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वित्र का बयान
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✅वित्र का वक़्त
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۞"हजरत खारजा बिन हुजैफा रजि. बयान करते है एक दफा नबी {ﷺ} हमारे पास तशरीफ़ लाएं, आप {ﷺ} ने इर्शाद फरमाया :अल्लाह तआला ने तुम्हे एक मजीद नमाज अता की है, जो तुम्हारे लिए सुर्ख ऊँटो से ज्यादा बेहतर है वो वित्र की नमाज है अल्लाह तआला ने इस को ईशा नमाज से लेकर सुबह सादिक तक इस का वक़्त मुकर्रर किया है।"
✨Grade : Sahih
📚Reference : Sunan Darqutni 1638
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✅वित्र की रकअत
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أَبِي أَيُّوبَ الأَنْصَارِيِّ، قَالَ قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صلى الله عليه وسلم " الْوِتْرُ حَقٌّ عَلَى كُلِّ مُسْلِمٍ فَمَنْ أَحَبَّ أَنْ يُوتِرَ بِخَمْسٍ فَلْيَفْعَلْ وَمَنْ أَحَبَّ أَنْ يُوتِرَ بِثَلاَثٍ فَلْيَفْعَلْ وَمَنْ أَحَبَّ أَنْ يُوتِرَ بِوَاحِدَةٍ فَلْيَفْعَلْ
۞"सय्यिदिना अबू अय्यूब अंसारी रजि. बयान करते है के रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फरमाया "वित्र नमाज हर मुसलमान पर हक़ है चुनांचे जो पांच (5) पढ़ना चाहे पढ़ ले,और जो तीन (3) पढ़ना चाहे पढ़ ले,और जो एक (1) पढ़ना चाहे वो एक पढ़ ले"
✨Grade : Sahih (Al-Albani) 📚Reference : Sunan Abi Dawud 1422
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✅रकअत के अनुसार वित्र नमाज की किस्में और उनको अदा करने का तरीका
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☑नौ रकअत वित्र
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حَدَّثَنَا أَبُو بَكْرِ بْنُ أَبِي شَيْبَةَ، حَدَّثَنَا مُحَمَّدُ بْنُ بِشْرٍ، حَدَّثَنَا سَعِيدُ بْنُ أَبِي عَرُوبَةَ، عَنْ قَتَادَةَ، عَنْ زُرَارَةَ بْنِ أَوْفَى، عَنْ سَعْدِ بْنِ هِشَامٍ، قَالَ سَأَلْتُ عَائِشَةَ قُلْتُ يَا أُمَّ الْمُؤْمِنِينَ أَفْتِنِي عَنْ وِتْرِ رَسُولِ اللَّهِ ـ صلى الله عليه وسلم ـ . قَالَتْ كُنَّا نُعِدُّ لَهُ سِوَاكَهُ وَطَهُورَهُ فَيَبْعَثُهُ اللَّهُ فِيمَا شَاءَ أَنْ يَبْعَثَهُ مِنَ اللَّيْلِ فَيَتَسَوَّكُ وَيَتَوَضَّأُ ثُمَّ يُصَلِّي تِسْعَ رَكَعَاتٍ لاَ يَجْلِسُ فِيهَا إِلاَّ عِنْدَ الثَّامِنَةِ فَيَدْعُو رَبَّهُ فَيَذْكُرُ اللَّهَ وَيَحْمَدُهُ وَيَدْعُوهُ ثُمَّ يَنْهَضُ وَلاَ يُسَلِّمُ ثُمَّ يَقُومُ فَيُصَلِّي التَّاسِعَةَ ثُمَّ يَقْعُدُ فَيَذْكُرُ اللَّهَ وَيَحْمَدُهُ وَيَدْعُو رَبَّهُ وَيُصَلِّي عَلَى نَبِيِّهِ ثُمَّ يُسَلِّمُ تَسْلِيمًا يُسْمِعُنَا ثُمَّ يُصَلِّي رَكْعَتَيْنِ بَعْدَ مَا يُسَلِّمُ وَهُوَ قَاعِدٌ فَتِلْكَ إِحْدَى عَشْرَةَ رَكْعَةً فَلَمَّا أَسَنَّ رَسُولُ اللَّهِ ـ صلى الله عليه وسلم ـ وَأَخَذَ اللَّحْمُ أَوْتَرَ بِسَبْعٍ وَصَلَّى رَكْعَتَيْنِ بَعْدَ مَا سَلَّمَ .