि0 से रिवायत हैं के नबी करीम ﷺ ने फ़रमाया – जिसने दीन मे कोई ऐसा काम किया जिसकी बुनियाद शरीअत मे नही वह मर्दुद ( rejected) है| "
📚बुखारी 2697

۞"हज़रत जाबिर बिन अब्दुल्लाह रजि0 से रिवायत है कि - नबी  ﷺ ने फ़रमाया याद रखो बेह्तरीन बात अल्लाह कि किताब है और बेह्तरीन हिदायत मुहम्मद ﷺ कि हिदायत है और बद्तरीन काम दीन मे नया काम ईजाद करना है और हर बिदअत गुमराही हैं"
📚इब्नेमाजा :45

दीन-ए-इस्लाम में बिदअत को पसंद करने वालो ने अपने गैर मसनून और बिदई कामो (बातो) को दीन की सनद दिलाने के लिए बिदअत को बिदअते हस्ना और बिदअते सय्या में बाट रखा है।हालांकि की रसूलुल्लाह ﷺ दीन के अंतर्गत आने वाली तमाम बिदअत को गुमराही करार दिया है।

अपनी बातिल बात को सिद्ध करने के लिए हदीस गढ़ने वाले और रसूलुल्लाह ﷺ का नाम ले ले कर नए नए त्यौहार और नए नए रिवाज दीन ए इस्लाम में शुरू करने वाले व पहले से जारी रिवाजो जिनकी शरीयत में कोई हैसियत नहीं है की पैरवी करने वाले हजरात जरा इधर भी अपनी नजरे इनायत करे :-
⏬🔻⏬
۞"हज़रत अबू हुरैरा रज़ि0 से रिवायत हैं के अल्लाह के नबी ﷺ ने फ़रमाया – जिसने जानबूझ कर झूठ मेरी तरफ़ मंसूब किया वह अपना ठिकाना जहन्नम मे बना ले"
📚बुखारी :107 
➰➰➰➰➰➰➰➰➰




♻बिदअत से दूरी ही कामयाबी है
(भाग-2)
🔻🔻🔻
✅इबादत तौक़ीफी है मतलब कि जिन इबादतों के करने का आदेश अल्लाह ने दिया हो या नबी ﷺ की सुन्नत से प्रमाणित (साबित) हो तो उन्हीं इबादतों को किया जाएगा। अपनी इच्छा या विद्वानों के इच्छानुसार इबादतें अल्लाह के पास अस्वीकृत है और इन्हीं इबादतों को बिदअत और पथभ्रष्टता(गलत रास्ता) में शुमार किया जाता है।
🔰🔻🔰🔻🔰
۞"हज़रत जाबिर बिन अब्दुल्लाह रजि0 से रिवायत है कि - नबी ﷺ ने फ़रमाया याद रखो बेह्तरीन बात अल्लाह कि किताब है और बेह्तरीन हिदायत मुहम्मद ﷺ  कि हिदायत है और बद्तरीन काम दीन मे नया काम ईजाद करना है और हर बिदअत गुमराही हैं"
📚इब्नेमाजा :45

۞"हजरत अली रजि. से रिवायत है कि नबी ﷺ  ने फरमाया- "अल्लाह ने लानत की है उस शख्स पर जो गेरुल्लाह के नाम पर जानवर ज़िब्ह करे,जो जमीन की हदें तब्दील करे,जो अपने वालिद पर लानत करे और जो बिदअती को पनाह (समायोजित करे) दे।"
📚सहीह मुस्लिम

۞ " जरीर बिन अब्दुल्लाह से रिवायत है की रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया "जिसने मेरी सुन्नत में से कोई एक मुर्दा सुन्नत को जिन्दा किया और लोगो ने उस पर अमल किया तो सुन्नत जिन्दा करने वाले को भी उतना ही सवाब मिलेगा जितना उस सुन्नत पर अमल करने वाले तमाम लोगो को मिलेगा जबकि लोगो के अपने सवाब में से कोई कमी नहीं की जायेगी। और जिसने कोई बिदअत जारी की और फिर उस पर  लोगो ने अमल किया तो बिदअत जारी करने वाले पर उन तमाम लोगो का गुनाह होगा जो उस बिदअत पर अमल करेंगे जबकि बिदअत पर अमल करने वाले लोगो के अपने गुनाहो की सजा में से कोई चीज कम नहीं होगी।"
📚इब्ने माजा-203,मुस्लिम,तिर्मजी

۞"हज़रत आयशा रज़ि0 से रिवायत हैं के नबी ﷺ ने फ़रमाया – जिसने दीन मे कोई ऐसा काम किया जिसकी बुनियाद शरीअत मे नही वह मर्दुद ( rejected) है| "
📚बुखारी 2697

