Sunday 15 January 2017

"फातिहा खलफल इमाम" मसले पर 'हजरत उबादा रजि. रिवायत पर अहनाफ के जवाब को अहले हदीस का मुहतोड़ तहक़ीकी जवाब

मैने कुछ दिन पहले हनफ़ी मसलक (देवबंद) की साईट -
https://ulamaehaqulamaedeoband.wordpress.com/2015/02/23/imam-ke-peeche-fatiha-padhne-ke-masla-par-hazrat-ubaada-rdh-ki-abi-dawud-tirmizi-ki-riwayat-ka-mudallal-jawaab/

पर फातिहा खलफल इमाम के मसले पर एक आर्टिकल पढ़ा जिसका शीर्षक हैं -
" इमाम के पीछे फातिहा पढ़ने के मसला पर हजरत उबादा रजि. की (अबु दाउद, जमाए तिर्मिज़ी की) रिवायत का मुदल्लल जवाब "

इस साईट पर मेने देखा की इस साईट के एडमिन ने "उबादा बिन सामित रजि." की रिवायत हदीस को जईफ साबित करने की कोशिश की है और लिखा :
" यह रिवायत अपने तमाम सनदो के साथ जईफ है "

इसलिए मैंने भी रिसर्च करके उनकी  इस नापाक कोशिश को नाकाम करने की ठान ली और तहक़ीक़ के साथ इसका जवाब तलाश किया, जो इस तरह से हैं :

۞ "उबादा बिन सामित रजि. से रिवायत है की एक मर्तबा रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फज्र की नमाज पढ़ी ! इस में आप (ﷺ) के लिए  किरात में मुश्किल पेश आयी ! जब आप (ﷺ) फारिग होवे, तो फरमाया शायद तुम इमाम के पीछे किरात करते हो ?, हजरत उबादा कहते है हम ने कहा हाँ या रसूलुल्लाह (ﷺ) अल्लाह की कसम (हम किरअत करते हैं) आप (ﷺ) ने फरमाया ऐसा 'ना' किया करो सिर्फ 'सूरह फातिहा' पढ़ा करो क्योंके इस के बगैर नमाज नहीं होती"

यह हदीस सनद और मतन के इख्तिलाफ के साथ हदीस की बहुत सी किताबो में मौजूद हैं, इस हदीस को हनफ़ी एडमिन भाई  ने जईफ साबित करने की कोशिश में कुछ मुहदसिंन के कॉल पेश किये और चार रावियो पर जिरह होने की बात कही, इनके नाम हैं :
1. मख्हुल रह.
2. अब्दुल्लाह बिन अम्र इब्न उल हारिस रह.
3. इस्हाक़ बिन अब्दुल्लाह इब्न अबी फरवा रह.
4. नाफेअ बिन मेहमूद रह.
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हनफ़ी एडमिन भाई ने  " मख्हुल रह." को मुदल्लिस साबित करने के लिए इन किताबो के हवाले पेश किये है :
1. Tabqaat ul Mudalliseen : 46
2. Kitaab ul Mudalliseen Lil Iraaqi : Safa 92
3. Asma ul Mudalliseen Lil Ajami : Safa 56
4. An Nukat Li Ibn Hajar : Jild 2 : Safa 640
5. Jaami ut Tehseel : Safa 110
6. Tauzihul Afkaar : Safa 366

जवाब :
1. मख्हुल रह. :-
ऊबादा बिन सामित रह. से रिवायत हदीस जो ऊपर पेश की गई है वैसे तो कई अलग-अलग सनद के साथ किताबो में मौजूद है पर इनमे से ज्यादातर हदीसो में रावी मख्हुल रह. मिल जाते हैं,
हदीस की मशहूर किताबे लिखने वाले माहिर इमाम अपनी किताबो में ऊबादा बिन साबित रजि. की रिवायत अहादीस जिसकी सनद में रावी मख्हुल रह. भी शामिल हैं के बारे में क्या राय रखते इसका जायजा लेते हैं :

{1}
इमाम अबुल हसन बिन अली रह. (इमाम दारकु्तनि रह.) अपनी किताब "सुनन दारकु्तनि" के जिल्द 2, पेज 414, हदीस नंबर 1198 (जिसकी सनद में रावी मख्हुल रह. शामिल हैं) के आखिर में लिखते हैं की "इस हदीस की सनद 'हसन' हैं"

- इसी तरह "सुनन दारकु्तनि" के जिल्द 2, सफा 419, हदीस नंबर 1205 जिसकी सनद में 
1. मख्हुल रह.
2. नाफेअ बिन मेहमूद रह.
शामिल है,
इस हदीस के आखिर में अबुल हसन रह. लिखते है की "इस रिवायत की सनद 'हसन' है और इसके तमाम रावी 'सिक्का' हैं"

{2}
इमाम अबु ईसा तिर्मिज़ी रह. अपनी किताब 'जामे-तिर्मिज़ी' के जिल्द 1,पेज 210, हदीस संख्या 311 पर तब्सिरा करते हुए फरमाया है की "ऊबादा रजि. से रिवायत हदीस 'हसन' हैं"

यहाँ एक बात याद रखना जरुरी हैं :