۞"हजरत साद बिन हिशाम रजि. से रिवायत है 'इन्होंने फरमाया मै ने हजरत आइशा रजि. से सवाल करते होवे कहा : उम्मुल मोमिनीन! मुझे रसूलुल्लाह {ﷺ} की नमाज वित्र (तहज्ज़ुद) की मुताल्लिक इरशाद फरमाए!,-जवाब में इन्होंने फरमाया: हम लोग रसूलुल्लाह {ﷺ} के लिए मिस्वाक और (वजू के लिए) पानी तैयार रखते थे। अल्लाह तआला रात के जिस हिस्से में नबी {ﷺ} को उठा देता' आप {ﷺ} मिस्वाक करते वजू करते फिर नौ रकअत नमाज पढ़ते इस में सिर्फ आठवीं रकअत पर (तशह्हुद के लिए) बैठते तो अपनी रब से दुआऍ करते- (यानी) अल्लाह का जिक्र करते' इस की तारीफ फरमाते और दुआए पढ़ते फिर सलाम फेरे बगैर खड़े हो जाते- खड़े हो कर नौवीं रकअत पढ़ते फिर (तशह्हुद में) बैठ कर अल्लाह का जिक्र करते' इस की तअरिफे करते' रब से दुआऍ करते मांगते और इस के नबी पर दरूद पढ़ते' फिर (इतनी बुलंद आवाज से) सलाम फेरते जो हमें सुन जाए फिर सलाम फेरने के बाद बैठ कर दो रकअत पढ़ते। जब रसूलुल्लाह {ﷺ} की उम्र ज्यादा हो गयी और जिस्म मुबारक भारी हो गया तो आप सात वित्र पढ़ते थे और सलाम के बाद दो रकअत पढ़ते थे।"
✨Grade : Sahih
📚Reference : Sunan Ibn Majah 1191
✏नौ रकअत वित्र पढ़ने का तरीका
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इसका तरीका यह है की आठ रकअत तक लगातार पढकर, आठवी रकअत में तशह्हुद (अतिय्यात) में बैठते और बगैर सलाम किये नौवीं रकअत के लिए खड़े हो जाए उसके बाद तशह्हुद में बैठे और उसके बाद सलाम फेरा जाएगा।
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☑पांच या सात रकअत वित्र
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عَائِشَةَ، قَالَتْ كَانَ رَسُولُ اللَّهِ صلى الله عليه وسلم يُصَلِّي مِنَ اللَّيْلِ ثَلاَثَ عَشْرَةَ رَكْعَةً يُوتِرُ مِنْ ذَلِكَ بِخَمْسٍ لاَ يَجْلِسُ فِي شَىْءٍ إِلاَّ فِي آخِرِهَا .
۞"हजरत आइशा रजि. से रिवायत है के रसूलुल्लाह {ﷺ} रात को तेरह रकअत पढ़ते, इनमे से पांच वित्र होती जिसमे आप {ﷺ} आखरी रकअत के अलावा किसी रकअत में नहीं बैठते (तशह्हुद के लिए)"
Reference : Sahih Muslim 1720 (737 a)
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حَدَّثَنَا أَبُو بَكْرِ بْنُ أَبِي شَيْبَةَ، حَدَّثَنَا حُمَيْدُ بْنُ عَبْدِ الرَّحْمَنِ، عَنْ زُهَيْرٍ، عَنْ مَنْصُورٍ، عَنِ الْحَكَمِ، عَنْ مِقْسَمٍ، عَنْ أُمِّ سَلَمَةَ، قَالَتْ كَانَ رَسُولُ اللَّهِ ـ صلى الله عليه وسلم ـ يُوتِرُ بِسَبْعٍ أَوْ بِخَمْسٍ لاَ يَفْصِلُ بَيْنَهُنَّ بِتَسْلِيمٍ وَلاَ كَلاَمٍ .