दीन-ए-इस्लाम में बिदअत को पसंद करने वालो ने अपने गैर मसनून और बिदई कामो (बातो) को दीन की सनद दिलाने के लिए बिदअत को बिदअते हस्ना और बिदअते सय्या में बाट रखा है।हालांकि की रसूलुल्लाह ﷺ दीन के अंतर्गत आने वाली तमाम बिदअत को गुमराही करार दिया है।
(....हर बिदअत गुमराही हैं.......~इब्ने माजा-045)

एक गिरोह इन बिदआत की ताईद करता है और लोगो को उनकी तरफ दावत देता है।इस दलील की बुनियाद पर की ये "बिदअत हसना" है यानी बिदअत तो है मगर अच्छी चीज है।
मगर हकीकत यह है की- बिदअते हसना के चोर दरवाजे ने दीन (इस्लाम) में बिदअत को फ़ैलाने और रिवाज देने में सबसे अहम रोल (किरदार) अदा किया है।
मसनून इबादतों के मुकाबले में गैर मसनून और मन घडत इबादतों ने जगह लेकर एक बिलकुल नए दीन की इमारते खड़ी कर दी।

ये बिदअत है:- तअविज गण्डा,फाल निकालना,कुल शरीफ,दसवा शरीफ,चालीसवाँ शरीफ,बरसी शरीफ,ग्यारवीं शरीफ,उर्स शरीफ,मिलाद शरीफ,नियाज शरीफ,चिल्ला कशी,कशफल कुबुर,चिरागा,गेरुल्लाह को सज्दा व चढ़ावा और उनसे दुआ,कब्रो पर चादर चढ़ाना,अरफा,शबे बरात,रजब के कुंडे,कव्वाली,गंजल अर्श,दरुदे ताज, ताज,दरुदे नारिया,दरुदे माही,दरुदे तन्जिना,दरुदे अकबर,कजा उमरी,अंगुठे चुमना,कुरानख्वानी,खाने पर फातिहा,खत्म ख्वाजगान,तकलीद,मुहर्रम के ताजिए वगेरह वगेरह जैसे गैर मसनून बिदई (बिदअत) अफवाल
को इबादत का दर्जा देकर तिलावते कुरआन,रोजा,नमाज,हज्ज,जकात,तस्बीह व तहलील और ज़िक्र इलाही जैसी इबादतों को सिरे से ताक पर रख दिया गया और अगर कही इन इबादात का तसुव्वर बाकी रह भी गया है तो बिदआत के जरिये उनकी हकीकी शक्ल व सूरत बिगाड़ दी गयी है।
आप इस हकीकत को भी जान लें कि बिदअतियों ने अपने ज्यदातर अक़ाइद और आमाल की बुनियाद जईफ और मौजूअ (मनघडत) रिवायत पर रखी है।
और यह भी कि अक्सर बिदआत शिरकिया अक़ाइद और नज़रियात पर मबनी है यही वजह है कि बिदअत व शिर्क का आपस में चोलीदामन का साथ है।

अल्लाह तआला का इर्शाद है कि "

۞"आप (ﷺ.) कह दो कि क्या हम तुम्हे  बता दें की आमाल की हैसियत से कौन लोग घाटे में है,
(ये) वह लोग (हैं) जिन की दुनियावी ज़िन्दगी की राई (कोशिश सब) बेकार हो गई और वह उस ख़ाम ख्याल में हैं कि वह यक़ीनन अच्छे-अच्छे काम कर रहे है"
Al-Kahf (18:103-04)
〰〰〰〰〰〰〰〰〰
✅हमारी दावत यह है कि
🔻🔻🔻
☑अल्लाह कुरआन में फरमाता है

۞"ऐ ईमानदारों अल्लाह और उसके रसूल (ﷺ) के सामने किसी बात में आगे न बढ़ जाया करो और अल्लाह से डरते रहो बेशक अल्लाह बड़ा सुनने वाला वाक़िफ़कार है"
Al-Hujuraat (49:1)

۞"...................हा जो तुमको रसूल (ﷺ) दें दें वह ले लिया करो और जिससे मना करें उससे बाज़ रहो और ख़ुदा से डरते रहो बेशक ख़ुदा सख्त अज़ाब देने वाला है"
Al-Hashr (59:7)

۞और तुम सब के सब (मिलकर) अल्लाह की रस्सी मज़बूती से थामे रहो और आपस में (एक दूसरे) के फूट न डालो  ............"
Aal-i-Imraan(3:103)
➰➰➰➰➰➰➰➰

2 comments:

Unknown said...

किस चीनी लिखी बुक न ये

Unknown said...

किसी ने लिखी है ये किताब और कहा की है ये
किताब