{3}
इमाम इब्ने खुज़ैमा रह. ने अपनी किताब "सहीह इब्ने खुज़ैमा" में अहादीस को जमा किया और इस किताब शुरू के पन्नों में अपनी इस किताब पर तब्सिरा करते हुए लिखा :
"मुख़्तसर की भी मुख़्तसर, ऐसी रिवायते जो मुस्नद और सहीह हो नबी सलल्लाहु अल्लैहि व सल्लम से, तक़वा के एतेबार से मोतबर रावी से जिसको मोतबर रावी ने लिया हो जो नबी सलल्लाहु अल्लैहि व सल्लम तक बात पहुचती हो (सनद जुड़ीं हुई हो) , जिसके नक़ल करने वालो पर कोई जरह ना हो, अल्लाह की मशिहत से हम जिसको बयान कर रहे हैं"


इस तब्सिरे से साबित होता है की "सहीह इब्ने खुज़ैमा" में जितनी हदीस जमा है सब की सब इमाम इब्ने खुज़ैमा रह. की नजर में सहीह और इनके रावी 'सिक्का' हैं!

"सहीह इब्ने खुज़ैमा" के जिल्द 3, सफा 117, हदीस संख्या 1581 में 'ऊबादा बिन सामित' से रिवायत हदीस है और इसकी सनद में रावी मख्हुल रह. मौजूद है :


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इन दलीलो पर गौर करने के बाद पता चलता है की 'मख्हुल रह.' को कुछ मुहद्दिस हजरात ने मुदल्लिस (जईफ)  रावी कहा हैं तो कुछ ने इनकी रिवायत हदीस को 'सहीह या हसन' तस्लीम करके इन्हें 'सिक्का' रावी समझा हैं,
मख्हुल रह. को 'सिक्का' रावी समझने वाले मुहद्दिस हजरात में से इमाम अब ईसा तिर्मिज़ी रह. , इमाम अबुल हसन बिन अली रह. (इमाम दारकु्तनि) , इमाम इब्ने खुज़ैमा रह. जैसे बड़े-बड़े इमाम है जिनका इल्मे-हदीस और शोहरत किसी से ढकी-छुपी हुई नहीं हैं!
इसलिए मेरा यह मानना है की हजरत 'मख्हुल से रिवायत हदीस की सनद इमाम तिर्मिज़ी रह. के कौल के मुताबिक़ 'हसन' दर्जे की हैं, लेकिन यह हदीस 'सहीह' दर्जे तक पहुचती हैं क्योंकि यह हदीस सहीह सनद के साथ भी आई है जिन्हें में आगे पेश करूँगा (इंशा अल्लाह) जो 'मख्हुल रह.' की रिवायत की शवाहिद हैं! 'वल्लाहु आलम'
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2. अब्दुल्लाह बिन अम्र रह.
एडमिन हनफ़ी भाई ने 'अब्दुल्लाह बिन अम्र के बारे में अपनी साईट पर लिखा :
"इमाम इब्न हिब्बान रह. के अलावा उन्हें किसी ने सिक्का नहीं कहा है"
हनफ़ी भाई ने इब्न हिब्बान रह. के हवाले से यह बात लिख कर इस रावी को 'सिक्का' तो साबित कर दिया लेकिन रावी को 'जईफ' साबित करने के लिए कोई भी दलील पेश नहीं की हैं!
पेश है अब्दुल्लाह बिन अम्र रह. की रिवायत  हदीस, जिसकी सनद 'मुनक़्ते' भी नहीं है बल्कि यह 'सहीह' हैं! "वल्लाहु आलम"

Refreance : Juz-Al-Qirat (Writer : Imam Bukhari), Page Number 275, Hadis Number-255

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अब में आपके सामने उन अहादीस को पेश करूँगा जो हजरत मख्हुल रह. की रिवायत करदा 'हसन हदीस' के पूरी तरह से 'सहीह' साबित होने की शहादत देगी और यह सही सनद वाली अहादीस 'इमाम के पीछे फातिहा पढ़ने' के मसले को सही साबित कर देगी ! "इंशा अल्लाह" :

{A}
Reference : Sunan Darqutni : Book - 2, Page Number - 414, Hadis Number 1198,1199 & 1200 :-
1. सुनन दारकु्तनि : 1198 की सनद में मख्हुल रह. है
2. सुनन दारकु्तनि : 1199 की सनद में 'उमर बिन हबीब बिन मुहम्मद बिन अल्काजी' है, जिन्हें जईफ बताया गया है
3. सुनन दारकु्तनि : 1200 की सनद , हदीस नं.1198 को मजबुत सपोर्ट दे रही हैं! "वल्लाहु आलम"
हदीस नं. 1200 की सनद में हनफ़ी एडमिन के एतराज करदा रावियो में से कोई भी रावी शामिल नहीं हैं!

{B}
Refreance : Juz-Al-Qirat (Writer : Imam Bukhari), Page number -112, Hadis Number - 63

{C}
Refreance : Juz-Al-Qirat (Writer : Imam Bukhari), Page Number -118,  Hadis Number - 67

परिणाम  : तमाम दलीलो से यह साबित होता है की यह हदीस 'सहीह' है और हनफ़ी मुक्लिद्दीन का इस हदीस के तमाम रिवायतों के साथ 'जईफ' होने का दावा झूटा हैं!

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واَللَّهُ أَعْلَمُ |-------------- ।
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1 comment:

Mohd Khalid said...

Ye to sahi bat h ki bina sure fatiha k namaz nhi hogi