۞"हजरत उम्म सलमह रजि. से रिवायत है की रसूलुल्लाह {ﷺ} सात या पांच रकअत वित्र पढ़ते थे इन के दरम्यान सलाम के साथ तफरिक नहीं करते थे (एक ही सलाम से पढ़ते थे)"
✨Grade : Sahih
📚Reference : Sunan Ibn Majah 1192
✏पाँच या सात रकअत वित्र पढ़ने का तरीका
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इन अहादीस से मालुम हुआ की कोई पांच या सात रकअत वित्र पढ़े तो वो मुसलसल (लगातार) होनी चाहिए और सिर्फ आखरी रकअत में तशह्हूद पढ़े और फिर सलाम फेर देवे।
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☑तीन रकअत वित्र
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۞"सय्यिदा आइशा रजि. बयान करती है :'रसूलुल्लाह {ﷺ} वित्र की दो रकअत अदा करने की बाद सलाम नहीं फेरते थे'।"
✨Grade : Sahih
📚Reference : Sunan Darqutni 1647
✏तीन रकअत वित्र पढ़ने का तरीका
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जो आदमी तीन वित्र पढ़े उसे दो रकअत के बाद तशह्हुद (अत्तियात) में नहीं बैठना चाहिए बल्कि तीसरी रकअत ख़त्म करके काअदे में बैठकर अत्तियात,दरूद और दुआ करके सलाम फेरना चाहिए क्योंकि रसूलुल्लाह {ﷺ} से ऐसा ही साबित है।
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✅एक रकअत वित्र
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أَخْبَرَنَا مُحَمَّدُ بْنُ يَحْيَى بْنِ عَبْدِ اللَّهِ، قَالَ حَدَّثَنَا وَهْبُ بْنُ جَرِيرٍ، قَالَ حَدَّثَنَا شُعْبَةُ، عَنْ أَبِي التَّيَّاحِ، عَنْ أَبِي مِجْلَزٍ، عَنِ ابْنِ عُمَرَ، أَنَّ النَّبِيَّ صلى الله عليه وسلم قَالَ " الْوَتْرُ رَكْعَةٌ مِنْ آخِرِ اللَّيْلِ " .
۞"हजरत इब्ने उमर रजि. कहते है के रसूलुल्लाह {ﷺ} ने इर्शाद फरमाया 'वित्र रात के आखिरी हिस्से में एक रकअत है"
✨Grade : Sahih
📚Reference : Sunan an-Nasa'i 1692
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۞"हजरत कैस बिन अबु हाजिम बयान करते है मैने हजरत साद रजि. को देखा इन्होंने ईशा के बाद एक रकअत अदा की तो मैने दरयाफ़्त किया: ये कौनसी नमाज है? तो इन्होंने जवाब दिया: मेने नबी अकरम {ﷺ} को एक रकअत वित्र अदा करते हुए देखा है"
✨Grade : Sahih
📚Reference : Sunan Darqutni 1634
✏एक रकअत वित्र पढ़ने का तरीका
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ये वित्र की कम से कम तादाद है जैसा के दलाइल की रौशनी में बयान किया जा चूका है।सिर्फ एक ही रकअत पढ़ कर तशह्हुद के बाद सलाम फेर ले।
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✅वित्र की किरअत
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أَخْبَرَنَا مُحَمَّدُ بْنُ عَبْدِ الأَعْلَى، قَالَ حَدَّثَنَا خَالِدٌ، قَالَ حَدَّثَنَا شُعْبَةُ، قَالَ أَخْبَرَنِي سَلَمَةُ، وَزُبَيْدٌ، عَنْ ذَرٍّ، عَنِ ابْنِ عَبْدِ الرَّحْمَنِ بْنِ أَبْزَى، عَنْ عَبْدِ الرَّحْمَنِ، أَنَّ رَسُولَ اللَّهِ صلى الله عليه وسلم كَانَ يَقْرَأُ فِي الْوَتْرِ بِـ { سَبِّحِ اسْمَ رَبِّكَ الأَعْلَى } وَ { قُلْ يَا أَيُّهَا الْكَافِرُونَ } وَ { قُلْ هُوَ اللَّهُ أَحَدٌ } ثُمَّ يَقُولُ إِذَا سَلَّمَ " سُبْحَانَ الْمَلِكِ الْقُدُّوسِ " . وَيَرْفَعُ بِـ " سُبْحَانَ الْمَلِكِ الْقُدُّوسِ " . صَوْتَهُ بِالثَّالِثَةِ . رَوَاهُ مَنْصُورٌ عَنْ سَلَمَةَ بْنِ كُهَيْلٍ وَلَمْ يَذْكُرْ ذَرًّا .
۞"हजरत अब्दुल रहमान बिन अब्ज रजि. फरमाते है के रसूलुल्लाह {ﷺ} वित्र के पहले रकअत में सुरः आला (87. Al-A'laa), दूसरी में सुरः काफिरुन (109. Al-Kaafiroon), और तीसरी रकअत में सुरः इख्लास (112. Al-Ikhlaas) पढ़ा करते थे। फिर जब सलाम फेर कर फारिग होते तो तीन मर्तबा,
"सुब्हानल मलिकिल कुद्दुसि"
{سُبْحَانَ الْمَلِكِ الْقُدُّوسِ}
कहते और तीसरी मर्तबा खीच कर अदा फरमाते"
✨Grade : Sahih
📚Reference : Sunan an-Nasa'i 1737
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✅वित्र में पढ़ी जाने वाली दुआ
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الْحَسَنُ بْنُ عَلِيٍّ رضى الله عنهما عَلَّمَنِي رَسُولُ اللَّهِ صلى الله عليه وسلم كَلِمَاتٍ أَقُولُهُنَّ فِي الْوِتْرِ
۞"हजरत हसन बिन अली रजि. ने बयान किया रसूलुल्लाह {ﷺ} ने मुझे कुछ कलमात तअलीम फ़रमाई जिन्हें मै वित्र में पढ़ा करता:-
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✅क़ुनूत वित्र रुकूअ से पहले है या बाद में?
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रसूलुल्लाह {ﷺ} के कौल व फैअल और सहाबा किराम रजि. के अमल से वित्र में दुआएँ क़ुनूत रूकूअ से पहले साबित है और अक्सर रिवायतें रुकूअ से पहले ही क़ुनूत वित्र पर दलालत करती है।
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حَدَّثَنَا عَلِيُّ بْنُ مَيْمُونٍ الرَّقِّيُّ، حَدَّثَنَا مَخْلَدُ بْنُ يَزِيدَ، عَنْ سُفْيَانَ، عَنْ زُبَيْدٍ الْيَامِيِّ، عَنْ سَعِيدِ بْنِ عَبْدِ الرَّحْمَنِ بْنِ أَبْزَى، عَنْ أَبِيهِ، عَنْ أُبَىِّ بْنِ كَعْبٍ، أَنَّ رَسُولَ اللَّهِ ـ صلى الله عليه وسلم ـ كَانَ يُوتِرُ فَيَقْنُتُ قَبْلَ الرُّكُوعِ .
۞"हजरत उबैय बिन कअब रजि. से रिवायत है-'रसूलुल्लाह {ﷺ} वित्र पढ़ते तो रूकू से पहले दुआएँ क़ुनूत पढ़ते थे"
Grade : Sahih
Reference : Sunan Ibn Majah1182
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इस रिवायत से ये बात भी मालुम होती है की जो दुआ हंगामी (आपातकालीन) हालात में मुसलमानो की खेरख्वाही,कुफ्फार व मुश्रिकींन और दुश्मनाने इस्लाम के लिए बद्दुआ के तौर पर की जाती है वो रुकूअ के बाद, जिसे क़ुनूत नाजिला कहा जाता है और जो दुआ रुकूअ से पहले मांगी जाती है वो क़ुनूत वित्र है।
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✅एक रात में दो दफा वित्र पढ़ने की मनाही का बयान
أَخْبَرَنَا هَنَّادُ بْنُ السَّرِيِّ، عَنْ مُلاَزِمِ بْنِ عَمْرٍو، قَالَ حَدَّثَنِي عَبْدُ اللَّهِ بْنُ بَدْرٍ، عَنْ قَيْسِ بْنِ طَلْقٍ، قَالَ زَارَنَا أَبِي طَلْقُ بْنُ عَلِيٍّ فِي يَوْمٍ مِنْ رَمَضَانَ فَأَمْسَى بِنَا وَقَامَ بِنَا تِلْكَ اللَّيْلَةَ وَأَوْتَرَ بِنَا ثُمَّ انْحَدَرَ إِلَى مَسْجِدٍ فَصَلَّى بِأَصْحَابِهِ حَتَّى بَقِيَ الْوِتْرُ ثُمَّ قَدَّمَ رَجُلاً فَقَالَ لَهُ أَوْتِرْ بِهِمْ فَإِنِّي سَمِعْتُ رَسُولَ اللَّهِ صلى الله عليه وسلم يَقُولُ " لاَ وِتْرَانِ فِي لَيْلَةٍ " .
۞हजरत कैस बिन तलक फरमाते है की तलक बिन अली एक मर्तबा रमजान में हमारे यहाँ तशरीफ़ लाये तो शाम तक वही रहे। रात की नमाज पढ़े और वित्र अदा करने के बाद एक मस्जिद में तशरीफ़ ले गए। वहां भी अपने साथियो को नमाज पढ़ाई लेकिन जब वित्र पढ़ने की बारी आई तो दूसरे शख्स को आगे कर दिया और कहाँ के वित्र पढ़ाए क्योंकि मेने रसूलुल्लाह {ﷺ} से सुना है के एक रात में दो मर्तबा वित्र नहीं होती"
Grade : Sahih
Reference : Sunan an-Nasa'i 1682
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--------------| وَاللَّهُ أَعْلَمُ ।
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